राजेश बादल का ब्लॉग: हमें अमेरिका के प्रति नजरिया बदलना होगा

By राजेश बादल | Published: April 9, 2020 02:34 PM2020-04-09T14:34:20+5:302020-04-09T14:34:20+5:30

Rajesh Badal's blog: We have to change the attitude towards America | राजेश बादल का ब्लॉग: हमें अमेरिका के प्रति नजरिया बदलना होगा

लोकमत फाइल फोटो

Highlightsभारत ने अमेरिका को प्रसन्न रखने के लिए अपने कई राष्ट्रीय हितों की कुर्बानी होती देखी है. इसी वजह से ईरान और रूस जैसे भरोसेमंद मित्र देशों के साथ संबंधों में गर्माहट समाप्त हो गईअफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत की भूमिका छिपी नहीं है, लेकिन ट्रम्प तो भारत की सार्वजनिक खिल्ली उड़ाते रहे.

 

दुनिया के चौधरी के हाथ-पांव फूल रहे हैं. महाबली डोनाल्ड ट्रम्प अब शुभचिंतकों और मित्र राष्ट्रों से अमेरिकी रिश्तों की बलि चढ़ाने में कोई हिचक अनुभव नहीं कर रहे हैं. कोरोना से निपटने में उनकी सरकार की नाकामी दुनिया के सामने उजागर होने के बाद वे खिसियानी बिल्ली जैसा बर्ताव कर रहे हैं. कभी कोरोना संक्रमण के अंतर्राष्ट्रीय विस्तार का ठीकरा चीन के सिर फोड़ते हैं तो कभी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पर चीनपरस्त होने के आरोप में फंड रोकने की धमकी देते हैं. इतना ही नहीं, वे मलेरिया उन्मूलन के काम में आने वाली दवा हाईड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन देने के लिए भारत को चेतावनी जारी करते हैं.

ट्रम्प इतने अधीर हैं कि भारत को दो दिन भी नहीं देना चाहते. अमेरिका से आबादी में भारत करीब-करीब चार गुना बड़ा देश है. भारत में भी कोरोना दिनोंदिन विकराल आकार ले रहा है. उसके मद्देनजर ही दवा निर्यात पर पाबंदी लगाई गई थी. किसी मुल्क को अपनी जरूरतें, दवा उत्पादन क्षमता और मित्र पड़ोसियों के घरों को भी संभालना होता है. उसकी समीक्षा के लिए ट्रम्प एक दिन इंतजार नहीं करते और भारतीय प्रधानमंत्री से बात होने के अगले दिन ही प्रतिक्रिया में कार्रवाई की धमकी देते हैं. वे नहीं सोचते कि उनके कथन का भारत जैसे देश की विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक रिश्तों पर कितना असर पड़ेगा. भारत अगर अमेरिका को यह दवा देगा तो श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार को क्यों नहीं देगा ? यह तथ्य अमेरिका को सोचना चाहिए था.

दरअसल अमेरिका को समझने में भारत से हालिया वर्षो में भूल हुई है. आतंकवाद को पालने-पोसने के कारण पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कोशिशों में भारतीय विदेश नीति ने शुरु आत में तो अमेरिकी समर्थन हासिल किया, लेकिन बदले में भारत से अमेरिका लगातार फायदा उठाता रहा. उसका प्रयास यही था कि हम पूरी तरह उस पर निर्भर हो जाएं. हम किसी अन्य संपन्न राष्ट्र से बड़े कारोबारी रिश्ते नहीं रखें अथवा रखें तो उन्हीं से रखें, जिन्हें अमेरिका चाहे. भारत ने अमेरिका को प्रसन्न रखने के लिए अपने कई राष्ट्रीय हितों की कुर्बानी होती देखी है. इसी वजह से ईरान और रूस जैसे भरोसेमंद मित्र देशों के साथ संबंधों में गर्माहट समाप्त हो गई. अमेरिका ने भारत को लगातार आर्थिक और कारोबारी झटके दिए हैं. ईरान से तेल आयात बंद करने के लिए भारत को विवश किया, जो इस उप महाद्वीपीय संतुलन को देखते हुए भारत के लिए बेहद जरूरी था.

