भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: रिजर्व बैंक के रिजर्व को कम करने के जोखिम भी कम नहीं
By भरत झुनझुनवाला | Published: September 15, 2019 06:07 AM2019-09-15T06:07:02+5:302019-09-15T06:07:02+5:30
रिजर्व बैंक ने अपनी सम्पूर्ण आय को सरकार को हस्तांतरित करके, अपने रिजर्व को न्यूनतम सीमा पर लाकर और रिजर्वो में विदेशी रकम के हिस्से की अनदेखी करके भारत की वित्तीय सुरक्षा को दांव पर लगा दिया है.
गत माह रिजर्व बैंक ने भारत सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए की विशाल रकम हस्तांतरित की है. इस रकम का बड़ा हिस्सा रिजर्व बैंक द्वारा वर्ष 2018-19 में अर्जित की गई आय है जो कि 1.3 लाख करोड़ रुपए बैठती है. आय की इस सम्पूर्ण रकम को रिजर्व बैंक ने भारत सरकार को हस्तांतरित कर दिया है. रिजर्व बैंक द्वारा हस्तांतरित की गई दूसरी रकम उसके रिजर्व का हिस्सा है. रिजर्व बैंक द्वारा अपनी आय में से कुछ हिस्सा भविष्य में संभावित संकट से उबरने के लिए सुरक्षित कर लिया जाता है.
वर्ष 2012 में रिजर्व बैंक ने 27 हजार करोड़ रुपए अपनी आय में से रिजर्व में डाले थे. 2013 में रिजर्व बैंक ने 28 हजार करोड़ रुपए पुन: अपने रिजर्व में डाले. लेकिन वर्ष 2013 के बाद रिजर्व बैंक ने एक रुपया भी अपने रिजर्व में नहीं डाला है बल्कि अब रिजर्व बैंक ने अपनी नीति बदलते हुए इसमें पूर्व में डाली गई राशि को निकालने का काम शुरू किया है.
प्रश्न उठता है कि रिजर्व बैंक को भविष्य के संकट से उबरने के लिए कितनी रकम रिजर्व के रूप में रखनी चाहिए? भारत सरकार ने रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में इस विषय के ऊपर मार्गदर्शन करने को एक कमेटी बनाई थी. कमेटी ने सुझाव दिया कि रिजर्व बैंक को अपनी कुल संपत्ति का 20.0 से 24.5 प्रतिशत रिजर्व में रखना चाहिए.
वर्तमान में रिजर्व बैंक की कुल संपत्ति का 23.3 प्रतिशत रिजर्व में था यानी जालान कमेटी द्वारा बताई गई उपयुक्त रिजर्व की सीमा के बीच में ही रिजर्व बैंक के रिजर्व की मात्रा थी. लेकिन रिजर्व बैंक ने निर्णय लिया कि वर्तमान में उपलब्ध 23.3 प्रतिशत पूंजी को रिजर्व में रखने के स्थान पर वह अब केवल 20.0 प्रतिशत संपत्ति को ही रिजर्व में रखेगी.
विचारणीय विषय है कि यदि बिमल जालान कमेटी ने 20.0 से लेकर 24.5 प्रतिशत की रिजर्व की सीमा बताई थी तो इससे अधिक होने पर ही यानी 24.5 प्रतिशत से अधिक होने पर ही इन रिजर्व को कम करना उचित होता. लेकिन रिजर्व बैंक अपने रिजर्वो को उचित सीमा में होने के बावजूद न्यूनतम स्तर पर लाया.
रिजर्व की मात्रा के निर्धारण में भी पेंच है. रिजर्व बैंक के कुल रिजर्व 960 हजार करोड़ रु. हैं. इनमें 690 हजार करोड़ रुपए विदेशी मुद्रा अथवा सोने के रूप में रखी हुई है. यद्यपि ये रिजर्व वास्तव में रिजर्व है और जरूरत पड़ने पर इन्हें बेचकर अपने संकट से उबरा जा सकता है, लेकिन यहां भी एक सीमा है. यदि देश पर वित्तीय संकट आया और रिजर्व बैंक ने सोने को विश्व बाजार में बेचना शुरू किया तो सोने के दाम धड़ाधड़ नीचे आ जाएंगे और संकट से उबरने के लिए हमें अपेक्षित रकम नहीं मिलेगी.
690 हजार करोड़ रु. के विदेशी रिजर्व का दूसरा हिस्सा विदेशी मुद्रा अथवा विदेशी सरकारों द्वारा जारी किए गए बांड के रूप में रिजर्व बैंक के पास है. इस संपत्ति को भी आवश्यकता पड़ने पर तत्काल बेचना कठिन है, कारण कि इसका सीधा प्रभाव उन बांड के विश्व बाजार के दाम पर पड़ेगा. इसलिए हमारे 960 हजार करोड़ रुपए के कुल रिजर्व में से 690 हजार करोड़ के रिजर्व वास्तव में जड़ रिजर्व हैं जो कि लचीले नहीं हैं और शेष 270 हजार करोड़ रु. मात्र ही देश में उपलब्ध रिजर्व हैं. रिजर्व बैंक के सचल रिजर्व कुल संपत्ति के मात्न 7 प्रतिशत हैं जो कि बिमल जालान कमेटी द्वारा बताए गए न्यूनतम 20 प्रतिशत से बहुत कम है.
रिजर्व बैंक ने अपनी सम्पूर्ण आय को सरकार को हस्तांतरित करके, अपने रिजर्व को न्यूनतम सीमा पर लाकर और रिजर्वो में विदेशी रकम के हिस्से की अनदेखी करके भारत की वित्तीय सुरक्षा को दांव पर लगा दिया है. निश्चित ही इससे भारत सरकार को तत्काल एक विशाल रकम उपलब्ध हो गई है. भारत सरकार आर्थिक मंदी के कारण राजस्व में हो रही कमी के बावजूद अपने खर्चो को पोषित कर सकेगी, परंतु आने वाले समय में हमारी आर्थिक संकट का सामना करने की क्षमता का ह्रास हो गया है.