विजय दर्डा का ब्लॉग: कब्र में भी चर्चिल की आत्मा बेचैन होगी..!
By विजय दर्डा | Published: October 31, 2022 07:39 AM2022-10-31T07:39:26+5:302022-10-31T07:39:26+5:30
एक पुरानी कहावत है कि इतिहास पलटते देर नहीं लगती...! जिस ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को ब्रिटेन का गुलाम बनाया, उस कंपनी का मालिक एक भारतीय है और जिस ब्रिटेन ने भारत को गुलामी की जंजीर में क्रूरता के साथ जकड़ा, उस ब्रिटेन का मौजूदा प्रधानमंत्री भारतीय मूल का एक युवा है! भारत का परचम पूरी दुनिया में लहरा रहा है...
आप सोच रहे होंगे कि मुझे अचानक विंस्टन चर्चिल की याद क्यों आ गई? विंस्टन चर्चिल 1940 से 1945 और 1951 से 1955 तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे जिस पद पर अब भारतीय मूल के ऋषि सुनक बैठे हैं. चर्चिल के पहले कार्यकाल में भारत ब्रिटेन का गुलाम था और आजादी की लड़ाई निर्णायक दौर में थी. उस वक्त विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि मैं प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बना हूं कि भारत को आजाद कर दूं. भारत को आजादी के सपने देखने का अधिकार नहीं है. आजाद हो भी गए तो भारतीय नहीं चला सकेंगे देश!
वक्त के पन्नों ने क्या पलटी मारी है..!
प्रधानमंत्रियों के पंद्रह कार्यकाल के बाद चर्चिल की कुर्सी पर ऋषि सुनक विराजमान हो गए हैं. चर्चिल की आत्मा जरूर कराह रही होगी कि जिस भारतीय नस्ल को दोयम दर्जे का समझा, जिस देश के राष्ट्रपिता को अधनंगा फकीर कहा, उसी भारतीय नस्ल का एक व्यक्ति ब्रिटेन का प्रधानमंत्री कैसे बन बैठा?
सुनक और मौजूदा ब्रिटेन की चर्चा से पहले मुझे एक किस्सा याद आ गया. भारत की आजादी के बाद 1951 में चर्चिल फिर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने और उसी दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू इंग्लैंड पहुंचे. वहां चर्चिल ने उनसे पूछा कि आपको जेल में डाला, फिर भी आप हमसे घृणा नहीं करते?
पंडितजी ने कहा कि हमारा देश महावीर और बुद्ध का है. हम गांधीजी के अनुयायी हैं जिनका मानना था कि इंसान निडरता के साथ अहिंसा व सत्य के मार्ग पर चले तो सफलता जरूर मिलती है. हम अपने उद्देश्य पर चलते रहे और अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा. एक स्वतंत्र देश के पहले प्रधानमंत्री की हैसियत से मैं आपसे मिलने आया हूं. घृणा का सवाल ही पैदा नहीं होता.
निश्चय ही चर्चिल को आत्मग्लानि हुई होगी क्योंकि वही व्यक्ति 1943 के भीषण अकाल में अनुमानत: 30 लाख से ज्यादा भारतीयों की मौत का जिम्मेदार था. अनाज के भंडार भरे थे लेकिन उसने भंडार के द्वार नहीं खोले और कहा कि मदद नाकाफी साबित होगी क्योंकि ये भारतीय खरगोश की तरह बच्चे पैदा करते हैं! चर्चिल की बातें याद करके दिल बैठ जाता है लेकिन अब वक्त खुद के भारतीय होने पर इतराने का है क्योंकि हमारी नस्ल ने उस देश में भी डंका बजा दिया जिसने हमें गुलाम बनाया था.
ऋषि सुनक के पूर्वज केन्या होते हुए ब्रिटेन पहुंचे. इसमें कोई संदेह नहीं कि ऋषि सुनक अब पूरी तरह से एक ब्रिटिश नागरिक हैं और उनकी प्राथमिकता में उनका देश ही पहले पायदान पर रहेगा और होना भी यही चाहिए लेकिन हम इस बात पर गर्व तो कर ही सकते हैं कि वे भारतीय मूल के हैं. भारतीय धार्मिक परंपरा उनके खून में है और वे इसका इजहार भी करते हैं. भारत के प्रतिष्ठित उद्योगपति नारायण मूर्ति की बिटिया अक्षता उनकी पत्नी हैं इसलिए रिश्ता भारत से बड़ा गहरा जुड़ा है.
