दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में रामलीला की धूम
By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 17, 2018 04:24 PM2018-10-17T16:24:05+5:302018-10-17T16:24:05+5:30
मैं रामलीला महोत्सव की चर्चा कर रहा था। जैसे ही रामलीला शुरू हुई, सैकड़ों ‘खमेर रूज’ अस्त्र-शस्त्रों से लैस रामलीला मंच के पास पहुंच गए। उन्हें देखते ही सरकारी सैनिकों ने उन पर एके-47 राइफलें तान दीं।
-गौरीशंकर राजहंस
यह महज एक संयोग था कि 90 के दशक के अंत में मैं लंबे अरसे तक दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में भारत का राजदूत था। इस अवधि में मुझे उन देशों में भारत की संस्कृति की छाप साफ दिखाई देती थी। इसी अवधि में कंबोडिया में एक बृहद रामलीला का आयोजन हुआ जिसमें सभी देशों की रामलीला पार्टियां आई थीं जहां भारतीय संस्कृति की छाप है। एशिया खासकर दक्षिण-पूर्व एशिया के सभी देशों ने अपनी रामलीला पार्टी भेजी थी। भारत ने भी इस बृहद रामलीला के आयोजन में अपनी एक रामलीला पार्टी भेजी थी। मुङो अभी भी याद है कि जब कंबोडिया की राजधानी ‘नोम पेन्ह’ में इस बृहद रामलीला का आयोजन हो रहा था तब वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने बगल में मुङो बैठाया था जिससे मैं रामलीला के विभिन्न दृश्यों को उन्हें समझा सकूं। द्विभाषिये स्थानीय भाषा और अंग्रेजी में सभी रामलीला के दृश्यों की व्याख्या कर रहे थे।
सभी रामलीला पार्टियों को कहा गया था कि जब वे रामलीला का मंचन करें तो किसी एक दृश्य को दिखाएं। मुझे यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि प्राय: सभी रामलीला पार्टियों ने उस दृश्य का मंचन किया था जहां रावण ने धोखे से सीता को हर लिया था। जब यह दृश्य दिखाया जा रहा था तब कंबोडिया के प्रधानमंत्री ने मुङो कहा कि यह इस बात को साबित करता है कि अपहरण केवल आज के युग में ही नहीं हो रहा है बल्कि हजारों वर्ष पहले भी होता था।
इस रामलीला में मैंने एक अजीब घटना देखी। कंबोडिया में उग्रवादी भरे पड़े हैं और समय-समय पर सरकार की सेना और इन उग्रवादियों के बीच मुठभेड़ होती रहती है। इन मुठभेड़ों में सैकड़ों उग्रवादियों का सफाया हो गया है। जैसे भारत में उग्रवादियों को नक्सलवादी या माओवादी कहते हैं, उसी तरह कंबोडिया में उग्रवादियों को ‘खमेर रूज’ कहते हैं। कंबोडिया लंबे अरसे तक फ्रांस का उपनिवेश रहा है। इसीलिए वहां के लोग अक्सर फ्रेंच शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। ‘खमेर रूज’ एक फ्रेंच शब्द है जिसका अर्थ है ‘लाल माओवादी या लाल उग्रवादी’। ‘खमेर रूज’ एक अत्यंत ही आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस आतंकी संगठन है। जाहिर है कि इनको ये अस्त्र-शस्त्र चीन से मिलते हैं और चीन की शह पर ही ये आतंकवादी कंबोडिया में समय-समय पर आतंक मचाते रहते हैं।
मैं रामलीला महोत्सव की चर्चा कर रहा था। जैसे ही रामलीला शुरू हुई, सैकड़ों ‘खमेर रूज’ अस्त्र-शस्त्रों से लैस रामलीला मंच के पास पहुंच गए। उन्हें देखते ही सरकारी सैनिकों ने उन पर एके-47 राइफलें तान दीं। परंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सैनिकों को मना करते हुए कहा कि ये सभी अपने भाई हैं और भगवान की लीला देखने के लिए आए हैं। अत: इन पर गोली नहीं चलाई जाए। सभी ‘खमेर रूज’ प्राय: चार घंटे तक रामलीला में डटे रहे। जब राम और हनुमान का कोई दृश्य आता था तो यह उन्हें प्रणाम करते थे। देख कर बहुत संतोष होता था। रामलीला की समाप्ति पर ये ‘खमेर रूज’ चुपचाप जंगलों की ओर चले गए।
कंबोडिया में तो हर वर्ष रामलीला होती है। दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों में भी रामलीला का मंचन होता है। यह तो सारी दुनिया को पता है कि इंडोनेशिया के बाली द्वीप में अभी भी हिंदू संस्कृति है और वहां नियमित रूप से रामलीला का मंचन होता है। एक दिलचस्प बात यह है कि इस रामलीला में हिंदू और मुसलमान दोनों पूरे उत्साह से भाग लेते हैं।
थाईलैंड में वर्षो तक भारतीय संस्कृति की छाप थी। वहां भी हर वर्ष रामलीला होती है। अभी भी परंपरा यह है कि थाईलैंड के राजा का जब राजतिलक होता है तब उन्हें ‘राम’ की उपाधि दी जाती है। थाईलैंड की पुरानी राजधानी का तो नाम ही अयोध्या था।
आज भी समय-समय पर इन देशों के रामलीला मंडल भारत सरकार के निमंत्रण पर दिल्ली आते रहते हैं जहां सैकड़ों लोग उन्हें रामलीला का मंचन करते हुए देखते हैं। उचित तो यह होगा कि भारत सरकार इन रामलीला मंडलों को विभिन्न राज्यों की राजधानियों में रामलीला मंचन की अनुमति प्रदान करे और सारी सुविधाएं दे जिससे भारत की आम जनता को यह मालूम हो कि भारत की संस्कृति किस प्रकार अन्य एशियाई देशों में अभी भी प्रभावशाली है। कुल मिलाकर रामलीला ने भारत और अन्य एशियाई देशों के बीच मजबूत सांस्कृतिक संबंध बनाए रखा है। आवश्यकता है इस सांस्कृतिक संबंध को और मजबूत करने की।
(गौरीशंकर राजहंस वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)