Blog: बस एक ही धुन सवार है- मुझे मेरा टीचर लौटा दो

By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: June 26, 2018 10:12 AM2018-06-26T10:12:58+5:302018-06-26T10:43:50+5:30

आजकल एस ऐसा नजारा सोशल मीडिया के जरिए देखने को मिला है जिससे साफ हो गया है कि आज भी छात्रों के लिए उनके गुरू ही सब कुछ होते हैं।

teacher can be bhagwan for kids if you treat them alike transfer chennai | Blog: बस एक ही धुन सवार है- मुझे मेरा टीचर लौटा दो

Blog: बस एक ही धुन सवार है- मुझे मेरा टीचर लौटा दो

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय.... ये दोहा अक्सर शिक्षक दिवस के मौके पर ज्यादा याद आता है। लेकिन आजकल एस ऐसा नजारा सोशल मीडिया के जरिए देखने को मिला है जिससे साफ हो गया है कि आज भी छात्रों के लिए उनके गुरू ही सब कुछ होते हैं।  ऐसा माना जाता है कि किसी भी बच्चे के पालन पोषण और उसकी परवरिश में उसके घर के बाद अगर किसी का अहम् योगदान होता है तो उस जीवन को जीने का सही तरीका सही मुकाम एक शिक्षक देता है। शायद इसी कारण से ही एक गुरू छात्र के रिश्ते को बेहद पवित्र माना जाता है।

ये सब शायद इसलिए ही आज याद आ रहा है क्योंकि हाल ही में   चेन्नई के वेल्लियाग्राम स्थित स्कूल के ट्रांसफर हो जाने से बच्चे धरने पर उतर आए हैं वह अपने टीचर को कहीं और जाने देने को तैयार नहीं हैं। 28 साल के भगवान जब स्कूल के गेट से बाहर जाने लगे तो उन्हें चारों तरफ से बच्चों ने घेर रखा था। दरअसल वो सभी बच्चे उन्हें स्कूल से जाने से रोक रहे थे। आंखों में आंसू लिए इन बच्चों को सिर्फ को धुन सवार थी कि अपने टीचर को हम यहां से जाने नहीं देंगे। ये एक टीचर के प्रति इन विद्यार्थियों की निष्क्षल प्रेम ही तो है। 

आज के समय में स्कूली बच्चों में अपने टीचर के लिए ऐसा प्यार बहुत कम देखने के लिए मिलता है। जैसे ही इन बच्चों को अपने टीचर के ट्रांसफर की खबर मिली थी ये धरने पर उतर आए थे।  खास बात ये है कि इन बच्चों का साथ इनके माता पिता ने भी दिया । अपने इस विरोध के जरिए वो सरकार को ये दिखाना चाहते थे कि ये फैसला बच्चों को स्वीकार्य नहीं है। सोचने की बात ये भी है कि एक शिक्षक में ऐसी क्या बात है कि हर एक छात्र उनको रोक रहा है। दरअसल वहां के छात्रों की मानें को वह स्कूल में सबसे ज्यादा सहायता वो ही करते थे, वह कई बच्चों के लिए तो वो बड़े भाई की तरह हैं। 

उन्होंने बच्चों को सिलेबस के बंधन में नहीं बांधा. सिलेबस के अलावा वो बच्चों को सामान्य ज्ञान, सामाजिक सेवा, अपने स्किल को बढ़ाने और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए तैयार करते थे। ताकि बच्चों को नौकरी मिल जाए और उनका जीवन संवर जाए। खैर भगवान के ट्रांसफर को रोकने के लिए कोशिश की जा रही है।

अक्सर बच्चों को पीटने की ऐसी शिकायतें सामने आईं कि कोर्ट को बीच में आना पड़ा और बच्चों के प्रति शिक्षकों की कठोरता पर लगाम लगी। लेकिन इन  सब के बावजूद आज भी अगर मैं पीछे पलटकर अपने बचपन को याद करती हूं तो मेरी शैतानियों, मां पापा के बाद अगर कोई एक चीज याद आती है तो मेरे टीचर। शिक्षक अच्छे मुझे भी मिले लेकिन शायद कोई ऐसी टीचर जिसको मैं भी जाने से रोकती जो गए वो आज भी याद हैं। उनकी सीख जिंदा है।

कुछ टीचर बहुत सख्त होते हैं और कुछ ऐसे कि उनके बगैर फिर स्कूल सूना लगने लगता है, लेकिन फिर भी गाहे बगाहे शिक्षकों के प्रति बच्चों के प्रेम की कुछ कहानियां हमारे सामने आईं हैं और वो ऐसी कहानियां हैं जिन्होंने हमारी आंखों के कोरों को भिंगा दिया है। ऐसी ही इन बच्चों और टीचर की कहानी है जो हर किसी के लिए आज प्रेरणादायक कही जा सकती है।

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