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विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग: विपक्ष की आवाज का मजबूत होना लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: July 4, 2024 12:38 IST

ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी पहले संसद में बोले नहीं, पर तब वह कांग्रेस के एक नेता के रूप में ही बोलते थे, पर अब उनकी आवाज पूरे विपक्ष की आवाज मानी जाएगी और जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है, 'लोकतांत्रिक परंपराओं का तकाजा है कि वे नेता प्रतिपक्ष की बात ध्यान से सुनें', सोमवार को लोकसभा में दिए गए राहुल गांधी के भाषण को इस दृष्टि से देखा-सुना जाएगा.

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ठळक मुद्देआखिरकार लोकसभा में विपक्ष के नेता की आवाज सुनाई दे ही गई. पिछले दस साल में हमारी लोकसभा में प्रतिपक्ष तो था पर नियमों के अनुसार नेता प्रतिपक्ष किसी को नहीं चुना जा सकता था. चुनावों में भाजपा को मिली सफलता इतनी 'भारी' थी कि विपक्ष की आवाज दब-सी गई थी.

आखिरकार लोकसभा में विपक्ष के नेता की आवाज सुनाई दे ही गई. ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी पहले संसद में बोले नहीं, पर तब वह कांग्रेस के एक नेता के रूप में ही बोलते थे, पर अब उनकी आवाज पूरे विपक्ष की आवाज मानी जाएगी और जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है, 'लोकतांत्रिक परंपराओं का तकाजा है कि वे नेता प्रतिपक्ष की बात ध्यान से सुनें', सोमवार को लोकसभा में दिए गए राहुल गांधी के भाषण को इस दृष्टि से देखा-सुना जाएगा.

पिछले दस साल में हमारी लोकसभा में प्रतिपक्ष तो था पर नियमों के अनुसार नेता प्रतिपक्ष किसी को नहीं चुना जा सकता था. चुनावों में भाजपा को मिली सफलता इतनी 'भारी' थी कि विपक्ष की आवाज दब-सी गई थी. पर इस बार ऐसा नहीं है. आज देश में एक मिली-जुली सरकार है. भाजपा को सबसे बड़े दल के रूप में चुनने वाले मतदाता ने कांग्रेस को इतनी सीटें दे दी हैं कि उसका नेता सदन में प्रतिपक्ष के नेता के रूप में काम कर सके. 

सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष का यह संतुलन जनतंत्र को मजबूत बनाने वाला है. संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के संदर्भ में हुई बहस से देश को ऐसी ही उम्मीद है. चूंकि लोकसभा में दस साल बाद कोई नेता प्रतिपक्ष बना है इसलिए यह उत्सुकता होनी स्वाभाविक थी कि राहुल गांधी सदन में क्या और कैसे कहते हैं. 

नेता प्रतिपक्ष ने अपनी बात लगभग सौ मिनट में पूरी की और ऐसे अनेक मुद्दे उठाए जो मतदाता को सीधा प्रभावित करते हैं. यह कतई जरूरी नहीं है कि उनकी बातों से सहमत हुआ ही जाए, पर इतना तो स्वीकारना ही होगा कि राहुल गांधी ने अपनी बात मजबूती से देश के सामने रखी है. यह भी मांग की जा रही है कि नेता प्रतिपक्ष के भाषण में कही गई बातों को सत्यापित कराया जाए. 

जनतंत्र में प्रतिपक्ष का काम सत्ता के क्रिया-कलाप पर नजर रखने का होता है. कमजोर प्रतिपक्ष यह काम आशा और आवश्यकता के अनुरूप नहीं कर सकता. इसीलिए यह कामना की जाती है कि सत्ता और विपक्ष के बीच में एक संतुलित समीकरण बने. इस संतुलन में एक मजबूत विपक्ष की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है. 

विपक्ष जागरूक हो और अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से करे, यह सफल जनतंत्र की एक महत्वपूर्ण शर्त है. राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस के दौरान विपक्ष की सजगता और सक्रियता के संकेत मिले हैं.

पर यहीं यह भी जरूरी है कि सदन में जो कुछ कहा जाए, वह ठोस आधार पर हो. विपक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह पूरी तैयारी के साथ सदन में आए, अधूरे तर्क और अनावश्यक नाटकीयता से बचा जाए. नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी के पहले भाषण में कहीं-कहीं अति नाटकीयता का दिखना कोई अच्छा संकेत नहीं है.

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