राजेंद्र दर्डा का ब्लॉग: सकारात्मकता की ताकत के प्रतीक भाटिया

By राजेंद्र दर्डा | Published: July 31, 2020 10:12 AM2020-07-31T10:12:47+5:302020-07-31T10:12:47+5:30

Rajendra Darda's blog: Bhatia symbolizing the power of positivity | राजेंद्र दर्डा का ब्लॉग: सकारात्मकता की ताकत के प्रतीक भाटिया

राजेंद्र दर्डा का ब्लॉग: सकारात्मकता की ताकत के प्रतीक भाटिया

Highlightsसंजय भाटिया ने अपने 35 साल के शानदार करियर में हर जगह पारदर्शिता को प्राथमिकता दी. 35 वर्ष के कार्यकाल के दौरान विभिन्न संस्थाओं, संगठनों की ओर से भी उन्हें पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.

1985 की बैच के आईएएस अधिकारी संजय भाटिया, राज्य और केंद्र में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर काम करने के बाद आज सेवानिवृत्त हो रहे हैं. वह मेरे मित्र हैं, यह मेरे लिए खुशी की बात है. गत 35 वर्ष की सेवा के दौरान भाटिया ने अनेक उच्च पदों पर काम किया.

मेरी उनके साथ पहचान औरंगाबाद की है. 1989 में वह कोल्हापुर से औरंगाबाद सिडको के मुख्य प्रशासक पद पर आए थे. उस वक्त उनके पास औरंगाबाद के साथ-साथ नासिक और नये नांदेड़ का भी पदभार था. यहीं हमारी दोस्ती की शुरुआत हुई. मुझे एक वाकया याद आता है. 1990 के लगभग की बात है, वह, मैं और मेरे मित्र अरविंद माछर, हम तीनों ने औरंगाबाद से सापुतारा जाने का फैसला किया. हम औरंगाबाद से नासिक पहुंचे.

रात का मुकाम भाटिया के अधीनस्थ सिडको गेस्ट हाउस में किया. सुबह नाश्ता लेकर निकलने ही वाले थे कि भाटिया ने केयरटेकर को बुलाकर बिल लाने को कहा. पहले वह इसके लिए तैयार ही नहीं हो रहा था. अपने ही साहब से भला बिल का भुगतान कैसे ले. आखिर वह बिल लाया जो 110 रु. का था. भाटिया ने बिल दिया, रसीद ली और हमारा सापुतारा का सफर आगे शुरू हुआ. यह थी उनके स्वभाव की पहली झलक.

औरंगाबाद में सिडको के मुख्य प्रशासक पद पर रहते हुए उन्होंने दिल्ली के कनॉट प्लेस की तर्ज पर योजना तैयार की और उसे साकार भी किया. औरंगाबाद के आज के कनॉट प्लेस का पूरा श्रेय भाटिया को ही है. उस वक्त युवा भाटिया ने सिडको कार्यालय में वर्क कल्चर तैयार किया. अपने स्टाफ को वह हर रविवार क्रिकेट खेलने के लिए ले जाया करते थे.

क्रिकेट के माध्यम से उन्होंने समस्त सिडको कर्मचारियों में काम के प्रति निष्ठा की भावना निर्माण की. उनके कार्यकाल में सिडको में अनेक बगीचे और खेल के मैदान बने. मुझे याद है कि एक ही दिन में सिडको एन-3 के केटली गार्डन, एन-1 के सिडको उद्यान सहित कुल 8 उद्यानों का उद्घाटन किया गया था.

1992 में उनका तबादला सोलापुर जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद पर हुआ. सोलापुर आने के लिए उनका आग्रह रहता था. 1993 में भाटिया के घर पर मैं और मेरी पत्नी आशू दो दिन तक रहे थे. खास बात यह कि वह सोलापुर में जिस सरकारी बंगले में रहा करते थे, उस जगह भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी कुछ वक्त रहे थे. मोरारजी देसाई सोलापुर में डिप्टी कलेक्टर रह चुके थे.

1994 में भाटिया गढ़चिरोली के जिलाधिकारी बने. उनकी पत्नी अनुराधा उस वक्त सोलापुर में इनकम टैक्स की डिप्टी कमिश्नर थीं. नक्सलग्रस्त इलाके में उन्होंने सड़कों का बहुत काम किया. जुलाई 1994 की भीषण बाढ़ में भी हालात को बेहतरीन तरीके से संभाला. 1995 से 2001 के दौरान वह दिल्ली पहुंच गए. वहां केंद्र सरकार के विभिन्न पदों पर उन्होंने काम किया. तब सुरेश प्रभु केंद्रीय ऊर्जा मंत्री थे. उनके साथ भी उन्होंने काम किया.

दिल्ली से भाटियाजी 2002 में मुंबई लौटे. 2002 से 2006 के दरमियान वह महाराष्ट्र राज्य बिजली मंडल के सचिव और बाद में प्रबंध संचालक थे. इसमें कुछ वक्त मैं ऊर्जा राज्यमंत्री था. हमारी अनेक बार मुलाकात होती रहती थी. तब एनरॉन का विवाद चरम पर था. उस वक्त की कानूनी लड़ाई में भाटिया का योगदान काफी बड़ा था.

