वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: राफेल सौदा, मुश्किल में सरकार
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 2, 2018 02:07 PM2018-11-02T14:07:23+5:302018-11-02T14:07:23+5:30
सर्वोच्च न्यायालय ने अरुण शौरी, यशंवत सिन्हा, प्रशांत भूषण आदि की याचिकाओं पर विचार करते हुए सरकार को आदेश दे दिया है कि वह दस दिन में तीन बातों का लिखित स्पष्टीकरण दे।
राफेल विमानों का सौदा मोदी सरकार के गले का पत्थर बन सकता है, यह मैंने इस विवाद के उठते ही लिखा था। मैंने यह सुझाव भी दिया था कि सरकार को वे सब मोटे-मोटे कारण उजागर कर देने चाहिए, जिनकी वजह से 526 करोड़ रु। का विमान 1670 करोड़ रु. में खरीदा जा रहा है। प्रतिरक्षा की दृष्टि से जो गोपनीय तथ्य हैं, उन्हें उजागर किए बिना भी सारी बातें देश को बताई जा सकती थीं। लेकिन अब सरकार उन्हें कैसे छिपाएगी?
सर्वोच्च न्यायालय ने अरुण शौरी, यशंवत सिन्हा, प्रशांत भूषण आदि की याचिकाओं पर विचार करते हुए सरकार को आदेश दे दिया है कि वह दस दिन में तीन बातों का लिखित स्पष्टीकरण दे। एक तो विमान की कीमत तिगुनी कैसे हुई? दूसरा, इस 60 हजार करोड़ रु। के सौदे को करते वक्त क्या प्रक्रिया अपनाई गई? और तीसरा, फ्रांसीसी कंपनी डसाल्ट के साथ भारतीय भागीदार को कैसे जोड़ा गया?
अभी दो हफ्ते पहले सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि जहाज की कीमत के बारे में वह सवाल नहीं पूछना चाहता क्योंकि उससे हमारे कई प्रतिरक्षा-रहस्य उजागर हो सकते हैं। यह ठीक है कि अदालत ने सरकार से बंद लिफाफे में सारी सूचनाएं मांगी हैं और सरकार कह रही है कि 1923 के गोपनीयता अधिनियम के तहत वह राफेल-सौदे की सारी जानकारियां अदालत के सामने पेश करने के लिए मजबूर नहीं है। दूसरे शब्दों में अब न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टकराव अवश्यंभावी है।
इसका कितना बुरा असर मोदी की छवि पर होगा, कुछ कहना कठिन है। सीबीआई के दो पाटों में पिस रही मोदी सरकार के पसीने पहले ही छूटे हुए हैं। अभी भी ज्यादा कुछ बिगड़ा नहीं है। यदि राफेल-विमान की बारीकियां उजागर हो भी गईं तो दुश्मन राष्ट्र आपका क्या कर लेंगे? भारत सरकार इस गलतफहमी में न रहे कि राफेल के सारे रहस्य सिर्फ डसाल्ट कंपनी और उसके पास ही हैं। महाशक्तियों के समरशास्त्नी सब पता करते रहते हैं।