वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: हमारी विदेश नीति की कमजोरियां
By वेद प्रताप वैदिक | Published: June 4, 2021 12:53 PM2021-06-04T12:53:06+5:302021-06-04T12:53:06+5:30
भाजपा के पास आज एक भी नेता ऐसा नहीं है, जो विदेश के मामलों को ठीक से समझता हो. यदि ऐसा होता तो भारत सरकार अफगानिस्तान की डोर को अपने हाथ से फिसलने नहीं देती.
हमारी विदेश नीति आजकल बड़ी दुविधा में फंस गई है. एक तरफ चीन ने हमारे लिए कई फिसलपट्टियां लगा दी हैं और दूसरी तरफ हमारे दोनों दोस्त- इजराइली और फिलस्तीनी हमें कोस रहे हैं. हमारे विदेश मंत्रालय को कुछ समझ में नहीं आ रहा है, जबकि हमारे विदेश मंत्री एक ऐसे व्यक्ति हैं जो विदेश मंत्री बनने के पहले कई देशों में हमारे राजदूत और विदेश सचिव भी रह चुके हैं.
जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सवाल है, उनको ज्यादा दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि हमारे ज्यादातर प्रधानमंत्री विदेशी मामलों के विशेषज्ञ नहीं होते.
खैर, अभी तो हमारा ध्यान अफगानिस्तान पर होनेवाली उस त्रिराष्ट्रीय वार्ता ने खींचा है जो चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच हो रही है. उनके बीच यह चौथी वार्ता है.
कितने आश्चर्य की बात है कि अफगानिस्तान की सबसे ज्यादा आर्थिक मदद करनेवाले देश भारत की इस वार्ता में कोई भूमिका नहीं है. और मैं यह भी देख रहा हूं कि चीन हमें चपत लगाने का कोई मौका नहीं चूक रहा है. चपत भी प्यारी-सी!
चीन ने पहले ब्रिक्स की बैठक में भारत की तारीफ की और अब उसने अफगान-संकट के हल में भी भारत की भूमिका को रेखांकित किया है. चीनी विदेश मंत्री ने कहा है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी वापसी के बाद भारत और चीन को मिलकर काम करना चाहिए. उसे पता है कि भारत आजकल अमेरिका के पक्ष में बना हुआ है. उसकी अपनी कोई पहल नहीं है.
भाजपा के पास एक भी नेता ऐसा नहीं है, जो वैदेशिक मामलों को ठीक से समझता हो. यदि भाजपा सरकार को वैदेशिक मामलों की समझ होती तो अफगानिस्तान की डोर को वह अपने हाथ से फिसलने नहीं देती. वह अफगान-सवाल पर पाकिस्तान को ऐसे अपने पक्ष में करती कि दक्षिण एशिया एक बड़े परिवार के रूप में ढलने लगता.
खैर, आज फिलिस्तीनी विदेश मंत्री को लिखी चिट्ठी भी देखी. संयुक्त राष्ट्र में और मानव अधिकार आयोग में भारतीय प्रतिनिधियों के जो परस्पर विरोधी रवैये रहे हैं, उनके कारण इजराइल और फिलिस्तीन, दोनों ने भारत के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की है. जबकि मैं पक्के तौर पर मानता हूं कि अफगानिस्तान और फिलिस्तीन के मामलों में भारत की भूमिका दुनिया के किसी भी देश से कहीं ज्यादा सार्थक हो सकती थी.
हमें अपनी विदेश नीति की इन कमजोरियों को दूर करना होगा, ताकि हमारे मित्र देश हमसे छिटक न जाएं.