चाबहार बंदरगाह के मामले में हिन्दुस्तान की कूटनीतिक प्राथमिकता नहीं देखी. कश्मीर के मामले में पाकिस्तान से जबरिया मध्यस्थता का राग ट्रम्प लंबे समय तक अलापते रहे, जबकि उन्हें भारत की नीति का स्पष्ट अंदाज था. उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि नरेंद्र मोदी ने भी उनसे मध्यस्थता करने का अनुरोध किया है. बाद में इसका खंडन करना पड़ा. इतना ही नहीं पाकिस्तान को गुपचुप फंड जारी रखा और उसकी सेना को आधुनिक प्रशिक्षण देने का करार किया. तालिबान के साथ समझौता ट्रम्प के गले की हड्डी बन गया था. भारत को भरोसे में लिए बिना साल भर वे पाकिस्तान की खुफिया मदद लेते रहे और तालिबानियों के साथ बैठकें करते रहे.

अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत की भूमिका छिपी नहीं है, लेकिन ट्रम्प तो भारत की सार्वजनिक खिल्ली उड़ाते रहे. उन्होंने बयान दिया कि हिन्दुस्तान वहां पुस्तकालय बना रहा है. जंग लड़ रहे मुल्क में पढ़ेगा कौन? इतना तो अमेरिका अपनी फौज पर पांच घंटे में खर्च कर देता है. हिन्दुस्तान की ओर से इतना सब कुछ करने के बाद भी पिछले दिनों उन्होंने साफ-साफ कहा था कि वे नरेंद्र मोदी को पसंद करते हैं, पर भारत ने कभी हिन्दुस्तान के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. लेकिन ट्रम्प अपने देश की भूमिका याद नहीं करते, जब 1971 की जंग में अमेरिका ने अपना सैनिक बेड़ा पाकिस्तान के पक्ष में भेज दिया था. अगर उस समय सोवियत संघ ने सहायता न की होती तो तस्वीर कुछ और भी हो सकती थी. यह अमेरिका ही है जिसने कश्मीर समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा है. इस तरह के अनेक उदाहरण हैं, जब अमेरिका ने अपने स्वार्थ की खातिर हिन्दुस्तान के हितों की धज्जियां उड़ाई हैं.

आमतौर पर राष्ट्राध्यक्ष जैसे पद को संभालने के बाद भले ही उन्होंने अपने कारोबार से अपने को अलग कर लिया हो, लेकिन दुनिया समझती है कि तमाम देशों में फैला उनका आर्थिक साम्राज्य फल-फूल रहा है तो उसमें ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति होने का लाभ मिला है. नैतिक आधार पर तो डोनाल्ड ट्रम्प को अपने कारोबार से नाम हटा लेना चाहिए.

भारत के अनेक शहरों में उनकी कंपनियां काम कर रही हैं. ट्रम्प टॉवर्स बने हुए हैं. उनके कई भारतीय कंपनियों के साथ वाणिज्यिक अनुबंध हैं. क्या इन कंपनियों ने ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद कोई फायदा नहीं लिया होगा ? क्या यह सब सियासी सहमति के बिना चल रहा होगा ? यह छिपा हुआ नहीं है कि भारत में काम कर रही अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत के श्रम, फैक्टरी और औद्योगिक कानूनों का मखौल उड़ा रही हैं. भारतीय इंजीनियरों को वे अनेक सुविधाएं नहीं देतीं. तो क्या आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाले देशों के प्रति भारत को कोई कार्रवाई नहीं करनी चाहिए ? भारत के लिए अब विचार का समय है कि वह किसी महाशक्ति का खिलौना नहीं बने.

Web Title: Rajesh Badal's blog: We have to change the attitude towards America

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