ब्लॉगः क्रांतिकारियों ने शहादत से चुकाई थी गुमी हुई आजादी की कीमत

By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: March 23, 2023 02:12 PM2023-03-23T14:12:53+5:302023-03-23T14:18:35+5:30

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी ने फौरन पंजाब केसरी की मौत का बदला लेने की ठान ली। लेकिन 17 दिसंबर, 1928 को उन पर प्राणघातक लाठीचार्ज के लिए जिम्मेदार पुलिस सुपरिंटेंडेंट जेम्स ए स्कॉट की हत्या की योजना पर अमल के दौरान भगत सिंह व राजगुरु ने गफलत में उसके सहायक जॉन पी. सांडर्स को भून डाला।

shaheed diwas bhagat singh Rajguru and Sukhdev Revolutionaries had paid the price of lost freedom with martyrdom | ब्लॉगः क्रांतिकारियों ने शहादत से चुकाई थी गुमी हुई आजादी की कीमत

ब्लॉगः क्रांतिकारियों ने शहादत से चुकाई थी गुमी हुई आजादी की कीमत

सदियों पहले हमारी स्वतंत्रता छीन चुके गोरों ने 1931 में आज 23 मार्च के ही दिन ‘गुमी हुई आजादी की कीमत’ पहचानकर सशस्त्र संघर्ष की मार्फत उसे अदा कर रहे तीन क्रांतिकारी नायकों-शहीदे आजम भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव-को हमसे छीन लिया था। लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी के लिए तय तारीख और वक्त से पहले ही उनके साथ अपने बनाए कई नियम-कायदों को भी शहीद करके।

इन नायकों द्वारा खुशी-खुशी अपने प्राण देकर अदा की गई स्वतंत्रता की यह कीमत कितनी जरूरी और बड़ी थी, इसे ठीक से समझने के सारे रास्ते उनकी शहादतों से बारह साल पहले 1919 में 13 अप्रैल को ऐन बैसाखी के दिन पंजाब के अमृतसर शहर में स्वर्ण मंदिर के पास स्थित जलियांवाला बाग में हुए कांड की ओर जाते हैं। गोरे जनरल डायर ने उस दिन कुख्यात रौलेट एक्ट के विरुद्ध उक्त बाग में एकत्रित पूरी तरह शांत व संयत भीड़ पर बर्बर पुलिस फायरिंग कराकर हजारों निर्दोषों को हताहत कर डाला था।

उसकी इस नृशंसता ने देश के नवयुवकों को गुस्से से भर दिया। फिर 30 अक्तूबर, 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध उग्र प्रदर्शन पर हुए भीषण लाठीचार्ज में आई गंभीर चोटों के चलते 17 नवंबर, 1928 को कांग्रेस के गरमदल के नेता पंजाब केसरी लाला लाजपतराय का निधन हो गया, तो युवकों के अधैर्य की आग में और घी पड़ गया।

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी ने फौरन पंजाब केसरी की मौत का बदला लेने की ठान ली। लेकिन 17 दिसंबर, 1928 को उन पर प्राणघातक लाठीचार्ज के लिए जिम्मेदार पुलिस सुपरिंटेंडेंट जेम्स ए स्कॉट की हत्या की योजना पर अमल के दौरान भगत सिंहराजगुरु ने गफलत में उसके सहायक जॉन पी. सांडर्स को भून डाला।
 
लेकिन 'बहरों को सुनाने के लिए जोरदार धमाके की जरूरत' महसूस करते हुए भगत सिंह ने आठ अप्रैल, 1929 को बटुकेश्वर दत्त के साथ सेंट्रल असेंबली में बम फेंके और भाग जाने के बजाय खुद को गिरफ्तार कराने का विकल्प चुन लिया तो पुलिस ने बिना देर किए उनको लाहौर की मियांवाली जेल में शिफ्ट कर दिया, ताकि वे सांडर्स हत्याकांड में मुकदमे का सामना कर सकें। 30 सितंबर, 1929 को नागपुर से पुणे जाते समय राजगुरु भी पुलिस के हत्थे चढ़ गए। 

पुलिस की नजर में मुख्य षडयंत्रकारी सुखदेव के लिए भी गिरफ्तारी से बचे रहना नहीं ही संभव हुआ। पुलिस ने जहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव समेत 14 लोगों को सांडर्स की हत्या का मुख्य अभियुक्त बनाया, वहीं भगत सिंह ने मुकदमे की प्रायः सारी सुनवाई में अदालत को क्रांतिकारी विचारों के प्रचार के मंच की तरह इस्तेमाल किया। राजगुरु व सुखदेव के साथ उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।

Web Title: shaheed diwas bhagat singh Rajguru and Sukhdev Revolutionaries had paid the price of lost freedom with martyrdom

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