पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: दस घंटे में कर्ज माफी के मायने

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: December 19, 2018 07:54 AM2018-12-19T07:54:37+5:302018-12-19T07:54:37+5:30

न मंत्रियों का शपथ ग्रहण न कैबिनेट की बैठक. सत्ता बदली और मुख्यमंत्नी पद की शपथ लेते ही किसानों की कर्ज माफी के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए

Ten Hours of Debt Waiver | पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: दस घंटे में कर्ज माफी के मायने

फाइल फोटो

न मंत्रियों का शपथ ग्रहण न कैबिनेट की बैठक. सत्ता बदली और मुख्यमंत्नी पद की शपथ लेते ही किसानों की कर्ज माफी के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए. यह वाकई पहली बार है कि राजनीति ने इकोनॉमी को हड़प लिया या फिर राजनीतिक अर्थशास्त्न ही भारत का सच हो चला है.  राजनीतिक सत्ता के लिए देश की इकोनॉमी से जो खिलवाड़ बीते चार बरस में किया गया उसने विपक्ष को नए संकेत यही दे दिए कि इकोनॉमी संभलती रहेगी, पहले सत्ता पाने और फिर संभालने के हालात पैदा करना जरूरी है. हुआ भी यही. कर्ज में डूबे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सत्ता पंद्रह बरस बाद कांग्रेस को मिली तो बिना लाग लपेट दस दिनों में कर्ज माफी का ऐलान दस घंटे के भीतर कर दिखाया और वह सारे पारंपरिक सवाल हवा हो गए कि राज्य का बजट इसकी इजाजत देता है या नहीं. 

दरअसल, मोदी सत्ता ने जिस तरह सरकार चलाई है उसमें कोई सामान्यजन भी आंखें बंद कर कह सकता है कि नोटबंदी आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक फैसला था. जीएसटी को जिस तरह लागू किया गया वह आर्थिक नहीं राजनीतिक फैसला है. रिजर्व बैंक में जमा तीन करोड़ रुपया बाजार में लगाने के लिए मांग करना भी आर्थिक नहीं राजनीतिक जरूरत है.

पहले दो फैसलों ने देश की आर्थिक कमर को तोड़ा तो रिजर्व बैंक के फैसले ने ढहती इकोनॉमी का खुला इजहार किया. फिर बाकायदा नोटबंदी और जीएसटी के वक्त मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रrाण्यम ने जब पद छोड़ा तो बाकायदा किताब (ऑफ काउंसिल, द चैलेंज ऑफ मोदी-जेटली इकोनॉमी) लिखकर दुनिया को बताया कि नोटबंदी का फैसला आर्थिक विकास के लिए कितना घातक था और जीएसटी ने इकोनॉमी को कैसे उलझा दिया. दूसरी तरफ कांग्रेस के करीबी माने जाने वाले रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि किसानों की कर्ज माफी से किसानों के संकट दूर नहीं होंगे और संयोग से जिस दिन रघुराम राजन यह कह रहे थे उसी दिन मध्य प्रदेश में कमलनाथ तो छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सीएम पद की शपथ लेते ही कर्ज माफी के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर रहे थे. 

तो सवाल तीन हैं - पहला, क्या राजनीति और इकोनॉमी की लकीर मिट चुकी है? दूसरा, क्या 1991 की लिबरल इकोनॉमी की उम्र अब पूरी हो चुकी है? तीसरा, क्या ग्रामीण भारत के मुश्किल हालात अब मुख्यधारा की राजनीति को चलाने की स्थिति में आ गए हैं. ये तीनों सवाल ही 2019 की राजनीतिक बिसात कुछ इस तरह बिछा रहे हैं जिसमें देश अब पीछे मुड़कर देखने की स्थिति में नहीं है.

Web Title: Ten Hours of Debt Waiver

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