ऋषि सुनक ने अपने साक्षात्कार में कहा भी है कि उन्हें बिजनेस और राजनीति में आने की सलाह उनके ससुर नारायण मूर्ति ने दी है. हम सभी जानते हैं कि नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति अत्यंत संस्कारवान हैं. सुनक में भी संस्कार स्पष्ट झलकते हैं.
ऋषि सुनक जिस कंजर्वेटिव पार्टी से जुड़े हैं उसका रवैया भारत के प्रति कभी बेहतर नहीं रहा है लेकिन कई बार वक्त बदलाव के लिए मजबूर कर देता है. उनकी अपनी ही पार्टी के बोरिस जॉनसन ने पहले दौर में उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं पहुंचने दिया क्योंकि वे ब्रिटिश मूल के नहीं हैं. लिज ट्रस बहुत योग्य नहीं थीं लेकिन वे पीएम की कुर्सी पर पहुंच गईं लेकिन टिक नहीं पाईं. परिस्थितियां ऐसी बन गईं कि सुनक को मौका मिलना लाजिमी था.
सुनक के पीएम बनने के बाद ब्रिटेन की उदारता की बात की जा रही है लेकिन वास्तव में सुनक का पीएम बनना ब्रिटेन की मजबूरी है. हां, यदि अगले चुनाव में ऋषि सुनक के नेतृत्व में कंजर्वेटिव पार्टी चुनाव जीतती है और सुनक फिर पीएम बनते हैं तो उदारता समझ में आएगी. इस वक्त ब्रिटेन की माली हालत खराब है. सुनक ने जो आर्थिक रोडमैप जारी किया है, वह लुभावना है और वित्त मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल भी बेहतर रहा है. पीएम के लिए उनसे बेहतर कोई है ही नहीं!
हां, यह कहा जा सकता है कि भारत पर राज करने वाली पीढ़ी समाप्त हो चुकी है और नई पीढ़ी ब्रिटेन के विकास में भारतीयों के योगदान को देख रही है. आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि भारत जब गुलाम था, तब जितने अंग्रेज यहां राज करने के लिए रहते थे, उससे ज्यादा भारतीय आज ब्रिटेन में रह रहे हैं. 1941 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि उस वक्त करीब 1 लाख 44 हजार अंग्रेज भारत में रह रहे थे. आज भारतीय मूल के 16 लाख से भी ज्यादा लोग ब्रिटेन में रह रहे हैं. यह आंकड़ा ब्रिटेन की कुल आबादी का करीब 2.6 प्रतिशत है. इनमें 34 प्रतिशत से ज्यादा युवा हैं.
भारतीय मूल के करीब 50 प्रतिशत लोगों का जन्म ब्रिटेन में ही हुआ है. निश्चय ही ब्रिटेन के आर्थिक विकास में भारतीय मूल के लोगों का अच्छा खासा योगदान है. राजनीति में भी प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है. 2019 के चुनाव में भारतीय मूल के 15 लोग चुनकर आए. इतने ही लोग पाकिस्तानी मूल के भी चुने गए. यहां तक कि बांग्लादेशी मूल के भी 4 लोग संसद में पहुंचे. हालांकि इसका यह मतलब कतई नहीं है कि ब्रिटेन में नस्लीय भेदभाव खत्म हो गया है.
भेदभाव अब भी है लेकिन भारतीयों ने वहां इज्जत कमाई है, प्रतिष्ठा अर्जित की है. 2010 में हम सभी भारतीयों का सीना चौड़ा हो गया था जब हिंदुस्तान यूनिलीवर के सीईओ और एमडी संजीव मेहता ने भारत पर राज करने वाली ईस्ट इंडिया कंपनी को खरीद लिया था. भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले चर्चिल की आत्मा इसलिए भी चीख रही होगी कि विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश पार्लियामेंट के पास में 1100 कमरों का चर्चिल का जो कार्यालय था उसे हिंदुजा ग्रुप खरीद चुका है और वह होटल के रूप में परिवर्तित हो रहा है.
वाकई भारतीयों ने दुनिया में न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक रूप से भी बेहतरीन मुकाम हासिल किया है. मॉरिशस, फिजी जैसे देशों में तो भारतीय राजनीति के शिखर पर हैं ही, कनाडा में भारतीयों का काफी प्रभाव है. पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा भी भारतीय मूल के हैं. निश्चित रूप से आने वाला कल भारतीयों का ही है लेकिन एक बात ध्यान रखिए कि हमें अपने संस्कार नहीं छोड़ने हैं क्योंकि यही हमारी शक्ति है.