वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग-राफेल : थोड़ी सफाई और चाहिए
By वेद प्रताप वैदिक | Published: November 14, 2018 09:08 PM2018-11-14T21:08:02+5:302018-11-14T21:08:02+5:30
राफेल विमानों की खरीद के बारे में सरकार ने अब सही राह पकड़ी है.
राफेल विमानों की खरीद के बारे में सरकार ने अब सही राह पकड़ी है. अभी तक वह इस बात पर अड़ी हुई थी कि वह यह नहीं बताएगी कि 500 करोड़ रु. का विमान उसने 1600 करोड़ रु. में क्यों खरीदा है? मैं बराबर कहता रहा हूं कि सरकार की संतोषजनक जवाबदेही सामने आनी चाहिए.
सरकार के इस कथन से मैं सहमत हूं कि वह युद्धक विमानों के सारे रहस्य सार्वजनिक नहीं कर सकती. लेकिन वह मोटे तौर पर यह तो बता सकती थी कि उसने फ्रांसीसी कंपनी डसाल्ट को तीन गुना पैसे देना क्यों तय किया है? उसकी चुप्पी ने संदेह पैदा कर दिए. यदि सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के कान नहीं मरोड़े होते तो 2019 के चुनाव में राफेल का मुद्दा भाजपा को ले बैठता.
अभी सरकार ने सीलबंद लिफाफे में अदालत के सामने कीमत के कारणों की सफाई पेश की है. पता नहीं, अदालत उससे संतुष्ट होगी या नहीं? जहां तक याचिकाकर्ताओं को दिए गए विवरण का सवाल है, उसमें सरकार ने दावा किया है कि उसने राफेल की खरीद के लिए 74 बैठकें की हैं और खरीद-प्रक्रि या का पूरी तरह से पालन किया है. इस खरीद में 8-10 वर्ष का समय बर्बाद हो गया और इस अवधि में प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रों के पास 400 से ज्यादा आधुनिक युद्धक विमान आ गए. इसीलिए भारत को बने-बनाए 36 विमानों का सौदा करना पड़ा और जो 108 विमान भारत में बनने थे, वह सौदा रद्द करना पड़ा.
सरकार ने यह दावा भी किया है कि फ्रांसीसी कंपनी ही तय करेगी कि उसका भागीदार कौन होगा. इससे भारत सरकार का कुछ लेना-देना नहीं है. अदालत को इस मुद्दे पर भी जोर देना होगा, क्योंकि सारे शक की जड़ यही मुद्दा है. तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति ओलांद के मुताबिक अनिल अंबानी को भारतीय भागीदार बनाने का सुझाव हमारी सरकार ने ही दिया था. यहां प्रश्न यह भी है कि जब भारत में उन विमानों को बनना ही नहीं है तो भागीदार की जरूरत ही क्या है? इसी से शक पैदा होता है. इस मामले में थोड़ी सफाई और भी चाहिए.