रमेश ठाकुर का ब्लॉग: मंद न हो गिर के जंगलों से बब्बर शेरों की दहाड़

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 23, 2018 03:27 AM2018-10-23T03:27:03+5:302018-10-23T03:27:03+5:30

बब्बर शेरों की असामयिक मौतों ने बाघ संरक्षण के क्षेत्र में किए जा रहे तमाम कागजी दावों की हकीकत की पोलपट्टी खोल दी है।  पिछले चालीस दिनों के अंतराल में वहां 23 शेरों ने दम तोड़ दिया है।  शुरुआत में प्रशासन को मौतों का कारण भी पता नहीं चला।

Ramesh Thakur's blog: Do not Go Down on the Thunder of the Babbar Lions | रमेश ठाकुर का ब्लॉग: मंद न हो गिर के जंगलों से बब्बर शेरों की दहाड़

रमेश ठाकुर का ब्लॉग: मंद न हो गिर के जंगलों से बब्बर शेरों की दहाड़

 घोर पर्यावरणीय लापरवाही ने गुजरात के गिर के जंगलों में रहने वाले 23 बब्बर शेरों की जान ले ली।  इन शेरों की मौत ने सरकार के अलावा देशवासियों के भीतर भी चिंता की लकीरें खींच दी हैं।  दरअसल गिर के जंगल बब्बर शेरों के लिए जाने जाते हैं।

 जितनी संख्या में शेर इस जंगल में पाए जाते हैं उतने दुनिया के किसी भी जंगल में नहीं हैं।  हमारे लिए शान जैसे हैं गिर के जंगलों में रहने वाले बब्बर शेर।  तीन साल पहले की गई गिनती के मुताबिक वहां पांच सौ से ज्यादा शेर बताए गए थे।  पर, अब लगातार संख्या घटने की खबर सामने आई है।  इस खबर ने सरकार को सकते में डाल दिया है।  

बब्बर शेरों की असामयिक मौतों ने बाघ संरक्षण के क्षेत्र में किए जा रहे तमाम कागजी दावों की हकीकत की पोलपट्टी खोल दी है।  पिछले चालीस दिनों के अंतराल में वहां 23 शेरों ने दम तोड़ दिया है।  शुरुआत में प्रशासन को मौतों का कारण भी पता नहीं चला।  

जब जांच हुई तो मौतों का कारण कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (सीडीवी) का होना सामने आया।  पिछले एक माह से ये बीमारी लगातार फैलती जा रही है।  इस वायरस की चपेट में सबसे ज्यादा एशियाई शेर आ रहे हैं।  इस संक्रमण के कारण शेरों की श्वसन, पाचन और स्नायु प्रणालियां बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं जो उनकी मौत का कारण बन रही हैं।  

दु:खद खबर ये है कि इस बीमारी का इलाज अभी तक नहीं खोजा जा सका।  हालात बिगड़ते देख केंद्र की सिफारिश पर गुजरात सरकार ने विदेश से विशेषज्ञ बुलाए हैं।  समय की दरकार है कि गिर जैसे बाघ संरक्षण के विकल्प हमें तैयार करने होंगे ताकि ऐसी स्थिति आने पर शेर दूसरी जगहों पर भेजे जा सकें।  भारत में शेरों को बचाने के लिए आधुनिक प्रबंधों की दरकार है। 

 शेरों का भोजन जांच-परख कर दिया जाए, बिना जांच के भोजन से संक्रमण या प्राकृतिक आपदा जैसी अनहोनी की आशंका ज्यादा रहती है।  फिलहाल सरकारी स्तर पर शेरों को बचाने के प्रयास युद्धस्तर पर जारी हैं।  

गिर जंगल के एक अभयारण्य जिसमें 26 शेर थे, उनमें 23 शेर बीते 20 दिनों में संक्रमण के चलते जान गंवा चुके हैं।  इनमें से बचे तीन शेरों को जूनागढ़ जिले के जामवाला में बचाव केंद्र में रखा गया है।  सीडीवी के आगे फैलने से रोकने के लिए 36 शेरों का टीकाकरण प्राथमिकता के आधार पर शुरू किया गया है।  


अमेरिका से आयातित सीडीवी का टीका पिछले सप्ताह भारत पहुंचे। आशंका को भांपते हुए केंद्र सरकार ने 500 और टीकों को मंगवाने का आदेश दिया है।  अगले सप्ताह तक वह भी भारत पहुंच जाएंगे।  भारत में शेरों को बचाने और उनकी देखरेख के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है।

  इतनी बड़ी रकम इसलिए खर्च की जाती है क्योंकि शेरों का महत्व हम अपनी अस्मिता से जोड़कर देखते हैं।  बब्बर शेरों की हालिया मौतों ने चारों ओर खलबली मचा दी है। 

Web Title: Ramesh Thakur's blog: Do not Go Down on the Thunder of the Babbar Lions

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