सारंग थत्ते का ब्लॉगः चंद्रयान-2 की यात्रा भारत के लिए गेम चेंजर साबित होने की उम्मीद

By सारंग थत्ते | Published: July 14, 2019 01:12 PM2019-07-14T13:12:38+5:302019-07-14T13:12:38+5:30

भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक अपने स्वयंभू परिश्रम से भारतीय चंद्रयान-2 से आकाश को भेदते हुए चांद की ओर पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं. उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. हम चांद पर जा रहे हैं - हमारा विक्रम मून लैंडर देश के झंडे को ओढ़े चांद की सतह पर पहुंचने के लिए बेताब है.

Sarang Thatte blog: Chandrayaan-II visit hopes to prove India's game changer | सारंग थत्ते का ब्लॉगः चंद्रयान-2 की यात्रा भारत के लिए गेम चेंजर साबित होने की उम्मीद

सारंग थत्ते का ब्लॉगः चंद्रयान-2 की यात्रा भारत के लिए गेम चेंजर साबित होने की उम्मीद

लगभग 50 वर्ष पूर्व अमेरिका के नील आर्मस्ट्रांग ने 20 जुलाई 1969 को चांद पर कदम रखने का गौरव प्राप्त किया था. अब भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिक अपने स्वयंभू परिश्रम से भारतीय चंद्रयान-2 से आकाश को भेदते हुए चांद की ओर पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं. उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. हम चांद पर जा रहे हैं - हमारा विक्रम मून लैंडर देश के झंडे को ओढ़े चांद की सतह पर पहुंचने के लिए बेताब है.
  
15 जुलाई 2019 अंतरिक्ष की खोज में भारत के लिए एक मील का पत्थर कहलाएगा. 640 टन वजन का जीएसएलवी मार्क 3 रॉकेट हमारे मिशन चंद्रयान-2 को चांद तक ले जाने में पहली अहम कड़ी बन जाएगा. 43 मीटर ऊंचा यह तीन स्टेज का रॉकेट है जिसने अब तक कई अहम प्रक्षेपण में अपनी पहचान देश और दुनिया के सामने रखी है. इसकी तकनीक और कार्य कुशलता के चर्चे विश्व में सम्माननीय स्थान पा चुके हैं. चंद्रयान-2  की लैंडिंग से अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत चांद पर उतरने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा.

अल सुबह 2:51 बजे जीएसएलवी मार्क 3 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा. यह प्रक्षेपण चंद्रयान-2 के भीतर मौजूद ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर को चांद तक ले जाने में मदद करेगा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों के अनुसार 5 या 6 सितंबर को मिशन चंद्रयान-2 का लैंडर चांद पर उतरेगा. ऑर्बिटर के भीतर मौजूद लैंडर का वजन 1471 किलोग्राम है जिसे विक्रम नाम दिया गया है - भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के पितृपुरु ष विक्र म साराभाई के नाम पर. इस मिशन की अंतिम कड़ी है हमारा प्रज्ञान रोवर जो मात्न 27 किलो वजन का है जो 15 दिन तक चांद की सतह पर विचरण करेगा और अनुसंधान में मदद करेगा. हमारा प्रयास चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचना है जहां समतल जमीन है और अभी तक वहां कोई नहीं पहुंचा है. हमारे वैज्ञानिकों के सामने कुछ चुनौतियां बेहद अहम हैं.

क्या हमारे वैज्ञानिक जिन्होंने पिछले पांच सालों में इस मिशन को अहमियत दी है, इन मुश्किलों को सफलतापूर्वक पार कर पाएंगे? सबसे प्रथम कड़ी है हमारे चंद्रयान-2 को सही कक्षा में स्थापित करना, उसका वृत्त बढ़ाना या घटाना, पृथ्वी और चांद के गुरुत्वाकर्षण के बीच सामंजस्य लाते हुए चांद की कक्षा तक सही मापदंडों के अनुसार पहुंचना. दूसरा अहम दायरा है संचार के साधन और प्रक्रिया. इसी पर पूरे मिशन का दारोमदार है. 3,84,400 किमी तक की दूरी से आने वाली क्षीण तरंगों से संचार की गतिविधि को संचालित करना टेढ़ी खीर है. इसी संचार की मदद से ऑर्बिटर के अपने रॉकेट दागे जाएंगे और चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया जाएगा. सबसे मुश्किल वक्त रहेगा उन 15 मिनटों का जब लैंडर- विक्रम, ऑर्बिटर से निकल कर चांद की सतह पर उतरेगा. सही गति, सही दिशा और सही जगह पर पहुंचना सब कुछ पृथ्वी पर ऑनबोर्ड कम्प्यूटर की मदद से किया जाएगा.   

नवंबर 2007 में इसरो और रूसी स्पेस एजेंसी के बीच हुए करार के अंतर्गत चंद्रयान-2 पर मिलकर कार्य करने का समझौता हुआ था. इसके अनुसार रूस हमें लैंडर बनाकर देता. लेकिन 2015 तक जब हमें यह नहीं मिला तब भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वयं इसे बनाने का बीड़ा उठाया. फरवरी 2019 में किए गए इस लैंडर पर प्रयोग के दौरान इसके दो पैरों को नुकसान पहुंचा था. चांद की सतह पर जहां हमारा लैंडर - विक्र म उतरेगा, दो क्रेटर के बीच स्थित ऊंची समतल जगह का चुनाव किया गया है. चांद का एक दिन अर्थात पृथ्वी के 14 दिन होते हैं. हमारा रोवर प्रज्ञान 14 दिन (पृथ्वी के दिन) रहेगा. लेकिन ऑर्बिटर एक साल तक चांद की कक्षा में मौजूद रहकर अपने मिशन को पूरा करेगा. 

Web Title: Sarang Thatte blog: Chandrayaan-II visit hopes to prove India's game changer

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