ललित गर्ग का ब्लॉग: देश को सकारात्मक राजनीति की जरूरत

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 17, 2019 02:04 PM2019-11-17T14:04:54+5:302019-11-17T14:04:54+5:30

सर्वोच्च न्यायालय ने इस सौदे में संदेह करने का कोई कारण नहीं पाया तो इसका मतलब यही है कि इस सौदे को संदिग्ध बताते हुए सरकार को बदनाम करने का सुनियोजित अभियान चल रहा था. सर्वोच्च अदालत ने लोकतंत्र की मर्यादा को न केवल सुरक्षित रखा बल्किभविष्य में ऐसी नासमझी न दोहरायी जाए, ऐसी हिदायत भी दी है.

rafale deal sc Lalit Garg's blog: country needs positive politics | ललित गर्ग का ब्लॉग: देश को सकारात्मक राजनीति की जरूरत

ललित गर्ग का ब्लॉग: देश को सकारात्मक राजनीति की जरूरत

Highlightsराफेल सौदे की जांच की मांग करने वाली पुनर्विचार याचिका खारिज किया सर्वोच्च न्यायालय ने इस सौदे में संदेह करने का कोई कारण नहीं पाया

सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में गुरु वार का दिन उल्लेखनीय कहा जाएगा. इस दिन अदालत ने भारतीय वायुसेना के लिए खरीदे गए 36 लड़ाकू राफेल विमानों में भ्रष्टाचार होने के आरोप का फैसला करके वह धुंध छांटी है जो भारतीय राजनीतिक वातावरण में अर्से से छाई हुई थी. राफेल सौदे की जांच की मांग करने वाली पुनर्विचार याचिका खारिज कर सर्वोच्च न्यायालय ने इस सौदे में बोफोर्स सौदे जैसा कुछ खोज निकालने के गैरजिम्मेदाराना एवं विध्वंसात्मक इरादों पर तो पानी फेरा ही, साथ ही छल-कपट की राजनीति को भी बेनकाब किया.

यदि सर्वोच्च न्यायालय ने इस सौदे में संदेह करने का कोई कारण नहीं पाया तो इसका मतलब यही है कि इस सौदे को संदिग्ध बताते हुए सरकार को बदनाम करने का सुनियोजित अभियान चल रहा था. सर्वोच्च अदालत ने लोकतंत्र की मर्यादा को न केवल सुरक्षित रखा बल्किभविष्य में ऐसी नासमझी न दोहरायी जाए, ऐसी हिदायत भी दी है.

नरेंद्र मोदी ने न केवल लोकसभा चुनावों में बल्कि समय-समय अपनी ईमानदारी, पारदर्शिता एवं स्वच्छ शासन पर संदेह करने की कतई गुंजाइश नहीं होने की बात दोहरायी है. चुनावों में मिली उनकी शानदार जीत जहां जनता की अदालत का फैसला था जिसका संवैधानिक व कानूनी ‘दांव-पेंचों’ से कोई लेना-देना नहीं था. अब जनता के फैसले को एक प्रकार से संवैधानिक वैधता भी प्राप्त हो गई है. लेकिन प्रश्न है कि इस तरह की दूषित राजनीति एवं स्वार्थ के घनघोर परिवेश से लोकतंत्र कब तक आहत होता रहेगा?

 भले ही ‘राफेल घटनाक्रम’ का अंतिम अध्याय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के साथ ही समाप्त हो गया हो, लेकिन इसने भारतीय राजनीति को कुछ कठोर एवं जरूरी संदेश भी दिए हैं. कौन क्या राजनीतिक दांवपेंच खेलता है, उसके प्रति जागरूक होना जरूरी है. कौन राजनेता क्या बोलता है, उसके प्रति भी जागरूक होना जरूरी है. जागरूक होने का अर्थ है आत्मनिरीक्षण करना, मूल्यों की राजनीति को बल देना, अपने आपको तौलना, अपनी कोई खामी लगे तो उसका परिष्कार करना और जनता को भ्रांत होने से बचाना है.

जागरूकता का अर्थ निषेधात्मक विचारों की प्रतिक्रि या करना नहीं है. भारत की राजनीति केवल विरोध पर जीवंत नहीं रह सकती. राजनीति में समालोचना नितांत अपेक्षित है, समालोचक होना और समालोचना करना बहुत बड़ी बात है, पर जब व्यक्ति तथ्यों को तोड़-मरोड़कर, अपने विवेक को गिरवी रखकर समालोचना करता है, उसे समालोचना नहीं, स्तरहीन विरोध ही कहा जाएगा. ऐसे विरोध के प्रति दया का भाव ही जताया जा सकता है, उसका उत्तर नहीं दिया जा सकता.

आखिर निषेधात्मक भावों का उत्तर कब तक दिया जाए? हमारी राजनीति में इस श्रृंखला का कहीं अंत ही दिखाई नहीं देता. रचनात्मक समालोचना हो, तथ्यों के आधार पर हो तो उसके बारे में चिंतन भी किया जा सकता है. नरेंद्र मोदी समालोचना के विरोधी नहीं हैं.

परन्तु नमक की रोटी का क्या स्वागत किया जाए? कुछ आटा हो तो नमक की रोटी भी काम की हो सकती है. पर जिसमें कोरा नमक ही नमक हो, वह स्पृहणीय कैसे बन सकती है.भाजपा राजनीति में भ्रष्टाचार मुक्ति एवं ईमानदारी बेहद जरूरी है. कबीर ने ठीक ही कहा है- जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ. मैं बपुरी बूडन डरी, रही किनारे बैठ.. गहरे में उतरकर खोजने वाले को ही रत्न मिलते हैं. डूबने के भय में जो किनारे पर ही बैठा रहे, उसे रत्न कैसे मिल सकते हैं? राजनीति ही करनी है तो मूल्यों की राजनीति करो, देश सेवा की राजनीति करो, जनता के दिलों को जीतने की राजनीति करो. उजालों पर कालिख पोतने का प्रयास एवं चरित्र हनन के उद्देश्य से किया जाने वाला ऐसा राजनीतिक प्रयत्न कितना जघन्य होता है, समझने वाली जनता अच्छी तरह समझती है

Web Title: rafale deal sc Lalit Garg's blog: country needs positive politics

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