शोभना जैन का ब्लॉग: चीन से निपटने के लिए बनानी होंगी दीर्घकालिक नीतियां
By शोभना जैन | Published: February 3, 2021 02:55 PM2021-02-03T14:55:14+5:302021-02-03T14:55:14+5:30
India-China Relation: भारत और चीन के रिश्तों में फिलहाल सबकुछ ठीक होता नजर नहीं आ रहा है। चीन लगातार अपने रवैये से इन रिश्तों को और नुकसान पहुंचाता जा रहा है।
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की भारत-चीन संबंधों को लेकर हाल ही की यह टिप्पणी खासी अहम है कि पिछले वर्ष पूर्वी लद्दाख की घटनाओं ने दोनों देशों के संबंधों को ‘असाधारण दबाव’ में ला दिया, रिश्तों पर काफी बुरा असर पड़ा, लेकिन भारत को अभी तक इस बात का ठोस स्पष्टीकरण नहीं मिल पाया है कि चीन ने इस क्षेत्र में इतनी बड़ी तादाद में सैन्य लामबंदी आखिर क्यों की?
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पिछले नौ माह से चल रहे सैन्य तनाव को दूर करने के लिए दोनों में हुई नौवें दौर की बातचीत भी जिस तरह से चीन के विस्तारवादी मंसूबों की वजह से ‘बेनतीजा’ सी ही लग रही है, और अब इसी वार्ता के बाद विदेश मंत्री का भारत-चीन संबंधों पर यह मत अहम है कि संबंधों को आगे तभी बढ़ाया जा सकता है जब वे आपसी सम्मान, संवेदनशीलता, साझा हित जैसी परिपक्वता पर आधारित हों.
भारत -चीन के खराब रिश्तों का असर पूरी दुनिया पर
जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन के संबंध दोराहे पर हैं और इस समय चुने गए विकल्पों का न केवल दोनों देशों बल्कि पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ेगा.
निश्चय ही भारत और चीन के संबंध इस समय दोराहे पर हैं. चीन पिछली पांच मई के गलवान की खूनी आक्रामकता के बाद से लगातार एलएसी पर सैन्य तनाव कम करने की आपसी सहमति की धज्जियां उड़ाता रहा है.
इस बार नौवें दौर की बातचीत से ठीक पहले सिक्किम के नाकुला में चीन के सैनिकों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पार कर भारतीय इलाके में घुसपैठ करने की कोशिश की.
हालांकि भारतीय सेना के जवानों ने उन्हें खदेड़ दिया, लेकिन नौवें दौर की वार्ता से ठीक पहले चीन का यह विश्वासघाती आचरण संबंध सामान्य बनाने के लिए किसी भी तरह से उसकी सही नीयत नहीं माना जा सकता.
चीन नहीं आ रहा अपनी हरकतों से बाज
भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य तनाव को समाप्त करने के लिए चीन की निरंतर वादाखिलाफी वाले रवैये के बावजूद वार्ता जारी रख विवाद का शांतिपूर्ण हल निकालने के विकल्प पर ध्यान दे रहा है. लेकिन चीन की अब तक की हरकतों से यह भी साफ जाहिर है कि चीन वार्ता में हिस्सा लेने का मकड़जाल सा बुन रहा है और लगातार सीमाओं के अतिक्रमण की साजिश रच रहा है.
इन हालात में बेहद जरूरी है कि चीन के मंसूबों के प्रति सतर्कता बरतने के साथ ही भारत ऐसी नीतियां बनाए और कदम उठाए, जिससे भारत न केवल अपनी स्थिति मजबूत कर सके बल्कि चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत का मुकाबला कर सके और उसके नापाक मंसूबों को ध्वस्त कर सके.
हाल ही में चीन ने पूर्वी लद्दाख में पहले से ही चल रही तनातनी के बीच जिस तरह से अरुणाचल प्रदेश में अपना एक गांव बसाने की साजिश की और फिर कहा कि वह अरुणाचल को भारत का हिस्सा नहीं मानता, ऐसे में समझा जा सकता है कि एक तरफ वह वार्ताओं में हिस्सा लेता है और दूसरी तरफ भारत के क्षेत्र में अतिक्रमण कर रहा है, क्षेत्र में तैनात अपने सैनिकों की संख्या में कमी करने की वचनबद्धता को लेकर लगातार वादाखिलाफी कर रहा है.
भारत को चीन से निपटने के लिए ठोस नीति की जरूरत
दरअसल भारत जहां इस विवाद को भी शांतिपूर्ण तरीके से हल करने का प्रयास कर रहा है वहीं चीन कम से कम फिलहाल तो अपनी घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय वजहों, खास कर कोरोना की वजह से दुनिया में अलग-थलग पड़ने, अमेरिका से तनातनी जैसी वजहों के चलते युद्ध नहीं चाहता.
अपना वर्चस्व बनाने में जुटे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एशिया में चीन की ‘सुप्रीमेसी’ कायम करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में भारत को चीन की आक्रामकता का जवाब देने के लिए फौरी के साथ दीर्घकालिक नीतियां बनानी होंगी.
सीमाओं पर सड़कें तथा अन्य आधारभूत ढांचा मजबूत करने के साथ सेना को भी इस क्षेत्र विशेष की परिस्थितियों के अनुरूप तैयार करने पर जोर दिया जा रहा है और भारत की इस सतर्कता से चीन बौखलाया हुआ है.