यह राजनीतिक सुधार का विषय है
By अवधेश कुमार | Published: April 17, 2019 09:45 AM2019-04-17T09:45:49+5:302019-04-17T09:45:49+5:30
इस समय चुनाव आयोग ने बसपा प्रमुख मायावती, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्नी योगी आदित्यनाथ, आजम खान तथा मेनका गांधी को कुछ समय के लिए चुनाव अभियान से वंचित किया है
चुनाव के दौरान नेताओं की भाषा पर पहली बार विवाद नहीं हुआ है. इस समय चुनाव आयोग ने बसपा प्रमुख मायावती, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्नी योगी आदित्यनाथ, आजम खान तथा मेनका गांधी को कुछ समय के लिए चुनाव अभियान से वंचित किया है. जो लोग चुनाव आयोग के रवैये को लेकर निराशा प्रकट कर रहे थे उनको इससे हल्का संतोष हो सकता है. किंतु इससे यह उम्मीद कोई नहीं कर सकता कि राजनीति में भाषा की शालीनता का दौर आ जाएगा.
संविधान चुनाव आयोग को निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न कराने का अधिकार देता है. पर इसकी सीमाएं साफ दिखती हैं. यह तो चुनाव आयोग की सक्रियता कहिए कि उसने अपनी भूमिका से चुनाव के दौरान नेताओं और पार्टियों पर डर बैठा दिया है. सच यह है कि कानून के मामले में उसके हाथ बंधे हुए हैं. वैसे जनप्रतिनिधित्व कानून विस्तृत है, किंतु उनमें भी चुनाव आयोग की कार्रवाई की सीमाएं हैं. आयोग को किसी नेता या पार्टी द्वारा जिन धाराओं के उल्लंघन का मामला दिखेगा उसमें वह मुकदमा दर्ज कर सकता है.
उसके बाद सब कुछ न्यायालय पर निर्भर है. जिसे हम चुनावी आचार संहिता कहते हैं, वह चुनाव आयोग की पहल पर राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रक्रिया के दौरान अपने आचरण के संबंध में सर्वस्वीकृत एक संहिता भर है. किसी ने आचार संहिता का उल्लंघन किया तो चुनाव आयोग उसे नोटिस जारी कर जवाब मांगेगा. अगर कोई मानने को तैयार न हो तो चुनाव आयोग का विधि विभाग भारतीय दंड संहिता की पुस्तक से तलाशता है कि यह किस धारा का अपराध होगा. उसके बाद आयोग थाने में उस धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज कराता है. हर चुनाव में ऐसी प्राथमिकियां दर्ज होती हैं. उसके बाद क्या होता है किसी को पता नहीं.
हालांकि इसका यह अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि इन मामलों में कुछ हो ही नहीं सकता. सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने, किसी विशेष संप्रदाय को निशाना बनाने, लोगों को भड़काने, घूस देने, किसी का अपमान करने, सार्वजनिक रूप से अश्लील भाषा का इस्तेमाल करने आदि पर हमारे कानून में व्यापक प्रावधान हैं. इनके तहत मुकदमा दर्ज करके संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है. लेकिन यह प्रशासन की जिम्मेवारी है.
कहने का तात्पर्य यह कि जब आप मूल कारणों पर विचार करते हैं तो साफ हो जाता है कि यह व्यापक राजनीतिक सुधार का विषय है. राजनीति में बदलाव राजनीति के अंदर से ही हो सकता है.