रमेश ठाकुर का ब्लॉग: यूरिया की किल्लत और कालाबाजारी
By रमेश ठाकुर | Published: September 16, 2020 12:56 PM2020-09-16T12:56:43+5:302020-09-16T12:56:43+5:30
यूरिया को लेकर किसानों का संकट जारी है. बिचौलिए और दलाल फायदा उठा रहे हैं. किसान दोगुनी कीमतों पर दलालों से यूरिया खरीदने को मजबूर हैं. आखिर कैसे निकलेगा इस समस्या का हल...
किसानों को बाजारों से यूरिया खाद आसानी से उपलब्ध नहीं हो रही है. यूरिया को लेकर उत्पन्न संकट का बिचौलिए और दलाल फायदा उठा रहे हैं. किल्लत की आड़ में जमकर कालाबाजारी हो रही है. फसलों को उगाने के लिए दूनी कीमतों पर किसान दलालों से यूरिया खरीदने को मजबूर हैं.
मंडियों में पूरे-पूरे दिन खड़े होने के बाद भी उन्हें सरकारी कीमतों पर यूरिया मुहैया नहीं हो रही. यूरिया की कमी किसी एक प्रदेश में नहीं है बल्कि समूचे हिंदुस्तान में किल्लत है. ये समस्या पिछले साल गेहूं की बुआई से लेकर अभी तक जारी है. विक्रेता बेशक कोरोना संकट की दुहाई देते हों, पर हकीकत कुछ और ही है. जिला प्रशासन स्तर पर यूरिया की धड़ल्ले से कालाबाजारी हो रही है.
ये सच है कि बीते के समय से यूरिया का देश में शॉर्टेज है लेकिन इसका फायदा बिचौलिए जमकर उठा रहे हैं. कहने को तो बाजारों में स्टॉक की कमी का रोना है, लेकिन ब्लैक में जितनी चाहो उतनी यूरिया मुहैया होती है.
बारिश के मौसम में किसान धान की फसलें लगाते हैं जो यूरिया खाद पर निर्भर होती है. बात सिर्फ धान की ही नहीं, बल्कि अन्य फसलों में भी यूरिया की जरूरत प्रत्यक्ष रूप से होती है. यूरिया ऐसी खाद है जो किसी भी किस्म की फसल की उर्वरक उत्पादन क्षमता को दोगुना कर देती है. अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में यूरिया की सबसे ज्यादा किल्लत है.
यूरिया की ब्लैकमार्केटिंग रोकने के वैकल्पिक उपाय किए जा सकते हैं. जिस तरह रसोई गैस के सिलेंडर का सब्सिडी वाला धन उपभोक्ता के बैंक अकाउंट में सीधे ट्रांसफर किया जाता है, वैसे ही किसान बाजार मूल्य पर यूरिया खरीदे और सब्सिडी की रकम उनके खातों में पहुंचाई जाए. अगर ऐसा होता है तो निश्चित रूप से इस कदम से यूरिया की कालाबाजारी रुकेगी.
नेपाल से सटे उत्तरी बिहार और उत्तर प्रदेश के इलाकों में यूरिया की अंतरराष्ट्रीय तस्करी की खबरें भी मिली हैं. भारत से यूरिया को नेपाल में भेजा जा रहा है क्योंकि वहां हिंदुस्तान से कई गुना ज्यादा दामों में बिकती है. यूपी सरकार ने इस मसले पर हाल में बड़ा सर्च अभियान भी चलाया था.
यूरिया बनाने के कारखानों की स्थिति भी दयनीय होती जा रही है. सिर्फ उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार हर साल खाद कारखानों को करीब एक लाख करोड़ की सब्सिडी देती है, लेकिन कारखानों का बीस हजार करोड़ अभी बकाया है, इसलिए बड़ी संख्या में कारखाने बंद हो गए. कमोबेश ऐसा ही हाल दूसरे राज्यों का भी है.
हालांकि रासायनिक खादों के अत्यधिक इस्तेमाल के खतरे भी हैं. वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि यूरिया के अत्यधिक उपयोग से खेतों की उपज क्षमता लगातार घट रही है. लेकिन इसे लेकर किसी तरह की कोई सतर्कता नहीं दिखाई जाती.