कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए चिंतन का समय

By पवन के वर्मा | Published: December 16, 2018 05:26 AM2018-12-16T05:26:05+5:302018-12-16T05:26:05+5:30

पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव खत्म हो चुके हैं.

Time for contemplation for both Congress and BJP | कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए चिंतन का समय

कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए चिंतन का समय

पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के चुनाव खत्म हो चुके हैं. चुनावी कोलाहल शांत होने के बाद, अब समय शांति के साथ बैठकर यह हिसाब लगाने का है कि कौन फायदे में रहा और कौन नुकसान में. हालांकि यह बैलेंस शीट सुस्पष्ट नहीं है. जो फायदे में हैं, उनमें दिखाई देने वाली खुशी बहुत जोरदार नहीं है और जो नुकसान में हैं, उनमें बहुत ज्यादा निराशा नहीं है. सच्चाई करीब-करीब बीच में निहित है. सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने पर दिखाई देता है कि कम से कम जहां तक कांग्रेस और भाजपा की बात है, दोनों पक्षों में कुछ बातें खुश होने लायक हैं और कुछ बातों पर चिंतन-मनन की आवश्यकता है.

पहले कांग्रेस को लें. पार्टी ने छत्तीसगढ़ में स्पष्ट जीत हासिल की है. उसे इस जीत का पूरा श्रेय जाता है. हालांकि इस जीत में पार्टी द्वारा किए जाने वाले लोकप्रिय वादों का भी बड़ा हाथ है, जिन्हें पूरा कर पाना उसके लिए कठिन होगा. राजस्थान में जीत कांग्रेस की उम्मीदों से कम बड़ी है, जहां भाजपा के सिर्फ 50 सीटों पर ही सिमटने की बात कही जा रही थी. लेकिन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अलोकप्रियता के बावजूद भाजपा ने वहां कड़ी टक्कर दी और कांग्रेस स्पष्ट बहुमत हासिल करने से एक सीट पीछे ही रह गई.

मध्य प्रदेश में टक्कर कांटे की थी और पलड़ा कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के पक्ष में झुकता नजर आ रहा था. अंत में, कांग्रेस बढ़त हासिल करने में कामयाब रही, लेकिन बहुत कम अंतर के साथ. एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर उसने केवल कुछ सौ वोटों से भाजपा पर जीत दर्ज की. 15 साल बाद, एंटी-इन्कम्बेंसी के बावजूद भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जैसी टक्कर दी, वह कोई मामूली बात नहीं है.  कांग्रेस की जीत हुई लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि भाजपा की वास्तव में हार हुई है.

तेलंगाना में, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने चुनावों में मैदान मारा. कांग्रेस ने गलत पार्टी (चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी) के साथ गठबंधन करने का परिणाम भुगता. जैसा कि अधिकांश पर्यवेक्षकों का कहना था, नायडू की पार्टी के प्रति तेलंगानावासियों में कटुता का भाव है, जिसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा.  कांग्रेस के पास हो सकता है उनके साथ गठबंधन करने के कारण रहे हों, लेकिन वे प्रभावी नहीं साबित हो सके. मिजोरम में, स्थानीय पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट ने बहुमत हासिल किया और कांग्रेस के शासन का अंत किया जो अभी भी पूवरेत्तर के एकमात्र राज्य में  सत्ता में थी. 

कांग्रेस के लिए नतीजे जहां मिश्रित रहे हैं, वहीं भाजपा के लिए भी उनकी विवेचना लायक बहुत कुछ है. राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने भले ही उम्मीद से कम जीत हासिल की हो, सच्चाई यह है कि भाजपा ने हिंदी बेल्ट के तीन प्रमुख राज्यों में अपनी सत्ता गंवा दी है. इससे उसकी 2019 के आम चुनावों में 2014 की जीत को दोहराने की महत्वाकांक्षा पर असर पड़ेगा. भाजपा को स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाले ग्रामीण संकट, पर्याप्त संख्या में रोजगारों का सृजन नहीं होने से मध्य वर्ग में बढ़ती निराशा और मोदी के घटते जादू को लेकर आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है. उसे इस पर सोचना चाहिए कि आक्रामक ‘हिंदुत्व’ कार्ड खेलने से क्या उसे वास्तव में कोई फायदा हुआ है. पार्टी को समझना चाहिए कि भारतीय मतदाता दिमागविहीन कठपुतलियां नहीं हैं जो सांप्रदायिक राजनीति के धागे से हमेशा खिंचे चले आएंगे. 
इसलिए संदेश स्पष्ट है : भाजपा को एक गंभीर चेतावनी मिली है.

अब देखना है कि 2019 के चुनावों के पहले के कुछ महीनों में वह कितना डैमेज कंट्रोल कर पाती है. उधर कांग्रेस को भी समझना चाहिए कि उसके लिए अभी उल्लास मनाने का समय नहीं आया है. विपक्षी एकता अभी भी फलीभूत नहीं हुई है. सूक्ष्म स्तर पर कठोर मेहनत करने के बजाय सिर्फ समय-समय पर साथ मिलकर फोटो खिंचवाने भर से उस ‘महागठबंधन’ का निर्माण नहीं हो सकता, जो एकजुट कामकाज और प्रभावी शासन का वादा कर सके. वर्तमान सफलताओं के बावजूद अभी भी यह देखना बाकी है कि अन्य विपक्षी पार्टियों के बीच नेतृत्व के लिए राहुल गांधी की स्वीकार्यता कितनी है. कांग्रेस को कैडर की कमी, आम आदमी से जुड़े संगठन, रणनीतिक योजनाओं, गठबंधन निर्माण क्षमता और संचार कौशल जैसी बातों पर भी ध्यान देना है :

पार्टी को समझना होगा कि अंतत: वह सिर्फ ‘नकारात्मक’ वोटों पर ही निर्भर नहीं रह सकती है, जो वह भाजपा के खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी के रूप में अजिर्त कर रही है. उसमें ‘सकारात्मक’ वोटों को आकर्षित करने की क्षमता भी होनी चाहिए.आगे रोमांचक दिन आने वाले हैं. राजनीतिक वातावरण गरमाए ही रहने की संभावना है, क्योंकि अगले संसदीय चुनावों की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. उम्मीद करें कि उसमें बेहतर पक्ष की ही जीत होगी और मतदाता जो भी फैसला करेंगे, देश को उसका फायदा मिलेगा.

Web Title: Time for contemplation for both Congress and BJP

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