मेरे ऊर्जा राज्यमंत्री पद पर रहने के दौरान ही एमएसईबी के विभाजन का फैसला हुआ. महावितरण, महापारेषण और महाजेनको, ऐसी तीन कंपनियां बनाई गईं. तब मजदूर संगठनों के अनेक मसले थे. संगठनों के साथ बैठकें होती थीं. उस वक्त समस्या के हल की उनकी सकारात्मक प्रवृत्ति मैंने काफी नजदीक से देखी.

बिजली मंडल के कार्यकाल में एक घटना ने उन्हें बेहद विचलित कर दिया था. 2006 में राज्य में बिजली बिलों का भुगतान बड़े पैमाने पर बाकी था. इस वजह से बिजली बिल नहीं भरने वालों के कनेक्शन काटने की मुहिम भाटिया ने छेड़ी थी. उसी के तहत नागपुर स्थित मुख्यमंत्री निवास रामगिरी की बिजली भी बकाया के कारण उस जगह के अधिकारी ने काट दी. भाटिया को इसकी कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख को कुछ गलतफहमी हो गई.

परिणाम यह हुआ कि भाटिया को पुणे में ‘यशदा’  भेज दिया गया. हालांकि गलतफहमी दूर होते ही उन्होंने भाटिया को महत्वपूर्ण बिक्री कर विभाग में आयुक्त का पद दिया. वह फैसला राज्य की तिजोरी के लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ.

भाटिया के बिक्री कर विभाग से जुड़ने से पहले मैं वित्त राज्यमंत्री भी रह चुका था. इस वजह से मुझे विभाग की जानकारी थी. भाटिया ने बिक्री कर विभाग का रूप ही बदल डाला. जब भाटिया ने पदभार स्वीकारा तो राज्य की कमाई 24 हजार करोड़ रु. थी, लेकिन जब 2013 में भाटिया ने पद छोड़ा तो यह कमाई 69 हजार करोड़ रु. तक पहुंच चुकी थी. उन्होंने वहां इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट की भी स्थापना की. इस वजह से सेल्स टैक्स में 32 हजार करोड़ रु. का हवाला ऑपरेशन खोजा जा सका. उसका महाराष्ट्र की कमाई में बढ़ोत्तरी में बड़ा फायदा हुआ.

2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भाटिया को सिडको के प्रबंध संचालक पद पर नियुक्त किया. बहुत दिन से अधर में लटके नवी मुंबई के अत्याधुनिक एयरपोर्ट के काम ने फिर गति पकड़ी. सिडको में मेट्रो के काम में तेजी आई. सिडको के कामकाज में पारदर्शिता आई. अपनी मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा का उन्हें फायदा मिला.

इसके बाद राज्य और केंद्र में कांग्रेस सरकार बदली. 2016 में भाटिया के अनुभव का लाभ लेते हुए केंद्र सरकार ने उन्हें मुंबई पोर्ट ट्रस्ट का चेयरमैन नियुक्त किया. पोर्ट ट्रस्ट भले ही मुंबई का हिस्सा हो, लेकिन वहां क्या होता है इसकी जानकारी मुंबईकरों को नहीं होती. उस जगह पर भाटिया ने समुद्री पर्यटन बढ़ाने के लिए काम किया. एक किलोमीटर का वॉटरफ्रंट तैयार किया. जेएनपीटी से मुंबई पोर्ट ट्रस्ट के बीच सड़क मार्ग से होने वाला कंटेनरों का परिवहन समुद्री रास्ते से करने की परियोजना अंतिम चरण में है. उस परियोजना के पूरी होने का सीधा लाभ रास्ते पर ट्रकों की भीड़ को कम करने में मिलेगा.

प्रत्येक अधिकारी को कभी न कभी सेवानिवृत्त होना ही पड़ता है. संजय भाटिया ने अपने 35 साल के शानदार करियर में हर जगह पारदर्शिता को प्राथमिकता दी. मूलभूत सुधार किए, सहयोगी अधिकारियों, कर्मचारियों को अध्यात्म की ओर प्रवृत्त किया. उनका हमेशा कहना रहा कि अध्यात्म से कर्मचारियों की काम के प्रति आस्था और निष्ठा बढ़ती है. महाराष्ट्र शासन ने उन्हें उनके गतिशील प्रशासन के लिए पुरस्कार से सम्मानित किया.

साथ ही 35 वर्ष के कार्यकाल के दौरान विभिन्न संस्थाओं, संगठनों की ओर से भी उन्हें पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. आज वह सेवानिवृत्त हो रहे हैं. उनकी पत्नी अनुराधा इस वक्त प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर इनकम टैक्स हैं. वह भी जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाली हैं. मैं इस दंपति को उनके भावी जीवन के लिए शुभकामनाएं देता हूं. उम्मीद करता हूं कि आध्यात्मिक कार्यक्रम ‘हार्टफुलनेस’ के माध्यम से उनके द्वारा लोगों के जीवन में सकारात्मकता आएगी.  

Web Title: Rajendra Darda's blog: Bhatia symbolizing the power of positivity

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