वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: नक्सलियों से कैसे निपटें?
By वेद प्रताप वैदिक | Published: May 3, 2019 05:30 AM2019-05-03T05:30:31+5:302019-05-03T05:30:31+5:30
पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने 40 नक्सलियों को मार गिराया था लेकिन इस बार नक्सलियों ने उसका बदला तो ले ही लिया, उन्होंने चुनाव में हुए प्रचंड मतदान पर भी अपना गुस्सा निकाल दिया. उन्हें यह जानकर धक्का लगा कि गढ़चिरोली जैसी पिछड़ी जगह पर लगभग 80 प्रतिशत मतदान हुआ यानी जंगलवासियों और अनपढ़ लोगों में इतनी राजनीतिक चेतना कहां से आ गई?
महाराष्ट्र में विदर्भ के गढ़चिरोली में नक्सलवादियों के हमले में पुलिस के 15 जवान शहीद हो गए और एक ड्राइवर मारा गया. गढ़चिरोली का यह इलाका छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव से लगा हुआ है. वास्तव में छत्तीसगढ़ तो नक्सलगढ़ बना हुआ है. वहां आए दिन नक्सली हिंसा की वारदातें होती रहती हैं. पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने 40 नक्सलियों को मार गिराया था लेकिन इस बार नक्सलियों ने उसका बदला तो ले ही लिया, उन्होंने चुनाव में हुए प्रचंड मतदान पर भी अपना गुस्सा निकाल दिया. उन्हें यह जानकर धक्का लगा कि गढ़चिरोली जैसी पिछड़ी जगह पर लगभग 80 प्रतिशत मतदान हुआ यानी जंगलवासियों और अनपढ़ लोगों में इतनी राजनीतिक चेतना कहां से आ गई? यह लोकतांत्रिक चेतना नक्सलवादियों के लिए खतरा सिद्ध हो सकती है. लोकतंत्नप्रेमी नौजवान हथियार क्यों उठाएंगे? वे नक्सलवादी क्यों बनेंगे? वे हिंसा क्यों करेंगे?
इस चिंता ने भी नक्सलियों को हताश किया और साल भर से बदला लेने की तैयारी करके वे अब हिंसा पर उतारू हो गए. उन्होंने पहले वहां के एक सड़क निर्माता ठेकेदार के 36 वाहनों को फूंक डाला और जब उनका पीछा करने के लिए महाराष्ट्र की पुलिस गई तो उसकी बस को विस्फोट करके उड़ा दिया. यह खुफिया अक्षमता और प्रशासनिक लापरवाही का प्रमाण है. मुख्यमंत्नी देवेंद्र फडणवीस और मुख्य पुलिस अधिकारी ने इस हिंसा का प्रतिकार करने की घोषणा की है. मान लें कि प्रतिकार हो भी गया तो क्या उससे नक्सलवाद खत्म हो जाएगा? नक्सलियों पर हमले पहले भी हुए हैं लेकिन उनसे क्या फर्क पड़ा है? मैं सोचता हूं कि यह काम हमारी फौज को क्यों नहीं सौंप दिया जाता?
इसके अलावा उन कारणों को क्यों नहीं खोजा जाता, जिनके चलते हमारे नौजवान नक्सली बन जाते हैं? नक्सली नेताओं के साथ व्यापक समाज के कुछ लोग सीधा संवाद क्यों नहीं करते? जैसा कि डाकू समाज के साथ 40-50 साल पहले विनोबा और जयप्रकाश ने किया था. प्रतिहिंसा की सैन्य कार्रवाई की बजाय यह रास्ता कहीं बेहतर है. यह ठीक है कि नक्सली हिंसा के पीछे अब निहित स्वार्थ भी काम करने लगा है लेकिन हम यह न भूलें कि बंगाल की नक्सलबाड़ी और केरल के जंगलों से शुरू हुए इस आंदोलन के पीछे समाज-परिवर्तन का उग्र-आदर्शवाद ही प्रेरक-भाव रहा है.