मोहिनी माथुर का ब्लॉग: सामाजिक, वैचारिक विविधता ही है देश की ताकत

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 3, 2023 01:59 PM2023-02-03T13:59:31+5:302023-02-03T13:59:31+5:30

‘हिंदू’ शब्द भी प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलता - आठवीं शताब्दी के किसी अनाम ग्रंथ में पहली बार ‘हिंदू’ शब्द प्रयोग किया गया। वह भी यहां के लोगों के लिए, न कि किसी धर्म के अनुयाइयों के लिए। ‘हिंदू’ होना जीवन जीने का एक तरीका था - यहां की सब चीजें सबके लिए, किसी एक समुदाय के लिए नहीं।

Social, ideological diversity is the strength of the country | मोहिनी माथुर का ब्लॉग: सामाजिक, वैचारिक विविधता ही है देश की ताकत

मोहिनी माथुर का ब्लॉग: सामाजिक, वैचारिक विविधता ही है देश की ताकत

पिछले कुछ वर्षों से भारत की एकता को खतरे का हवाला देकर बहुत कुछ कहा जा रहा है और प्राचीन सांस्कृतिक विश्व की याद दिलाकर जो कुछ आधुनिक है उसे भारत विरोधी बताकर नेपथ्य में करने की कोशिश हो रही है। लेकिन यदि व्यापक दृष्टिकोण व विचारों की गहराई के संदर्भ में देखें तो उस प्राचीन भारत का आदमी संकुचित विचारों से मीलों दूर था। दु:ख की बात है कि उस वैभव के नाम पर हमें संकुचितता की ओर ढकेला जा रहा है।

जिन वेदों और उपनिषदों का हवाला देकर आजकल भारत को एकांगी बनाने की कोशिश होती है - उन वेदों में, खास कर ऋग्वेद में तो केवल प्रकृति की प्रशंसा व जीवनदायनी तत्वों जैसे क्षितिज, जल, पावक, गगन, समीर, सूर्य, चंद्रमा व तारों के गुणगान के श्लोक हैं - आश्चर्य व आनंद से भरे हुए श्लोक। कोई आश्चर्य नहीं कि उस तरह के वातावरण से कोई भी बाहर से आने वाला आकर्षित हो जाता था।

इतना ही नहीं ‘हिंदू’ शब्द भी प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलता - आठवीं शताब्दी के किसी अनाम ग्रंथ में पहली बार ‘हिंदू’ शब्द प्रयोग किया गया। वह भी यहां के लोगों के लिए, न कि किसी धर्म के अनुयाइयों के लिए। ‘हिंदू’ होना जीवन जीने का एक तरीका था - यहां की सब चीजें सबके लिए, किसी एक समुदाय के लिए नहीं।

लोग विभिन्न विचारों में विश्वास रखते थे, अलग-अलग रीति-रिवाज थे, किसी तरह की बंदिशें नहीं थीं। जीवन की इस सहजता ने ही सैकड़ों साल से बाहर से आने वाले उन हजारों लोगों को आकर्षित किया जो यहीं के होकर रह गए। भारत में आज भी कई देशों के लोग आराम से रहते हुए मिल जाएंगे। उन्हें भारतीय कहलाने में कोई ऐतराज नहीं है।

प्राचीन काल में भारत के वैभव की कहानियों ने दूर-दूर के देशों को इतना आकर्षित किया कि देश को सैकड़ों आक्रमण झेलने पड़े. लेकिन हर आक्रमणकारी का एक ऐसे सामाजिक वातावरण से सामना हुआ जो हर चीज को अपने में समेट लेता था और धीरे-धीरे भारतीयता के रंग में रंग देता था। नतीजा ये हुआ कि भारतीय संस्कृति का रूप हर सौ, दो सौ साल में बदल जाता था।

हमारी संस्कृति कभी मृतप्रायः नहीं हुई, हमेशा जीवंत बनी रही। इतिहास गवाह है कि जिन संस्कृतियों ने दिल खोलकर विविधता का स्वागत किया है, वही जिंदा रही हैं। बाकी काल के गर्त में समा गई हैं। 

Web Title: Social, ideological diversity is the strength of the country

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