शहरी नक्सलवाद: वाम नासमझी का उदाहरण
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 9, 2018 08:56 AM2018-09-09T08:56:21+5:302018-09-09T10:35:44+5:30
डॉ. मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था। वर्तमान प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी की हत्या की योजना संबंधी कुछ चिट्ठियां इसी संदर्भ में देखी जानी चाहिए।
एन. के. सिंह
शहरी नक्सलवाद की अवधारणा और रणनीति का जिक्र कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया माओवादी के सन 2004 में पैदा होने पर बने एक 53-पृष्ठ के ‘शहरी संद्रिष्ट’ (अर्बन पर्सपेक्टिव) शीर्षक दस्तावेज में विस्तार से मिलता है। भारतीय खुफिया एजेंसियों को भी यह दस्तावेज तत्काल मिल गया था। इस दस्तावेज में कहा गया था कि बिना शहरों पर कब्जा किए ‘लाल आतंक’ के जरिए नई माओवादी व्यवस्था लाना असंभव है। यही कारण था कि सन 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्नी डॉ. मनमोहन सिंह ने नक्सलवाद को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था। वर्तमान प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी की हत्या की योजना संबंधी कुछ चिट्ठियां इसी संदर्भ में देखी जानी चाहिए। इस दस्तावेज में हिंदू फासिज्म के खिलाफ सैन्य युद्ध तक की बात साफ तौर पर है। लेकिन अगर पूरा दस्तावेज गहराई से पढ़ें तो लगता है कि नक्सली नेताओं को देश के सामाजिक-आर्थिक व भावनात्मक बदलाव और उससे पैदा होने वाली सामूहिक चेतना या उसके अभाव का कोई भी भान नहीं है।
भले ही ‘शहरी नक्सलवाद’ पिछले 15 दिनों में जन विमर्श का मुद्दा बना हो (और वाम लेखक आरोप लगा रहे हों कि यह मोदी सरकार की एक मनगढ़ंत कहानी है क्योंकि उसे कहीं प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के खिलाफ आतंकी साजिश से सरकार ने जोड़ा है), लेकिन इंटेलिजेंस एजेंसियों के रिकॉर्ड में यह पिछले 14 साल से बना रहा है। तत्कालीन प्रधानमंत्नी डॉ। मनमोहन सिंह ने सन 2010 में इसे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हुए कहा था कि वे मुख्यमंत्रियों को इस खतरे के बारे में पिछले तीन साल से बता रहे थे। इस तरह की आशंका व्यक्त करने के तीन कारण थे। पहला : वह दस्तावेज जिसमें नक्सलियों के खतरनाक इरादे और रणनीति स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे, दूसरा; विचारधारा के स्तर पर नक्सलियों का एक बड़ा वर्ग शिक्षित होता था और इनकी जड़ें और संस्कृति तासीरन शहरी होती थीं। एक लंबे समय तक जंगलों में रहने के बावजूद इन प्रतिबंधित संगठनों के नेता शहरों से जुड़े होते थे। इनके दस्तावेज में साफकहा गया है कि शहरों में प्रभाव बनाने के लिए सिविल सोसाइटी संगठन बनाने होंगे और तीसरा : वामपंथी रुझान के नाम पर बुद्धिजीवियों का एक वर्ग हमेशा से ही नक्सलवाद को पोषित करता रहा है।
मार्क्स ने उत्पादन और उसके तरीके को किसी भी समाज की संरचना, उसकी संस्थाओं और प्रक्रियाओं का मूल माना था। अर्थ-व्यवस्था के इस नए दौर में जिसमें सकल घरेलू उत्पाद का 65 प्रतिशत उस क्षेत्न (सेवा क्षेत्न) से आता हो जिसमें उत्पाद दिखाई न देता है (यानी अदृश्य हो जैसे सॉफ्टवेयर का उत्पादन या हॉस्पिटल और होटल का व्यापार) और उत्पादन की प्रक्रिया क्रमवार (जैसा कि कार बनाने के कारखाने में होता है) न हो कर एक साथ हो (जैसे सॉफ्टवेयर का उत्पादन एक बटन दबाने पर लाखों जगह एक साथ होता है), यह संभव नहीं है क्योंकि अब सर्वहारा वर्ग इन उद्योगों में नहीं है।
{नंद किशोर सिंह (एनके सिंह) एक राजनेता, अर्थशास्त्री और पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं। वह भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त होकर 2014 में भारतीय जनता पार्टी के सदस्य बने थे। इससे पहले वह जनता दल (यूनाइटेड) की सीट पर राज्यसभा के सांसद रहे।}