सारंग थत्ते का ब्लॉगः जीसैट-7ए से बढ़ी वायुसेना की शक्ति
By सारंग थत्ते | Published: December 20, 2018 03:58 PM2018-12-20T15:58:31+5:302018-12-20T15:58:31+5:30
हमारी वायुसेना के पास मौजूद एवाक्स हवाई जहाज जो जंग के समय दुश्मन की हरकत पर नजर रखते हैं और पूर्व सूचना देने के कार्य को करते हैं, का आपसी संपर्क भी इसी सैटेलाइट के माध्यम से किया जाएगा.
नवीनतम जीसैट-7ए की मदद से वायुसेना के विभिन्न जमीन पर स्थापित रडार केंद्र आपस में जुड़ जाएंगे, वायुसेना की उड़ान क्षमता के लिए इस्तेमाल होने वाली एयर बेस का आपसी संपर्क जो फिलहाल जमीनी माइक्रोवेव टॉवर / केंद्रों और फाइबर ऑप्टिक केबल से जुड़ा हुआ था, अब एक बेहतर तरीके से कार्यशील हो पाएगा. हमारी वायुसेना के पास मौजूद एवाक्स हवाई जहाज जो जंग के समय दुश्मन की हरकत पर नजर रखते हैं और पूर्व सूचना देने के कार्य को करते हैं, का आपसी संपर्क भी इसी सैटेलाइट के माध्यम से किया जाएगा.
विगत माह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने जब हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग सैटेलाइट - हाइसिस उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया था, तब इस पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल से 30 अन्य उपग्रह भी भेजे गए थे. भारतीय उपग्रह हाइसिस का वजन 380 किलोग्राम है और इसका प्राथमिक लक्ष्य था इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के दृश्यमान, निकट अवरक्त और शॉर्टवेव इन्फ्रारेड क्षेत्रों में पृथ्वी की सतह का अध्ययन करना. कुछ हद तक यह सेना की जरूरतों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन उस लॉन्च के समय सेना की जरूरत का खुलासा नहीं किया गया था.
युद्धक विमानों के बीच आपसी संपर्क एवं उड़ान भरकर जमीनी रडार या एयर ट्रैफिक कंट्रोलर से संपर्क करने के कार्य में जीसैट-7ए का मत्वपूर्ण योगदान रहेगा. आज देश की वायुसेना संचार के नेटवर्क को पूरी तरह से उन्नत प्रौद्योगिकी के साथ इस्तेमाल कर रही है. अब जब वायुसेना को अपना स्वयं का संचार उपग्रह मिल जाएगा, तब यह नेटवर्किग कार्यशीलता में एक अद्वितीय उन्नति देखने को मिलेगी. इसी के साथ सैटेलाइट से मार्गदर्शन किए जाने वाले यूएवी-मानवरहित हवाई वाहनों के साथ भी हम अपना संपर्क कर पाएंगे. आने वाले समय में भारतीय वायुसेना अमेरिका से एमक्यू 9 प्रीडेटर या सी गार्डियन ड्रोन खरीद रही है, जिसकी उपयोगिता में सैटेलाइट की अहमियत बेहद अहम है. अधिक ऊंचाई पर रहते हुए ये हवाई ड्रोन जमीनी टारगेट पर अचूक निशाना लगा सकते हैं.
जीसैट-7 ए भारतीय संचार उपग्रहों की सूची में 35 वां उपग्रह है. स्वयं का सैटेलाइट होने की वजह से हमें किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और इस किस्म के आक्रमणकारी ड्रोन की काम करने की क्षमता और दूरी का पैमाना बढ़ जाएगा. संचार के लिए जीसैट-7ए जो रेडियो फ्रिक्वेंसी का इस्तेमाल होगा वह केयू बैंड में है अर्थात डाउन लिंक में 11.7 से 12.7 गिगा हर्ट्ज और अप लिंक में 14 से 14.5 गिगा हर्ट्ज. इस केयू बैंड की तरंगों से सैटेलाइट की दूरी को बिना किसी व्यवधान के नापा जा सकता है. इस सैटेलाइट में ऊर्जा प्रदान करने के लिए चार सोलर पैनेल हैं जो सूरज की रोशनी से लगभग 3.3 किलोवॉट की बिजली का निर्माण करेंगे. ऐसा अनुमान है कि इसकी उम्र लगभग 8 वर्ष रहेगी.