रामदास आठवले का ब्लॉग: बाबासाहब अपने विचारों के साथ प्रासंगिक महामानव
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 6, 2019 09:37 AM2019-12-06T09:37:36+5:302019-12-06T09:37:36+5:30
भारत में इस प्रसंग में भगवान बुद्ध के बाद डॉ. आंबेडकर एक ऐसी ही परिघटना थे. वे चिंतन और कार्य, दोनों स्तरों पर पीड़ित मानवता के लिए संघर्षरत रहे.
बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर को आज उनके महापरिनिर्वाण दिवस पर पूरा देश याद कर रहा है, पूरी दुनिया याद कर रही है. आज जब हम लगभग 63 साल बाद डॉ. आंबेडकर के प्रति देश और दुनिया के बड़े वर्ग में कृतज्ञता देखते हैं और दिन-प्रतिदिन उनके महामानव स्वरूप को विराट होते देखते हैं तो हमें गर्व होता है कि दुनिया में डॉ.आंबेडकर के रूप में हमारे देश ने एक ऐसा व्यक्तित्व, एक ऐसा विचार दिया है जिससे देश और दुनिया का शोषित जनसमूह अपनी ताकत पाता है, जिनमें अपने संघर्ष की प्रेरणा देखता है. यह सदियों में कभी-कभी घटित होने वाली घटनाएं होती हैं जब कोई एक व्यक्ति अपने जीवन काल में समता की दिशा में न सिर्फ परिवर्तन कर पाता है बल्कि सतत परिवर्तन का विचार अपने बाद छोड़ जाता है. भारत में इस प्रसंग में भगवान बुद्ध के बाद डॉ. आंबेडकर एक ऐसी ही परिघटना थे. वे चिंतन और कार्य, दोनों स्तरों पर पीड़ित मानवता के लिए संघर्षरत रहे. इसीलिए इस देश में आज डॉ. आंबेडकर उत्तरोत्तर प्रासंगिक होते जा रहे हैं.
मेरा इस आलेख में किसी से डॉ. आंबेडकर की तुलना करने का इरादा नहीं है. लेकिन विचारों के असर के स्तर पर, इस दृष्टि से कि समाज की समतामूलकता के लिए कौन सा विचार अधिक स्थायी प्रभाव वाला है, देखना एक गतिशील समाज के लिए एक बड़ी जरूरत है. और इसी प्रक्रिया में किसी महामानव के लगातार प्रासंगिक होते जाने को समझा जा सकता है. इस देश में समता की विरोधी व्यवस्था रही है, वर्ण व्यवस्था. वर्ण व्यवस्था न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से किसी मनुष्य या मनुष्य समूह को किसी दूसरे मनुष्य या मनुष्य समूह से कमतर आंकती है बल्कि यह आर्थिक संसाधनों से भी किसी मनुष्य या मनुष्य-समूह को वंचित करती है और किसी मनुष्य या मनुष्य-समूह को अधिकार संपन्न बनाती है. इस मामले में डॉ. आंबेडकर पूरी तरह स्पष्ट थे कि वे वर्ण व्यवस्था को किसी रूप में सही नहीं मानते थे और उसे ही जाति व्यवस्था का एक चरण भी मानते थे, इसीलिए वे वर्ण व्यवस्था सहित जाति व्यवस्था के संपूर्ण उन्मूलन के पक्षधर थे.
1936 में लाहौर में भाषण के लिए बाबासाहब ने ‘जाति व्यवस्था का उच्छेद’ (एनिहिलेशन ऑफ कास्ट) नामक आलेख लिखा था. हालांकि वे वहां भाषण नहीं दे पाए थे. उन्होंने जाति को लेकर एक वैज्ञानिक शोधपरक लेख न्यूयॉर्क में अपनी पढ़ाई के दिनों में ही लिखा था, ‘भारत में जाति व्यवस्था : संरचना, उत्पत्ति और विकास (कास्ट्स इन इंडिया, देयर मैकेनिज्म, जेनेसिस एंड डेवलपमेंट). गांधीजी एक भले व्यक्ति की तरह देश की जाति-समस्या से निपटना चाहते थे और डॉ.आंबेडकर एक समाजविज्ञानी की तरह इसके संपूर्ण खात्मे का सूत्न दे रहे थे. उनके सूत्नों में से एक अंतर्जातीय विवाह भी था. भारत सरकार इसके प्रोत्साहन के लिए प्रतिबद्ध है. मैं आजकल सरकार का जो विभाग देख रहा हूं वहां अंतर्जातीय विवाहों के लिए एक प्रोत्साहन राशि दी जाती है.
भारत सरकार इन दिनों डॉ. आंबेडकर के कार्यो को स्थायी स्मरण देने का काम कर रही है. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी की पहल से 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिस दिन बाबासाहब द्वारा लिखित संविधान को संविधान सभा ने अंगीकार किया था. बाबासाहब से जुड़े पांच स्थलों को उन्होंने ‘पंचतीर्थ’ का नाम दिया है. सरकार और प्रधानमंत्नी द्वारा इन पहलों को बाबासाहब को दिए जाने वाले सम्मान के रूप में देखना चाहिए.
डॉ. आंबेडकर के सपनों का भारत बनाने का कार्य हम सबको मिलकर करना है. उनका सांस्कृतिक और आर्थिक चिंतन हमारे लिए रोडमैप है. उनके द्वारा लिखित संविधान की मूल भावनाओं के जरिये हम देश को समृद्ध कर सकते हैं. देश की समृद्धि तभी संभव है जब हम देश में एक समतापूर्ण व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं. संविधान का अनुच्छेद 15 इस मायने में हमारा पथ निर्देशक है. अनुच्छेद 15 की धारा 1 और 2 जहां संविधान और राज्य के सामने जाति, धर्म, जेंडर और रेस के आधार पर भेदभाव के खिलाफ संकल्प सुनिश्चित करती है वहीं 15वें अनुच्छेद की धारा 3 और 4 सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक रूप से पीछे छूट गए लोगों के लिए विशेष प्रावधान सुनिश्चित करती है. अनुच्छेद 16 भी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक व्यवस्था है. संविधान के प्रति डॉ. आंबेडकर का स्पष्ट मत था, ‘मैं महसूस करता हूं कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, खराब निकले तो निश्चित रूप से संविधान खराब सिद्ध होगा. दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, अच्छे हों तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा.’ हम इस रूप में बेहतर स्थिति में हैं कि संविधान निर्माता खुद डॉ. आंबेडकर थे और एक बेहतरीन संविधान वे हमें विरासत में दे गए हैं. संविधान की मूल भावना के अनुरूप समतापूर्ण समाज का निर्माण ही डॉ. आंबेडकर के प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलिहोगी.