वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः मरहम बन सकता है ‘जहर’
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 15, 2018 07:05 PM2018-12-15T19:05:30+5:302018-12-15T19:05:30+5:30
याचिका दायर करने वाले डॉ. अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और प्रशांत भूषण सर्वोच्च न्यायालय से उसके फैसले पर पुनर्विचार की मांग जरूर करेंगे, क्योंकि उनके तथ्यों और तर्को को यह फैसला संतोषजनक ढंग से काट नहीं पाया है.
राफेल-सौदे के बारे में सर्वोच्च न्यायालय की राय ने आज भाजपा में नई जान फूंक दी है. तीन हिंदी राज्यों में पटखनी खाई भाजपा अपने घाव सहला रही थी कि अदालत ने उसे एक मरहम थमा दिया. उसे मरहम समझकर सरकार और भाजपा के नेता फूले नहीं समा रहे हैं लेकिन वे यह नहीं समझ पा रहे कि जजों ने सभी याचिकाओं को इस तरकीब से रद्द किया है कि यह मलहम जहर की पुड़िया बन सकता है.
याचिका दायर करने वाले डॉ. अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा और प्रशांत भूषण सर्वोच्च न्यायालय से उसके फैसले पर पुनर्विचार की मांग जरूर करेंगे, क्योंकि उनके तथ्यों और तर्को को यह फैसला संतोषजनक ढंग से काट नहीं पाया है. वे इसकी मांग करें या न करें और अदालत उसे माने या न माने, एक बात पक्की है कि अदालत ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हाथ में अग्निबाण थमा दिया है.
किसी ने भी राफेल विमान की क्षमता पर सवाल नहीं उठाया है. इन याचिकाओं का सबसे बड़ा सवाल यह था कि 500 करोड़ का जहाज 1600 करोड़ में क्यों खरीदा गया? यह अत्यंत गंभीर आरोप है. इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने दो-टूक शब्दों में कह दिया कि राफेल की कीमतों के झंझट में पड़ना इस अदालत का काम नहीं है. राफेल-सौदे के बारे में दो और भी सवाल थे.
एक तो यह कि खरीद की प्रक्रि याओं का उल्लंघन हुआ है. इसके बारे में अरुण शौरी का कहना है कि अदालत गहरे में उतरी ही नहीं और उसने सरकारी सफाई को जस का तस मान लिया है. याचिकाकर्ताओं का मानना है कि अदालत ने सरकार के तर्को से सहमति जताकर ठीक नहीं किया.
मेरा मानना है कि अदालत ने राफेल की कीमतों के बारे में मौन धारण करके एक नए राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है. यह भाजपा को बहुत महंगा पड़ेगा. राफेल की कीमतों के सवाल का बहुत ही संतोषजनक जवाब दिया जा सकता था. उसे जितना छिपाया जा रहा है, वह उतना ही सिर पर चढ़कर बोलेगा.