जनतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का दायित्च सबका, विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग

By विश्वनाथ सचदेव | Published: February 5, 2021 03:50 PM2021-02-05T15:50:57+5:302021-02-05T15:53:21+5:30

लाल किले पर 26 जनवरी के दिन तिरंगे के अतिरिक्त किसी और ध्वज को फहराने की कोशिश के पीछे की मंशा पर शक होना स्वाभाविक है.

republic day 2021 red fort farmer protest responsibility protecting democratic values blog of Vishwanath Sachdev | जनतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का दायित्च सबका, विश्वनाथ सचदेव का ब्लॉग

देशद्रोह जैसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखना ऐसा करने वालों की मंशा पर शक पैदा करता है. (file photo)

Highlightsउम्मीद की जानी चाहिए कि हमारी जांच एजेंसियां इस षड्यंत्न का जल्दी ही पता लगा लेंगी.सरकार देश नहीं होती, सरकार देश चलाने के लिए बनाई जाती है और सरकार की आलोचना करना, कम से कम जनतंत्न में तो, अपराध नहीं ही होता. आलोचना करना, सवाल उठाना हर विवेकशील नागरिक का अधिकार है.

इस बार का गणतंत्न दिवस कुछ अलग था. राजधानी दिल्ली में राजपथ पर देश अपनी ताकत, अपने गौरव का जश्न मना रहा था तो जनपथ पर देश के हजारों किसान हाथों में तिरंगा लिए हुए गण की शक्ति की जय-जयकार कर रहे थे.

शायद स्वतंत्न भारत के इतिहास में यह पहली बार था जब एक राष्ट्रीय पर्व पर हवा में इतने तिरंगे लहराए थे. अद्भुत दृश्य था यह, पर ग्रहण लग गया इसे. कुछ दंगाई लाल किले तक पहुंच गए और फिर वहां जो कुछ हुआ, किसी भी दृष्टि से उसका समर्थन नहीं किया जा सकता.

लाल किले पर 26 जनवरी के दिन तिरंगे के अतिरिक्त किसी और ध्वज को फहराने की कोशिश के पीछे की मंशा पर शक होना स्वाभाविक है. उस दिन के उस कांड की जांच जारी है, उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारी जांच एजेंसियां इस षड्यंत्न का जल्दी ही पता लगा लेंगी.

लाल किले के अपराधियों को सजा मिलनी ही चाहिए. आज यदि यह संदेह किया जा रहा है कि इस सारे प्रकरण के पीछे कुछ ऐसे तत्व थे जो देश में चल रहे किसान आंदोलन को बदनाम करना चाहते थे तो इसे बेबुनियाद नहीं कहा जा सकता और बेबुनियाद यह संदेह भी नहीं है कि उस दिन प्रदर्शन के दौरान एक युवा किसान की मृत्यु का गलत लाभ उठाने की कोशिशें भी हो रही हैं.

इन्हीं कोशिशों में देश के कुछ जाने-माने पत्नकारों पर लगाए जा रहे आरोप भी शामिल हैं. छह वरिष्ठ पत्नकारों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है. वैसे, देशद्रोह का आरोप आजकल किसी पर भी बड़ी आसानी से लगा दिया जाता है. और तो और, सरकार के खिलाफ कुछ कहना भी देशद्रोह घोषित हो जाता है.

सरकार देश नहीं होती, सरकार देश चलाने के लिए बनाई जाती है और सरकार की आलोचना करना, कम से कम जनतंत्न में तो, अपराध नहीं ही होता. आलोचना करना, सवाल उठाना हर विवेकशील नागरिक का अधिकार है. जहां तक पत्नकारों का सवाल है, यह उनका कर्तव्य है कि वे जनता के सामने तथ्य रखें और यदि उन्हें कुछ गलत लग रहा है तो निर्भीकता के साथ सवाल उठाएं. पत्नकारों के इस आशय के कार्यों को देशद्रोह जैसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखना ऐसा करने वालों की मंशा पर शक पैदा करता है.

