विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः बेरोजगार युवाओं को क्यों भरमाया जा रहा है?

By विश्वनाथ सचदेव | Published: January 17, 2019 05:41 AM2019-01-17T05:41:21+5:302019-01-17T05:41:21+5:30

बात उन दिनों की है जब तत्कालीन प्रधानमंत्नी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा करके देश की राजनीति और सामाजिक अंचलों में भूचाल-सा ला दिया था. बहुत बहस हुई थी तब देश में आरक्षण के सवाल पर और इस निर्णय के नफे नुकसान भी राजनीतिक दलों को मिले थे. 

unemployment in india no job for youth narendra modi general category reservation | विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः बेरोजगार युवाओं को क्यों भरमाया जा रहा है?

विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉगः बेरोजगार युवाओं को क्यों भरमाया जा रहा है?

सरकार के पास रोजगार नहीं है और देश में बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. आठ लाख रुपए तक की वार्षिक आय वाला परिवार अब गरीब माना जाएगा और उसे सरकारी नौकरियों और शिक्षण-संस्थाओं में दस प्रतिशत हिस्से पर दावेदारी करने का अधिकार मिल गया है. यह आठ लाख का आंकड़ा सरकार ने किस आधार पर तय किया, इसकी कोई जानकारी देना जरूरी नहीं समझा गया है. 

बात उन दिनों की है जब तत्कालीन प्रधानमंत्नी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा करके देश की राजनीति और सामाजिक अंचलों में भूचाल-सा ला दिया था. बहुत बहस हुई थी तब देश में आरक्षण के सवाल पर और इस निर्णय के नफे नुकसान भी राजनीतिक दलों को मिले थे. 

उन्हीं दिनों एक बातचीत के दौरान  अपने इस विवादित निर्णय के बारे में उन्होंने कहा था, ‘आप बताइए, दलितों-पिछड़ों को सामाजिक न्याय के दायरे में लाकर मैंने क्या गलत किया’, तो मैंने कहा था, गलती यह हुई कि आपने आरक्षण की अवधि की कोई सीमा-निर्धारित नहीं की और आरक्षण का लाभ पाने वाले व्यक्तियों-परिवारों पर भी कोई बंधन नहीं लगाया कि आरक्षण का लाभ एक पीढ़ी या दो पीढ़ी या चार पीढ़ी तक ही मिलेगा, उसके बाद नहीं. यह बातचीत जब हो रही थी तो वे प्रधानमंत्नी नहीं रहे थे. उन्होंने इस ‘गलती’ के बारे में चुप रहना बेहतर समझा था. 

परिगणित जातियों और जनजातियों के लिए नौकरी आदि में आरक्षण की व्यवस्था तो हमारे संविधान-निर्माताओं ने ही कर दी थी. और यह सही भी था. सदियों से जिन समाजों को दबा कर रखा गया, उन्हें प्रतिस्पर्धा के लिए बराबरी का मौका देने के लिए आरक्षण जरूरी था. भले ही यह तर्क किसी को समझ न आए, पर इसका औचित्य स्वयंसिद्ध था. लेकिन, जिस तरह आरक्षण को राजनीति का हथियार बना लिया गया और इसके सहारे सत्ता पाने की कोशिशें होने लगीं, उससे समूचे भारतीय समाज में असंतोष की लहर भी फैली थी. 

इसी संदर्भ में आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग भी उठने लगी. और इस बात में सार भी दिखाई दे रहा था कि यदि आरक्षण का आधार आर्थिक हो जाएगा तो सामाजिक आधार पर आरक्षण का अधिकार पाने वाले अधिकांश वर्ग अपने आप इस व्यवस्था का लाभ लेनेवाले बन जाएंगे. पर सत्ता की राजनीति के समीकरण हमेशा विवेकशील तर्को के आधार पर नहीं बनते. आरक्षण राजनीति का हथियार बना रहा, उसे अलग-अलग मोड़ देने की कोशिशें भी होती रहीं. 

इस संदर्भ में उच्चतम न्यायालय के निर्देश की अनदेखी या अवहेलना करने के रास्ते भी हमारे राजनीतिकों ने निकाल लिए. आर्थिक आधार पर सवर्णो को आरक्षण का लाभ देने का वर्तमान सरकार का निर्णय ऐसा ही एक राजनीतिक रास्ता है. भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार को यह लग रहा है कि उसका यह निर्णय तुरुप का पत्ता है, जिसकी मदद से कुछ ही महीने बाद होने वाले लोकसभा के चुनावों में जीत हासिल हो सकती है. 

जिस तरह आनन-फानन तरीके से संसद में यह बिल पारित कराया गया, वह भी संदेह और शिकायत उत्पन्न करने वाला है. शायद यह पहली बार है जब संविधान-संशोधन का कोई विधेयक इस तरह की जल्दबाजी में पारित हुआ हो. न ढंग की बहस हुई, न आवश्यक तौर-तरीका अपनाया गया. विडंबना यह भी है कि विपक्ष भी इस निर्णय का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए सरकार के साथ जुड़ गया! जुड़ गया के बजाय यह कहना ज्यादा सही होगा कि उसे जुड़ना पड़ा. 

अब, इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद देश की 95 प्रतिशत आबादी ‘गरीब’ घोषित हो गई है. उसे इस व्यवस्था में क्या लाभ मिलेगा, यह तो आने वाला कल ही बताएगा, पर भाजपा को यह जरूर लग रहा है कि उसे राजनीतिक लाभ मिलना तय है. विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है और प्रधानमंत्नी का गृह-राज्य गुजरात पहला प्रदेश बन गया है, जिसने इसे लागू करने की घोषणा कर दी है. 

इस कानून के प्रावधानों के अनुसार आठ लाख रुपए तक की वार्षिक आय वाला परिवार अब गरीब माना जाएगा और उसे सरकारी नौकरियों और शिक्षण-संस्थाओं में दस प्रतिशत हिस्से पर दावेदारी करने का अधिकार मिल गया है. गरीबी मिटाने का इससे बढ़िया और उपाय भला क्या हो सकता था? 

यह आठ लाख का आंकड़ा सरकार ने किस आधार पर तय किया, इसकी कोई जानकारी देना जरूरी नहीं समझा गया है. और यह बताना भी जरूरी नहीं समझा गया है कि इस प्रावधान के बाद कितने लोगों को रोजगार मिल सकता है. आठ लाख रु पए सालाना कमाने वाले के  ‘गरीब’ होने का अर्थ है, सिर्फ पांच प्रतिशत भारतीय ही अमीर हैं. इसका अर्थ यह भी है कि उपलब्ध नौकरियां 95 प्रतिशत ‘गरीबों’ के बीच बटेंगी-अर्थात अति गरीब यहां भी खाली हाथ रहेगा. 

सरकार के पास रोजगार नहीं है, और बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. हकीकत तो यह है कि सरकारी विभागों में रोजगार कम हो रहे हैं. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार चार साढ़े चार साल पहले, मार्च 2014 में, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्न की इकाइयों में 16,90,741 लोग काम कर रहे थे. मार्च 2017 में यह संख्या घटकर 15,23,586 हो गई. देश में रोजगार की स्थिति के बारे में तो सरकार यह कह सकती है कि सरकारी नौकरियां ही रोजगार नहीं होतीं, पर आरक्षण का यह प्रावधान तो सरकारी नौकरियों के लिए ही है न. आखिर देश के बेरोजगार युवाओं को क्यों भरमाया जा रहा है. 

Web Title: unemployment in india no job for youth narendra modi general category reservation

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे