विजय दर्डा का ब्लॉग: दुश्मनी में भी कुछ शराफत तो होनी ही चाहिए

By विजय दर्डा | Published: September 16, 2019 06:04 AM2019-09-16T06:04:23+5:302019-09-16T06:04:23+5:30

दुर्भाग्य से न्यूज चैनलों ने टीवी स्क्रीन को जंग का मैदान बना दिया है. ऐसा लग रहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच टीवी के पर्दे पर जंग चल रही है और जम्मू-कश्मीर का फैसला इसी पर्दे पर हो जाएगा! कितनी अजीब बात है न!

There must be some modesty in the enmity | विजय दर्डा का ब्लॉग: दुश्मनी में भी कुछ शराफत तो होनी ही चाहिए

प्रतीकात्मक फोटो

Highlightsदुर्भाग्य की बात है कि हिंदी न्यूज चैनलों में शालीनता तो लगभग खत्म ही हो चुकी है. ऐसा लग रहा है कि कौन ज्यादा अपशब्द बोल सकता है, इसकी प्रतियोगिता हो रही है.एंकर एकपक्षीय होने लगे और डिस्कशन चौपट होता चला गया.

अपनी व्यस्तताओं की वजह से मैं अमूमन टीवी न्यूज चैनल कम ही देख पाता हूं लेकिन जितना भी देखता हूं, यह तो महसूस हो ही जाता है कि हिंदी न्यूज चैनलों की भाषा गिरती जा रही है. खासकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के इन दिनों में दोनों देशों के ज्यादातर चैनल चिंताजनक रूप से बेलगाम हो गए हैं. राष्ट्रवाद के नाम पर जिस तरह की उत्तेजक भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसे पत्रकारिता के मापदंडों में कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता है.

मैं पत्रकारिता को कई दशकों से जी रहा हूं, इसलिए जब मैं इस विधा के किसी भी स्वरूप में किसी भी रूप में गंदगी को प्रवेश करते हुए देखता हूं तो बहुत दुख होता है. यदि कुछ हिंदुस्तानी न्यूज चैनल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान या कोई पाकिस्तानी न्यूज चैनल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में गलत शब्दों का उपयोग करता है तो क्या यह सही है? बिल्कुल नहीं. दोनों ही अपने-अपने देश के प्रधानमंत्री हैं. यह पद गरिमामय है और इस पर टिप्पणी करने से पहले मीडिया को यह ध्यान जरूर रखना चाहिए कि शालीनता भंग न हो! दुर्भाग्य की बात है कि हिंदी न्यूज चैनलों में शालीनता तो लगभग खत्म ही हो चुकी है. बस एक-दो चैनल ही ऐसे नजर आ रहे हैं जिनके लिए भाषा अभी भी मायने रखती है. ज्यादातर चैनल तो गाली गलौज पर उतर आए हैं. ऐसा लग रहा है कि कौन ज्यादा अपशब्द बोल सकता है, इसकी प्रतियोगिता हो रही है.

पाकिस्तान में क्या हो रहा है, मेरे लिए यह ज्यादा चिंता का विषय नहीं है, लेकिन जो हिंदुस्तान में हो रहा है, उससे मैं आहत हूं. यह हमारी संस्कृति नहीं है. हम उस संस्कृति के लोग हैं जो दुश्मनों के साथ भी कुछ शराफत रखते हैं. हमारे न्यूज चैनलों को कम से कम अपनी संस्कृति का तो खयाल रखना ही चाहिए. भाषाई रूप से न्यूज चैनलों की बेलगामी से सिर्फ मैं ही नहीं, देश का हर पढ़ा-लिखा और विचारवान तबका परेशान है. ये तबका इस बात से भी परेशान है कि हमारे ज्यादातर न्यूज चैनलों के एंकर इतना चिल्लाते क्यों हैं? पता नहीं क्यों न्यूज चैनलों में चिल्लाने की प्रतिस्पर्धा पैदा हो गई है.

एक सबसे गंभीर बात यह है कि न्यूज चैनलों में किसी भी विषय को लेकर बहस का जो स्वरूप अभी चल रहा है, वह भी चीखने-चिल्लाने का शिकार हो गया है. भारत में जब टीवी इंडस्ट्री की शुरुआत हुई तो उसमें ज्यादातर पत्रकार प्रिंट मीडिया से ही गए थे. वे किसी भी विषय पर बहस की महत्ता को समझते थे इसलिए डिस्कशन की परंपरा शुरू हुई. लक्ष्य यह होता था कि विषय की गंभीर समझ रखने वाले लोगों और विशेषज्ञों को एक मंच पर लाया जाए ताकि पाठकों को विषय के विभिन्न संदर्भो से परिचित कराया जा सके. कोई दस साल पहले तक स्थिति ठीकठाक ही थी लेकिन उसके बाद गड़बड़ होनी शुरू हुई. धीरे-धीरे बहस पर राजनीतिक दलों के प्रवक्ता हावी होने लगे. एंकर एकपक्षीय होने लगे और डिस्कशन चौपट होता चला गया.

अभी एक दिन मैं देख रहा था कि एक चैनल पर पाकिस्तान से दो गेस्ट जुड़े हुए थे. मुङो उम्मीद थी कि दोनों पक्षों में कुछ सार्थक बातचीत होगी लेकिन थोड़ी ही देर बाद टीवी का एंकर तू-तड़ाक पर उतर आया. एंकर ने पाकिस्तानी गेस्ट से यहां तक कह दिया कि तुम्हारे घर में घुस कर मारूंगा! मैं अवाक था! यह कौन सी पत्रकारिता है? यदि आपने किसी को गेस्ट के तौर पर बुलाया है तो उसका सम्मान करना आपकी जिम्मेदारी है. यदि वह कोई गलत बात कह रहा है तो उसका जवाब शब्दों से दिया जा सकता है. डिस्कशन में मारपीट की बात करना क्या बेलगामी नहीं है?

दुर्भाग्य से न्यूज चैनलों ने टीवी स्क्रीन को जंग का मैदान बना दिया है. ऐसा लग रहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच टीवी के पर्दे पर जंग चल रही है और जम्मू-कश्मीर का फैसला इसी पर्दे पर हो जाएगा! कितनी अजीब बात है न! दरअसल टीवी इंडस्ट्री को इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा. सभी चैनलों को एक साथ बैठना होगा और पत्रकारिता के मापदंडों के आईने में अपनी सूरत देखनी होगी! 

हालांकि इस भाषाई बेलगामी के बीच भी मैं निराश नहीं हूं क्योंकि बहुत से ऐसे पत्रकार हैं जिन्होंने भाषा की लाज अभी रखी हुई है. हमारे देश में तो ऐसे पत्रकार हैं ही, मैं पाकिस्तान के एक पत्रकार नजम सेठी का नाम जरूर लेना चाहूंगा. वे जब भी भारतीय नेताओं का नाम लेते हैं तो ‘जी’ या ‘साहब’ का संबोधन जोड़ना नहीं भूलते. हालांकि उनके मशहूर कार्यक्रम ‘सेठी से सवाल’ को पाकिस्तान में ऑफ एयर कर दिया गया है क्योंकि वे सच बोलते हैं. मेरी नजर में सच और शालीनता ही तो पत्रकारिता का धर्म है. आप दुनिया के मशहूर न्यूज चैनलों बीबीसी, सीएनएन, अल जजीरा, रशियन टीवी, टीवी फ्रांस या किसी भी और चैनल को देखिए, उनके एंकर चिल्लाते नहीं हैं. शालीनता के साथ बात करते हैं.

Web Title: There must be some modesty in the enmity

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