वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉगः बड़ी अदालत में अपनी भाषाएं
By वेद प्रताप वैदिक | Published: July 7, 2019 09:39 AM2019-07-07T09:39:15+5:302019-07-07T09:39:15+5:30
कानून की अंग्रेजी भाषा अपने आप में इतनी उलझी हुई होती है और उसके वाक्य इतने पेचीदा और लंबे होते हैं कि हमारा कानून जादू-टोना बनकर रह जाता है. हमारे बड़े-बड़े जज और वकील उन अंग्रेजी शब्दों के बाल की खाल उधेड़ने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि न्याय एक कोने में धरा रह जाता है.
आजादी के 70 साल बाद हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने सराहनीय पहल की है. अब उसने कहा है कि उसके अंग्रेजी फैसलों का संक्षिप्त अनुवाद छह भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध हो सकेगा ताकि जज और वकील ही नहीं, मुकदमा लड़ने वाले साधारण लोग भी फैसले की मोटी-मोटी बात समझ सकें. मैं पूछता हूं कि फैसलों का अनुवाद क्यों, मूल फैसला ही आप हिंदी में देना शुरू क्यों नहीं करते? अंग्रेजी में कानून, अंग्रेजी में बहस और अंग्रेजी में फैसला.. यह भारत की अदालत है!
कानून की अंग्रेजी भाषा अपने आप में इतनी उलझी हुई होती है और उसके वाक्य इतने पेचीदा और लंबे होते हैं कि हमारा कानून जादू-टोना बनकर रह जाता है. हमारे बड़े-बड़े जज और वकील उन अंग्रेजी शब्दों के बाल की खाल उधेड़ने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि न्याय एक कोने में धरा रह जाता है. इसीलिए हमारी अदालतों में लाखों मुकदमे बरसों से लटके रह जाते हैं. अंग्रेजी में चलने वाली बहस के कारण मौत की सजा पाने वाले को यह पता ही नहीं चलता कि उसको यह सजा क्यों हुई है?
हमारी अदालतों को इस दुर्दशा से कब मुक्ति मिलेगी, भगवान ही जाने. इसीलिए मुझे डर है कि अंग्रेजी फैसलों के अनुवाद की भाषा कहीं अंग्रेजी से भी अधिक उलझी हुई न हो. फिर भी यह एक अच्छी शुरु आत है. 1965 में जब भाषा आंदोलन के कारण मैं जेल में था तो मैंने सुना था कि डॉ. लोहिया ने भी जेल से आकर सर्वोच्च न्यायालय में अपनी बहस हिंदी में की थी. हम तभी से मांग कर रहे हैं कि बड़ी अदालतों का सारा कामकाज हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में हो.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने केरल में जजों और वकीलों के एक बड़े समारोह में इस मुद्दे को दो-टूक शब्दों में उठा दिया था. इस उत्तम फैसले का श्रेय राष्ट्रपति को तो है ही, उनके साथ-साथ प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को भी है, जिन्होंने इसे लागू कर दिया. अब शिक्षा मंत्नी डॉ. रमेश पोखरियाल कानून की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में शुरू करवाएं और नए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला पहल करें कि अब भारत के कानून हिंदी में ही बनें. कुछ दिनों के लिए उनके अंग्रेजी अनुवाद की अनुमति दी जा सकती है.