शरद जोशी का ब्लॉग: ज्ञान और परीक्षा के बीच संबंध
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 20, 2019 06:35 PM2019-04-20T18:35:34+5:302019-04-20T18:35:34+5:30
कुछ विद्वानों का मत है कि ज्ञान और परीक्षा दोनों को अलग-अलग नहीं सोचा जा सकता. परीक्षा ज्ञान का परिचय देती है. कुछ विद्वान जिन्हें डिग्रियां प्राप्त करने का अनुभव है
कुछ विद्वानों का मत है कि ज्ञान और परीक्षा दोनों को अलग-अलग नहीं सोचा जा सकता. परीक्षा ज्ञान का परिचय देती है. कुछ विद्वान जिन्हें डिग्रियां प्राप्त करने का अनुभव है, वे इसे अस्वीकार करते हैं. ज्ञान ज्ञान है और परीक्षा परीक्षा है.
शिक्षा के इतिहास में उदाहरण हैं कि कई मूर्खो को बड़ी डिग्रियां मिली हैं. जीवन के अनुभव साक्षी हैं कि ज्ञान था, पर परीक्षा में असफल रहे. ज्ञान के साथ समय का प्रश्न आता है. किसी विशेष परिस्थिति में व्यक्ति विशेष ज्ञानी हो जाया करता है. परीक्षा की स्थिति सदा नहीं रहती. अत: ज्ञान में सफल होने के साधनों से परीक्षा के साधनों में वैभिन्न्य है.
इम्पोर्टेट और पर्चे आउट करने की कला का महत्व बहुत है. जब शिक्षक ने कक्षा से कहा कि अब आपकी परीक्षाएं पास आ गई हैं, पेपर प्रेस में गए हैं. आपको कुछ प्रश्न पूछना हो तो पूछ लें. कुछ देर चुप्पी रहने के बाद एक ने प्रश्न पूछा, ‘पर्चे कौन-से प्रेस में गए हैं?’
पर्चे प्रयत्न करने पर आउट हो सकते हैं. केवल लगन और साहस की आवश्यकता है. यदि वे न हो सकते हों तो परीक्षा में कागज ले जाए जाते हैं. पहली बार मंच पर आने पर जो घबराहट वक्ता या अभिनेता में पाई जाती है, वैसी ही घबराहट कागज ले जाने पर शुरू में होती है. सफेद पाजामों और कमीजों पर, सफेद साड़ियों पर उत्तर लिख ले जाने के उदाहरण देखे गए हैं. इस विषय में लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अधिक सफल होती हैं. यह बड़ी भारी कला है. युद्ध के दिनों में कीमती कागज एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने के तरीकों का बड़ा महत्व रहता है. परीक्षा में जासूसी और भेदिया तरीकों का परिचय देने वाले विद्यार्थियों को सम्मान का पात्र क्या नहीं माना जाएगा?
यदि यह सब संभव न हो सके तो अंतिम मार्ग है प्रजातंत्र. आखिर परीक्षा विद्यार्थियों की होती है. प्रोफेसरों की नहीं. कई बार प्रश्न-पत्र ऐसे आते हैं जो कि परीक्षक के ज्ञान के परिचायक अधिक होते हैं.
ऐसे समय सर्वश्रेष्ठ मार्ग एकता का मार्ग है. एक लकड़ी को तोड़ सकते हैं, परंतु पूरे बंडल को नहीं तोड़ सकते हैं. परीक्षा-भवन के बाहर आ जाइए. जहां आप जैसे ज्ञानियों की इज्जत खत्म हो रही है, हंसी उड़ रही है, वहां तनिक न ठहरें.
हेडमास्टर या प्रिंसिपल से मिलिए. नारे लगाइए. भविष्य को अपने संघर्षो से इस प्रकार ढाल दीजिए कि वे ही प्रश्न पूछे जाएं जो आपको आते हैं. विद्यार्थियों द्वारा स्वीकृत प्रश्न ही योग्य हैं. परीक्षा तभी देनी चाहिए. उसके बाद पता लगाइए, पर्चे कौन जांचेगा