शोभना जैन का ब्लॉग: कोरोना संकट में विदेशी सहायता वक्त की जरूरत

By शोभना जैन | Published: April 4, 2020 12:51 PM2020-04-04T12:51:45+5:302020-04-04T12:51:45+5:30

Shobhana Jain's blog: Foreign aid needed in Corona crisis | शोभना जैन का ब्लॉग: कोरोना संकट में विदेशी सहायता वक्त की जरूरत

लोकमत फाइल फोटो

Highlightsपहले से ही ‘सुस्ती’ झेल रही भारत की अर्थव्यवस्था कोरोना आपदा से और भी ध्वस्त हो रही है.वर्ष 2004 की सुनामी आपदा, 2013 की उत्तराखंड की भीषण बाढ़ और पिछले वर्ष की केरल की बाढ़ की भयानक तबाही के दौरान भी भारत ने विदेशी सहायता की पेशकश स्वीकार नहीं की थी.

भारत सरकार ने कोरोना की वजह से पैदा हुई अभूतपूर्व संकट की स्थिति को देखते हुए आखिर काफी उहापोह के बाद पिछले कुछ वर्षो की अपनी नीति से अलग हटकर इस भीषण आपदा का सामना करने के लिए विदेशी मदद लेने का फैसला किया है. घरेलू स्तर पर युद्धस्तर पर इससे निपटने के साथ-साथ मदद लेने का दायरा बढ़ाने यह फैसला निश्चित तौर पर भारत की वर्ष 2004 से आपदा में बाहरी सहायता नहीं लेने की नीति से हटकर है. लेकिन इस हकीकत से आंखें नहीं मूंदी जा सकती हैं कि अचानक आई इस अभूतपूर्व वैश्विक आपदा का सामना करने के लिए विश्वसमुदाय के मिल-जुलकर इस साझा संकट से निपटने के दौर में यह वक्त की दरकार है.

एक तरफ जहां दुनियाभर की अर्थव्यवस्था चुनौतीपूर्ण हालात से गुजर ही रही थी और विशेष तौर पर भारत की बात करें तो एकतरफ जहां यहां कोरोना महामारी तेजी से फैल रही है, पहले से ही ‘सुस्ती’ झेल रही भारत की अर्थव्यवस्था इस आपदा से अर्थव्यवस्था और भी ध्वस्त हो रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों अलग-अलग देशों में तैनात भारतीय राजनयिकों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस बात का अनुरोध किया था. इस बारे में सरकारी प्रयासों में मदद दिए जाने संबंधी आग्रह तथा इस अभूतपूर्व आपदा के मद्देनजर सरकार ने अभी हाल ही में पीएम केयर्स नाम से रिलीफ फंड बनाया है और इसमें देश के अलावा विदेशों के व्यक्तियों तथा संगठनों से दान करने की अपील है. भारत की अब तक की नीति ये रही है कि वह विदेशी सहायता नहीं लेती है.

वर्ष 2004 की सुनामी आपदा, 2013 की उत्तराखंड की भीषण बाढ़ और पिछले वर्ष की केरल की बाढ़ की भयानक तबाही के दौरान भी भारत ने विदेशी सहायता की पेशकश स्वीकार नहीं की थी. अर्थव्यवस्था बाद की बात है. ऐसे में एक-दूसरे की सहायता से ही इस वैश्विक संकट से निपटा जा सकता है. पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत का भी मानना है कि इस समय इस वैश्विक मानवीय आपदा का मुकाबला आपसी सहयोग से ही किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस बीमारी से बड़ी तादाद में लोगों के मारे जाने की त्रसदी के साथ ही अर्थव्यवस्था, व्यापार. भारत अनेक देशों को मदद दे रहा है, अपने चिकित्सों, स्वास्थ्य प्रणाली, जनजीवन सभी पर दुनियाभर में बहुत प्रतिकूल असर पड़ेगा. ऐसे में निश्चय ही इसे मदद नहीं लेने के ‘झूठे’ अहम से कतई नहीं जोड़ा जाना चाहिए.

भारत अनेक देशों को मदद दे रहा हैं. मालदीव, नेपाल जैसे देशों सहित कुछ अन्य देशों में अपने चिकित्सकों के दलों को भेज रहा है. व्यापार युद्ध को लेकर 36 के आंकड़े के साथ आमने-सामने खड़े देश अमेरिका और चीन भी इस स्थिति में एक-दूसरे के साथ हैं. अमेरिका ने चीन की मदद की पेशकश स्वीकार कर ली है. भारत मदद ले भी रहा है, साथ ही मदद दे भी रहा है.

इस महामारी का बवंडर गुजर जाने के बाद भी ध्वस्त अर्थव्यवस्था से भी वैश्विक सहयोग से ही निपटा जा सकेगा. गौरतलब है कि अमेरिका द्वारा भारत सहित दुनिया के लगभग 64 देशों को इस संकट से निपटने के लिए दी गई मदद के साथ ही कल ही विश्व बैंक ने कोरोना से निपटने के लिण भारत को आपातकाल सहायता और उसकी स्वास्थ्य संबंधी तैयारियों के लिए एक अरब डॉलर यानी लगभग 7500 करोड़ रुपए की भी मदद दी है. भारत पहले ही दुनिया भर में तेजी से फैलती कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में अपने पड़ोसी दक्षेस देशों के साथ इस बीमारी से साझा तौर पर एकजुटता से निपटने के बारे में पहल कर चुका है.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षेस के आठ सदस्य देशों के शासनाध्यक्षों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये एक बैठक की जिसमें कोरोना वायरस से एक जुटता से निबटने को लेकर एक साझी रणनीति बनाने के बारे में पाकिस्तान को छोड़कर दक्षेस के सभी सातों सदस्य देशों अफगानिस्तान, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव और नेपाल सभी के शासनाध्यक्षों ने इस वीडियो वार्ता में हिस्सा लेकर इस महामारी से एकजुट होकर निबटने पर सहमति जाहिर की. इस कॉन्फ्रेंस में पीएम ने दक्षेस देशों के साथ मिलकर इस महामारी से निबटने संबंधी कुछ अहम कदमों के साथ-साथ भारत की तरफ से शुरुआती अंशदान बतौर एक करोड़ डॉलर का दक्षेस आपातकालीन कोष बनाए जाने की घोषणा की.

जिसमें बाद में अन्य दक्षेस देशों ने भी अंशदान दिया है. भारत इस क्र म में मालदीव, भूटान, श्रीलंका, नेपाल को पहले ही कोरोना से निबटने के लिए मदद दे चुका है और दक्षेस देशों के कोष से भी मालदीव, श्रीलंका, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश जैसे दक्षेस देशों को इस कोष से मदद मिली है. फरवरी में जब चीन के वुहान में कोरोना का कहर था, तब भारत की ओर से 15 टन स्वास्थ्य संबंधी उत्पाद चीन भेजे गए थे.

इसी साल जनवरी में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए भारत ने चीन से मेडिकल से जुड़ा सामान भारत लाने में बैन में छूट दी है. यह एक कड़वा सच है कि जबकि दुनिया भर में सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य और चिकित्सा वाली अमेरिका और इटली जैसे विकसित देशों की स्वास्थ्य सेवाएं इस महामारी से निबटने में अपने को बेहद अपर्याप्त पा रही हैं, ऐसे में इस महामारी को लेकर इस क्षेत्र के देशों की सुविधाएं भी जहां सीमित हैं, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली सभी जगह नाकाफी या यूं कहें लड़खड़ा रही हैं ऐसे में एक-दूसरे के साथ आपसी सहयोग से निश्चय ही ऐसी महामारियों से से निपटा जा सकता है.

Web Title: Shobhana Jain's blog: Foreign aid needed in Corona crisis

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