पुलिस, प्रशासन या राजनीतिक दल यदि ऐसा करते हैं तो उनकी नीयत भी शंका के इसी घेरे में आती है. नीयत का यह सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह कहना कि पत्नकार विशेष ने जनता के सामने गलत तथ्य रखे और यह कहना कि तथ्य किसी आपराधिक उद्देश्य से रखे गए थे, एक ही बात नहीं है. अंतर है दोनों में. पहली बात एक भूल हो सकती है, पर दूसरी यानी नीयत वाली बात बहुत गंभीर है. यह भूल नहीं अपराध है. पर, किसी पर भी इस आशय का आरोप लगा देना भी किसी अपराध से कम नहीं है.

फिर, किसी को देशद्रोही कह देना तो और भी गंभीर बात है. इस बार मामला देश के छह वरिष्ठ पत्नकारों का है, इसलिए सहज ही चर्चा का विषय बन गया है, पर देश के अनेक पत्नकारों पर, देश के अलग-अलग हिस्सों में, अक्सर देशद्रोह के आरोप लगते रहे हैं. देशद्रोह तो गंभीर अपराध है ही, बात-बात पर देशद्रोह का आरोप लगाने की यह प्रवृत्ति भी कम खतरनाक नहीं है. इससे वे मूल्य और आदर्श खतरे में पड़ जाते हैं जो जनतांत्रिक व्यवस्था को गरिमा प्रदान करते हैं.

आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेज सरकार ने बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, लाला लाजपतराय, सुभाषचंद्र बोस आदि पर देशद्रोह की इस धारा के अंतर्गत मुकदमे चलाए थे. जब देश का संविधान बन रहा था तो संविधान-सभा में इस मुद्दे पर काफी विचार-विमर्श हुआ था.

दंड-संहिता की इस धारा के औचित्य पर सवाल उठाए गए थे, इसके दुरुपयोग की आशंकाओं को रेखांकित किया गया था. इस आशय के सवाल भी खड़े किए गए थे कि सरकारें अपने बचाव के लिए या पत्नकारिता पर बंदिशें लगाने के उद्देश्य से इस धारा का गलत इस्तेमाल कर सकती हैं. ये शक बेबुनियाद नहीं थे.

स्वतंत्न भारत की सरकारों ने इस तरह के कई उदाहरण प्रस्तुत किए हैं जब पत्नकारों की कलम को रोकने के लिए देशद्रोह की दुहाई दी गई है. आज देश के वरिष्ठ पत्नकारों की मंशा पर शक करके ऐसा ही एक उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है. सच तो यह है कि देशद्रोह का रिश्ता किसी कार्य-विशेष से नहीं, उसके पीछे की मंशा से होता है. जब कोई यह कहता है कि पुलिस की गोली से किसी प्रदर्शनकारी की मृत्यु होने की बात कही जा रही है तो यह गलत समाचार हो सकता है, पर यह जानना जरूरी है कि ऐसा कहने वाले का उद्देश्य क्या था?

उद्देश्य का यह सवाल पत्नकारिता पर इस तरह के आरोप लगाने वालों पर लागू होता है. किसी को सिर्फइसलिए देशद्रोही नहीं कहा जा सकता कि वे सरकार-विशेष की आलोचना करते हैं. आलोचना करना हर नागरिक का अधिकार है, पर पत्नकार का तो यह अधिकार ही नहीं, कर्तव्य भी है.

जब व्यवस्था इस कर्तव्य-पूर्ति में बाधक बनती है तो वह भी जनतंत्न के खिलाफ एक अपराध ही कर रही होती है. ऐसी व्यवस्था को समर्थन देने का मतलब भी जनतंत्न के मूल्यों का नकारना होता है. आवश्यकता इन मूल्यों की रक्षा की है और हर जागरूक नागरिक का कर्तव्य बनता है कि सरकारों की गलती पर सवालिया निशान लगाए और जनतांत्रिक मूल्यों के समर्थन में हाथ खड़ा करे. आपने हाथ खड़ा किया है या नहीं?

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