भुखमरी के डराते आंकड़े

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 16, 2018 07:16 PM2018-10-16T19:16:44+5:302018-10-16T19:16:44+5:30

‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ के आंकड़ों को सच मानें तो रोजाना 3000 बच्चे भूख से मर जाते हैं। इस बार बेलारूस जहां शीर्ष पर है वहीं पड़ोसी चीन 25वें, श्रीलंका 67वें और म्यांमार 68वें, बांग्लादेश 86वें और नेपाल 72वें रैंक पर है। तसल्ली के लिए कह सकते हैं कि पाकिस्तान हमसे नीचे 106वें पायदान पर है।

Scary figures of starvation | भुखमरी के डराते आंकड़े

सांकेतिक तस्वीर

-ऋतुपर्ण दवे
आज 16 अक्तूबर को ‘विश्व खाद्य दिवस’ है। विकासशील देशों में कृषि के विकास के लिए जरूरी ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (एफ।ए।ओ।) की स्थापना 16 अक्तूबर 1945 को कनाडा में की गई थी जो बदलती तकनीक जैसे कृषि, पर्यावरण, पोषक तत्व और खाद्य सुरक्षा के बारे में जानकारी देता है। अब इसे विडंबना कहें या दुर्भाग्य कि सुर्खियां बटोर रहा है दो दिन पहले जारी हुआ ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ यानी जीएचआई इसमें दुनिया के विभिन्न देशों में खानपान की स्थिति का विस्तृत ब्यौरा होता है और हर साल वैश्विक, क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर भुखमरी का आकलन किया जाता है।

जीएचआई में भारत इस बार और नीचे गिरकर 103वें रैंक पर आ पहुंचा है। दुर्भाग्य इसलिए भी कि इस सूची में कुल 119 देश ही हैं। यकीनन साल दर साल रैंकिंग में आई गिरावट चिंताजनक है। राजनीति से इतर यह राजनीति का मुद्दा जरूर बन गया है क्योंकि 2014 में मौजूदा सरकार के सत्ता संभालते समय जहां देश 55वें रैंक पर था वहीं 2015 में 80वें, 2016 में 97वें और पिछले साल 100वें स्थान पर रहा और इस बार 3 सीढ़ियां और लुढ़क गया।

इसका मतलब यह हुआ कि भारत की आबादी का लगभग पांचवां हिस्सा कहीं न कहीं हर दिन भूखा सोने को मजबूर है। ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ के आंकड़ों को सच मानें तो रोजाना 3000 बच्चे भूख से मर जाते हैं। इस बार बेलारूस जहां शीर्ष पर है वहीं पड़ोसी चीन 25वें, श्रीलंका 67वें और म्यांमार 68वें, बांग्लादेश 86वें और नेपाल 72वें रैंक पर है। तसल्ली के लिए कह सकते हैं कि पाकिस्तान हमसे नीचे 106वें पायदान पर है।

तस्वीर का दूसरा पहलू बेहद हैरान करता है क्योंकि यह आंकड़े तब आए हैं जब भारत गरीबी और भूखमरी को दूर कर विकासशील से विकसित देशों की कतार में शामिल होने की खातिर जोर-शोर से कोशिश कर रहा है। एक ओर सरकार का दावा है कि तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं, नीतियां बन रही हैं और उसी अनुरूप विकास कार्य किए जा रहे हैं। स्वराज अभियान की याचिका पर 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने भूख और अन्न सुरक्षा के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों की बेरुखी को लेकर कम से कम 5 बार निर्देश दिए। यह तक कहा कि संसद के बनाए ऐसे कानूनों का क्या उपयोग जिसे राज्य और केंद्र की सरकारें लागू ही न करें। इशारा कहीं न कहीं नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट 2013 के प्रति सरकारी बेरुखी की ओर था।

तस्वीर का तीसरा पहलू और भी चौंकाने वाला है जिसमें संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का ‘2018 बहुआयामी वैश्विक गरीबी सूचकांक’ बताता है कि बीते एक दशक यानी वर्ष 2005-06 से 2015-16 के बीच भारत में 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल गए हैं। इसी पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें अधिवेशन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गरीबी दूर करने के लिए भारत की तारीफों के पुल भी बांधे थे तथा लाखों लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने के लिए उन्होंने सरकार की पीठ थपथपाई थी। लेकिन उसके चंद दिनों बाद आए ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ ने सभी के दावों और आंकड़ों पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।

Web Title: Scary figures of starvation

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