ब्लॉग: भारत-अमेरिका की दोस्ती से लगेगी चीन-पाकिस्तान पर लगाम
By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 8, 2018 04:44 PM2018-09-08T16:44:24+5:302018-09-08T16:51:45+5:30
चीन पाकिस्तान के साथ है लेकिन वह अमेरिका की तरह अरबों-खरबों डॉलर उंडेलने की स्थिति में नहीं है।
अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो और रक्षा मंत्री जेम्स मेटिस, दोनों एक साथ भारत आए। मुझे याद नहीं पड़ता कि ऐसा पहले भी कभी हुआ है। किसी महाशक्ति के दो प्रमुख मंत्री भारत एक साथ आएं और उसके पहले वे पाकिस्तान जाएं, इसका कुछ खास मतलब है।
इसका पहला मतलब तो भारत को यह विश्वास दिलाना है कि आतंकवाद के विरोध में अमेरिका पूरी तरह भारत के साथ है। दूसरे शब्दों में अब से पचास-साठ साल पहले सोवियत नेता ख्रुश्चैव और बुल्गानिन भारत आकर जैसी बातें करते थे, वैसी तो नहीं लेकिन मूल रूप से वैसी ही बात इन अमेरिकी मंत्रियों ने की है।
इसका अर्थ क्या यह लगाया जाए कि भारत-अमेरिकी संबंध उसी तरह से घनिष्ठ होते जा रहे हैं, जैसे भारत-सोवियत संबंध हो गए थे।
ऐसा सोचना जरा जल्दबाजी हो जाएगी, क्योंकि अब शीतयुद्ध का माहौल नहीं है और अमेरिका की टक्कर में कोई दूसरी महाशक्ति नहीं खड़ी है। भारत से अमेरिका इसीलिए अपने संबंध घनिष्ठ बनाता जा रहा है कि उसे एशिया और अफ्रीका में चीन की चुनौती दिखाई पड़ रही है।
चीन और पाकिस्तान की दोस्ती
चीन पाकिस्तान के साथ है लेकिन वह अमेरिका की तरह अरबों-खरबों डॉलर उंडेलने की स्थिति में नहीं है। अमेरिका चाहता है कि चीन की टक्कर में भारत को खड़ा कर दिया जाए। इसीलिए उसने दक्षिण-पूर्व एशिया को ‘इंडो-पेसिफिक’ क्षेत्र कहना शुरू कर दिया है लेकिन भारत किसी का पिछलग्गू नहीं बन सकता।
अमेरिकी मंत्रियों ने इस यात्रा के दौरान प्रतिरक्षा संचार संबंधी जो समझौते भारत के साथ किए हैं, उनसे भारत को सामरिक लाभ जरूर होगा लेकिन ध्यान रहे कि अमेरिका का जोर इस बात पर रहा है कि उससे हम हेलिकॉप्टर और लड़ाकू विमान खरीदें।
उसने कम से कम 10 अरब डॉलर का अमेरिकी माल ज्यादा खरीदने पर भी जोर दिया है। यह अच्छा हुआ कि उसने रूस और ईरान संबंधी प्रतिबंधों को भारत पर थोपने की जिद नहीं की। डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार इतने संयम से काम कर रही है, यह अच्छी बात है।