संतोष देसाईः राजनीति में जुड़े शारीरिक श्रम

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: January 31, 2019 10:08 PM2019-01-31T22:08:32+5:302019-01-31T22:08:32+5:30

देश भर के जिम इस बात की गवाही देते हैं कि लोगों में अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है। तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल से, एक स्तर पर अब हमें शारीरिक श्रम की आवश्यकता नहीं रह गई है।

The Politics of Pain Political physical pain | संतोष देसाईः राजनीति में जुड़े शारीरिक श्रम

संतोष देसाईः राजनीति में जुड़े शारीरिक श्रम

जो लोग अलसुबह उठने के आदी नहीं होते, अगर कभी-कभार जल्दी उठ जाएं तो उन्हें अपने आसपास के इलाके में एक नया ही दृश्य देखने को मिलता है। सभी आयुवर्ग के लोग चलते, दौड़ते, व्यायाम करते या साइकिलिंग करते नजर आते हैं।

किसी प्रकार की शारीरिक गतिविधि की आवश्यकता स्पष्ट रूप से स्वास्थ्य और फिटनेस के बारे में बढ़ती चेतना से जुड़ी हुई है। देश भर के जिम इस बात की गवाही देते हैं कि लोगों में अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है। तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल से, एक स्तर पर अब हमें शारीरिक श्रम की आवश्यकता नहीं रह गई है। इसलिए अगर हम व्यायाम न करें तो शरीर आलसी होता जाता है। शारीरिक व्यायाम वैसे तो कई उद्देश्यों को पूरा करता है, लेकिन एक मूलभूत बात यह है कि यह तनाव दूर करता है। इसके अतिरिक्त जो भावना सामूहिक शारीरिक परिश्रम से उत्पन्न होती है, उसे किसी अन्य क्रिया द्वारा प्रतिस्थापित करना मुश्किल है।

युवाओं के लिए विशेष रूप से शारीरिक गतिविधियां  ऐसा उपकरण हैं जिनके माध्यम से आदर्शो को प्रत्यारोपित किया जाता है। धार्मिक समझ इस काम को देखने के लिए अच्छी जगह है।  त्यौहारों पर होने वाले आयोजन लोगों को सामूहिक रूप से शारीरिक गतिशीलता का अवसर देते हैं। शारीरिक गतिविधि का ही एक उदाहरण देश भर में लोगों द्वारा निजी तौर पर की जाने वाली पदयात्रएं या घुमक्कड़ी है, जिससे हासिल होने वाले अनुभव को भुला पाना मुश्किल होता है। शारीरिक गतिविधि शरीर के भीतर क्रोध की मौजूदगी को भी कम करती है और आदर्श की भावना का निर्माण करती है। कुछ करने की भावना ही है जो सामूहिक कार्यो में युवाओं की भागीदारी को दर्शाती है।

शारीरिक गतिविधि की राजनीति की देश में परंपरा रही है, खासकर आजादी के आंदोलन के काल में। गांधीवादी तरीकों में शारीरिक श्रम के महत्व पर विशेष जोर दिया जाता था- चाहे वह सफाई के कार्यो की शुरुआत हो, आंदोलन के रूप में पदयात्र हो या चरखा चलाना। एक जीवंत आंदोलन से संबंधित होने की भावना को भौतिक रूप में शारीरिक गतिविधि ही बदलती है। आज राजनीति सड़कों के बजाय सोशल मीडिया और टीवी स्टूडियो में ही सिमटी दिखाई देती है। यही कारण है कि कई ज्वलंत मुद्दे अक्सर जमीनी राजनीतिक आंदोलनों में तब्दील नहीं होते हैं। शायद समय आ गया है कि शब्दों की राजनीति को अब शारीरिक गतिविधियों की राजनीति का साथ मिले।

Web Title: The Politics of Pain Political physical pain

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