Supreme Court on bulldozer action: न्याय व्यवस्था के प्रति आस्था बढ़ाने वाला फैसला
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 14, 2024 05:32 AM2024-11-14T05:32:48+5:302024-11-14T05:32:48+5:30
Supreme Court on bulldozer action: सर्वोच्च न्यायालय के बुधवार को सुनाए गए फैसले से न्यायपालिका तथा कानून के राज के प्रति आम आदमी का विश्वास मजबूत होगा.
Supreme Court on bulldozer action: किसी व्यक्ति के गंभीर अपराध में लिप्त होने का संदेह होने या अपराध में दोषी करार देने पर उसकी संपत्ति ढहा देने पर सर्वोच्च न्यायालय ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है और इस संबंध में स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए हैं. न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सरकारी अधिकारी खुद को न्यायाधीश न समझें और न ही न्यायालयीन अधिकारों का उपयोग करने का दुस्साहस दिखाएं. सर्वोच्च न्यायालय के बुधवार को सुनाए गए फैसले से न्यायपालिका तथा कानून के राज के प्रति आम आदमी का विश्वास मजबूत होगा.
अपराधियों को दंडित करने के नाम पर अधिकारों के दुरुपयोग की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी. विभिन्न अपराधों के आरोपियों की संपत्ति को मनमाने ढंग से ध्वस्त करने की कार्रवाई के विरुद्ध शामिल याचिकाओं का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति भूषण गवई तथा न्यायमूर्ति के.बी. विश्वनाथन की पीठ ने बुलडोजर संस्कृति पर गहरी चिंता जताई और साफ शब्दों में कहा कि महज किसी अपराध में आरोपी होने पर किसी व्यक्ति का घर मनमाने ढंग से गिरा देना कानून के सिद्धांतों के विपरीत है. कार्यपालक अधिकारी न्यायाधीश नहीं हो सकते, वे आरोपी को दोषी करार नहीं दे सकते और न ही उसका घर गिरा सकते हैं.
किसी भी गंभीर अपराध के आरोपी को तत्काल दंडित करने के नाम पर बुलडोजर से रातों-रात उसका घर गिरा देने का चलन सबसे पहले उत्तर प्रदेश में शुरू हुआ और बाद में अन्य राज्य सरकारें भी इस प्रवृत्ति का अनुकरण करने लगीं. किसी भी अपराधी को कानूनी प्रावधानों के तहत सख्त से सख्त सजा देने पर कोई एतराज नहीं है लेकिन देश में हर अपराध के लिए कानून बने हुए हैं.
कानूनों के तहत जांच एजेंसियां जांच करती हैं और उसके बाद संबंधित आरोपी के विरुद्ध आरोपपत्र दायर किया जाता है. उस पर अदालत में सुनवाई होती है और दोषी करार दिए जाने के बाद आरोपी को सजा सुनाई जाती है. अपने बचाव में आरोपी सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटा सकता है. वहां भी अगर वह दोषी करार दिया जाता है तो उसे निर्धारित सजा भुगतनी पड़ती है.
इसके बाद भी अधिकारियों को यह अधिकार नहीं मिल जाता कि उसका घर ध्वस्त कर उसके परिवार को सड़क पर ला दिया जाए. हाल के वर्षों में संदिग्ध अपराधियों के घरों को नोटिस दिए बिना या 24 घंटे का नोटिस देकर ढहा देने की घटनाएं सामने आई हैं. इससे यह संदेश निश्चित रूप से गया कि सरकार का रवैया अपराधियों के प्रति बेहद सख्त है.
वह किसी भी कीमत पर अपराधों को नियंत्रित करने के प्रति कृतसंकल्प है. समाज के एक बड़े वर्ग का सरकार के रवैये को समर्थन भी प्राप्त हुआ लेकिन यह भी सच है कि जो कुछ किया जा रहा था, वह कानून के सिद्धांतों और नागरिकों के बुनियादी अधिकारों के सरासर खिलाफ था. देश की विभिन्न अदालतों में सार्वजनिक संपत्ति पर अतिक्रमण करने के लाखों मामले विचाराधीन हैं.
इस बात के ठोस सबूत हैं कि सरकारी जमीन या अन्य संपत्ति पर अतिक्रमण किया गया है लेकिन संबंधित सरकारों ने उन अतिक्रमणों को अल्पकालिक नोटिस देकर ध्वस्त नहीं करवाया. इस सब मामलों में कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है जिसके कारण अतिक्रमण साफ-साफ नजर आने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है.
ऐसे में बलात्कार, बलात्कार के प्रयास, हत्या या अन्य गंभीर अपराधों के आरोपियों के घर तत्काल ढहा देने की कार्रवाई को कानून के तहत जायज नहीं ठहराया जा सकता. अगर किसी व्यक्ति ने अपराध किया हो तो उसे अदालत में साबित होने देना चाहिए और अदालत द्वारा सुनाई गई सजा वह अपराधी भुगते लेकिन कहीं किसी कानून में यह प्रावधान नहीं है कि अपराधी की संपत्ति को ढहा दिया जाए.
अपराधी के लंबे समय तक फरार रहने पर अदालत के आदेश पर उसकी संपत्ति कुर्क की जा सकती है. नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे आर्थिक मामलों के अपराधियों के संदर्भ में ऐसा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि किसी एक व्यक्ति के अपराध करने पर उसका पूरा परिवार अपराधी करार नहीं दिया जा सकता और न ही उसके घर को ढहाने का अधिकार प्रशासन को मिल जाता है. यदि अदालत ने किसी अतिक्रमण को ध्वस्त करने का आदेश दे भी दिया तो उसके लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है.
अतिक्रमणकारी को वह जगह खाली करने के लिए पर्याप्त समय देना पड़ता है. इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि किसी आरोपी के घर पर तुरंत बुलडोजर चला देने से अपराध खत्म हो जाएंगे. उत्तर प्रदेश में यौन अपराधों तथा हत्या जैसे जघन्य अपराधों के आरोपियों के घरों पर बुलडोजर तो चले, इसके बावजूद अपराध नहीं थमे. ऐसी कार्रवाई से यह संदेह पैदा होने लगता है कि देश में कानून का राज है या नहीं?
ऐसा प्रतीत होने लगा था कि न्यायपालिका के अधिकारों की भी संबंधित राज्य सरकारों को परवाह नहीं है और वे खुद को सर्वोच्च समझने लगी हैं. सर्वोच्च न्यायालय के बुधवार के आदेश से यह उम्मीद बंधी है कि अब मनमाने ढंग से किसी के घर को ध्वस्त नहीं किया जाएगा. अपराधियों को जल्द से जल्द सजा मिलनी चाहिए लेकिन इसके लिए निर्धारित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना अत्यंत आवश्यक है.