प्रमोद भार्गव का ब्लॉगः कार्बन उत्सर्जन रोकने में सफलता

By प्रमोद भार्गव | Published: December 12, 2019 11:43 PM2019-12-12T23:43:12+5:302019-12-12T23:43:12+5:30

जलवायु परिवर्तन के असर पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि सन 2100 तक धरती के तापमान में वृद्धि को नहीं रोका गया तो हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे. क्योंकि इसका सबसे ज्यादा असर खेती पर पड़ रहा है. धरती की नमी घट रही है और शुष्कता बढ़ रही है.

Success in stopping carbon emissions, Climate change, Power Generation | प्रमोद भार्गव का ब्लॉगः कार्बन उत्सर्जन रोकने में सफलता

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भारत पहली बार इस वर्ष के जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में शीर्ष दस देशों में शामिल हुआ है. स्पेन की राजधानी मैड्रिड में ‘कॉप 25’ जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में यह रिपोर्ट जारी की गई. भारत में अब तक ऊर्जा आवश्यकताओं और पर्यावरण सरंक्षण के बीच संतुलन साधने के बावजूद कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा था. इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2018 में 2,299 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड पैदा हुआ, जो 2017 की तुलना में 4.8 फीसदी अधिक था. 

भारत में इस बढ़ोत्तरी का कारण उद्योगों और विद्युत उत्पादन में कोयले का बढ़ता प्रयोग रहा है. अर्थव्यवस्था को गति देने और आबादी के लिए ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयले के उपयोग पर एकाएक अंकुश लगाना मुश्किल है. लिहाजा वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भारत की भागीदारी 7 प्रतिशत थी, जो अब घटना शुरू हो गई है.  यदि कॉर्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण बना रहता है तो भारत प्रदूषण से मुक्ति की दिशा में आगे बढ़ता दिखाई देगा.

दरअसल जलवायु परिवर्तन के असर पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि सन 2100 तक धरती के तापमान में वृद्धि को नहीं रोका गया तो हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे. क्योंकि इसका सबसे ज्यादा असर खेती पर पड़ रहा है. धरती की नमी घट रही है और शुष्कता बढ़ रही है. भविष्य में अन्न उत्पादन में भारी कमी की आशंका जताई जा रही है. इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एशिया के किसानों को कृषि को अनुकूल बनाने के लिए प्रतिवर्ष करीब पांच अरब डॉलर का अतिरिक्त खर्च उठाना होगा. 

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान के अनुसार, अगर यही स्थिति बनी रही तो एशिया में 1 करोड़ 10 लाख, अफ्रीका में एक करोड़ और शेष दुनिया में 40 लाख बच्चों को भूखा रहना होगा. इसी सिलसिले में भारत के कृषि वैज्ञानिक स्वामीनाथन ने कहा है कि यदि धरती के तापमान में 1 डिग्री सेल्शियस की वृद्धि हो जाती है तो गेहूं का उत्पादन 70 लाख टन घट सकता है. लिहाजा वैज्ञानिकों की मंशा है कि औद्योगिक क्रांति के समय से धरती के तापमान में जो बढ़ोत्तरी हुई है, उसे 2 डिग्री सेल्शियस तक घटाया जाए. बहरहाल, भारत ने इस दिशा में अपनी प्रतिबद्धता का प्रमाण देकर उन देशों में आईना दिखा दिया है, जो कॉर्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने का कोई प्रमाण नहीं दे पाए हैं. 

Web Title: Success in stopping carbon emissions, Climate change, Power Generation

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