वेदप्रताप वैदिक का विचारः राम मंदिर पर अध्यादेश के पहले संघ पहल करे
By वेद प्रताप वैदिक | Published: October 20, 2018 01:32 AM2018-10-20T01:32:17+5:302018-10-20T01:32:17+5:30
यह सवाल भी उठ रहा है कि चुनाव के साल भर पहले ही उन्हें मंदिर की याद क्यों आई?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर यह आरोप लगाना आसान है कि 2019 में नरेंद्र मोदी को टेका लगाने के लिए उसने अब राम मंदिर का शोशा फिर से छोड़ दिया है। संघ के मुखिया मोहन भागवत ने अपने दशहरे के संबोधन में सरकार से मांग की है कि वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए तुरंत अध्यादेश जारी करे। वह अदालत के फैसले का इंतजार न करे। यहां यह सवाल भी उठ रहा है कि चुनाव के साल भर पहले ही उन्हें मंदिर की याद क्यों आई?
इन सवालों को मैं एकदम रद्द नहीं कर रहा हूं लेकिन मैं मानता हूं कि मोहनजी ने जो मांग की है, वह मुङो बहुत सही और व्यावहारिक लगती है। सही इसलिए कि यदि अयोध्या की राम जन्मभूमि में मंदिर नहीं बनेगा तो कहां बनेगा? 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव की सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर मंदिर के आसपास की 67 एकड़ जमीन अधिगृहीत कर ली थी। उस समय भी और अब भी मेरा विचार यह है कि उस 70 एकड़ भूमि पर अत्यंत भव्य राम मंदिर तो बने ही, उसके साथ-साथ उस स्थान को विश्व के सभी प्रमुख धर्मो का पूजा-स्थल भी बना दिया जाए।
1993 के अध्यादेश में भी इसका इशारा है। नया अध्यादेश लाने के पहले सरकार को चाहिए कि सभी मुकदमाग्रस्त पार्टियों और विशाल भारतीय समाज के बीच सर्वसम्मति बनाई जाए। इसमें संघ पहल करे। यह असंभव नहीं है। 1991-92 में मैंने पहल की थी। विश्व हिंदू परिषद के मुखिया अशोक सिंघल और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंहराव सहमत हुए और राम मंदिर की कार-सेवा तीन माह आगे बढ़ा दी गई।
अक्तूबर के बजाय वह दिसंबर में हुई। इस बीच मेरे घर पर अशोकजी, राजमाता सिंधियाजी, शहाबुद्दीनजी आदि कई हिंदू-मुस्लिम नेता इस विवाद का समाधान खोजने के लिए संवाद करते रहे। इस संवाद के प्रति तत्कालीन संघ-प्रमुख रज्जू भैया और सुदर्शनजी भी आशान्वित थे।