शशांक द्विवेदी का ब्लॉग: बर्बादी के कगार पर किसान
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 7, 2020 01:15 PM2020-04-07T13:15:18+5:302020-04-07T13:15:18+5:30
शशांक द्विवेदी
दुनिया भर में फैले कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच पिछले दिनों देश के विभिन्न इलाकों खासतौर से उत्तर भारत में हुई बेमौसम बारिश, तेज हवाएं और ओलावृष्टि किसानों के लिए भारी आफत लेकर आई है. इसकी वजह से देश के उत्तरी, मध्य और पश्चिमी क्षेत्न में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है. पूरे उत्तर भारत में गेहूं और सरसों की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है. वहीं ओलावृष्टि से उत्तर भारत में गेहूं, मटर, आलू और तिलहन की लाखों हेक्टेयर की फसल बर्बाद हो गई है.
मार्च के महीने में देश के कई में हिस्सों में मौसम का मिजाज बदला और इस बदले मौसम का सबसे ज्यादा खामियाजा किसानों को उठाना पड़ा है. मध्य महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में बेमौसम बारिश के चलते सोयाबीन, ज्वार, मक्का और कपास जैसी खरीफ की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है. सूखा प्रभावित औरंगाबाद में 22 लाख हेक्टेयर की फसल नष्ट हुई. बता दें कि महाराष्ट्र में साल 2015 से 2018 के दौरान 12,021 किसानों ने आत्महत्या की. साल 2019 के शुरुआती चार महीनों में ही 808 किसानों ने आत्महत्या कर ली. इस लिहाज से चार किसान रोजाना आत्महत्या कर रहे हैं.
बारिश और ओलावृष्टि ने एक बार फिर किसानों को भुखमरी के मुहाने पर खड़ा कर दिया है. बिगड़ते और अनियमित मौसम ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. कोरोना के साथ साथ इस बिगड़ते मौसम का असर भी अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है. इससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी पड़ेगी. कोरोना के साथ ही मौसम का ये बिगड़ा हुआ मिजाज खाद्यान्न महंगाई को आसमान पर पहुंचा सकता है.
बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि में देश भर के किसानों को जो भारी नुकसान हुआ है उसके लिए तत्काल केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर किसानों की मदद करनी चाहिए. स्थानीय स्तर पर उनके लिए कुछ वैकिल्पक प्रबंध किए जाने की जरूरत है. आने वाला वक्त न सिर्फ आम आदमी के लिए बल्कि सरकार के लिए भी चुनौतीपूर्ण साबित होने जा रहा है.