जीवन की लंबाई और गुणवत्ता का सवाल, सृजन की चाह न हो तो जीवन का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा

By विजय दर्डा | Updated: May 19, 2025 05:13 IST2025-05-19T05:13:37+5:302025-05-19T05:13:37+5:30

वक्त के पटल पर पीछे मुड़ता हूं और आकलन करता हूं, तो लगता है कि प्रेमपूर्ण रिश्तों की जो डोरी मैंने युवा अवस्था में बांधनी शुरू की, आज काफी हद तक फलीभूत हुई है. एक ऐसा जीवन मिला जिसमें इस मिट्टी की खुशबू बसी है.

question length and quality life person not dedicated hard work desire create, then goal life remain incomplete blog dr vijay darda | जीवन की लंबाई और गुणवत्ता का सवाल, सृजन की चाह न हो तो जीवन का लक्ष्य अधूरा रह जाएगा

सांकेतिक फोटो

Highlightsजीवन के न जाने कितने आयाम देखे, न जाने कितनी राहों पर चला और भावनाओं के वृहद संसार में विचरण का मौका मिला.खेल की दुनिया में हाथ आजमाए, अखबार की दुनिया में रचने-बसने के साथ ही आम आदमी के लिए राजनीति भी की.आप सोचेंगे कि निजी जिंदगी की ये बातें आपसे क्यों साझा कर रहा हूं? इसलिए साझा कर रहा हूं.

मैं पचहत्तर का हो गया. अंकगणित के हिसाब से इसे उम्र को मापने का एक पैमाना कह सकते हैं, जिसे मेरे परिवार, मेरे मित्रों और तहेदिल से चाहने वालों  ने नाम दिया अमृत महोत्सव! ढेर सारे संदेश मिले हैं. मंगलकामनाओं की खूबसूरत और दिव्य मणिमाला से मन अह्लादित है.  शुक्रिया के लिए शब्द पर्याप्त नहीं पड़ रहे हैं. इतना ही कह सकता हूं कि नतमस्तक हूं ,आपके प्यार के आगे! वक्त के पटल पर पीछे मुड़ता हूं और आकलन करता हूं, तो लगता है कि प्रेमपूर्ण रिश्तों की जो डोरी मैंने युवा अवस्था में बांधनी शुरू की, आज काफी हद तक फलीभूत हुई है. एक ऐसा जीवन मिला जिसमें इस मिट्टी की खुशबू बसी है.

ये खुशबू मेरे बाबूजी वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी श्री जवाहरलाल दर्डा और बाई (मां) श्रीमती वीणा देवी दर्डा की वजह से ही आई. जीवन के न जाने कितने आयाम देखे, न जाने कितनी राहों पर चला और भावनाओं के वृहद संसार में विचरण का मौका मिला. खेल की दुनिया में हाथ आजमाए, अखबार की दुनिया में रचने-बसने के साथ ही आम आदमी के लिए राजनीति भी की.

18 साल का संसदीय कार्यकाल मिला. देश को बड़े करीब से समझने का अवसर मिला. जेहन से कभी कविताओं ने जन्म लिया, तो कभी कैनवास पर कूची ऐसे चल निकली जैसे भाव हिलोरें ले रहा हो! और मेरी हमसफर ज्योत्सना मुझे संगीत की आध्यात्मिक दुनिया में ले आई. आप सोचेंगे कि निजी जिंदगी की ये बातें आपसे क्यों साझा कर रहा हूं? इसलिए साझा कर रहा हूं.

क्योंकि जिंदगी के इतने सारे आयाम से कम ही लोगों का वास्ता पड़ता है. कुछ आपके काम के हो सकते हैं. व्यक्ति एक दूसरे से सीखता है. मेरे इन 75 सालों में कर्मशीलता के कम से कम 55 साल समाए हुए हैं. बात जिंदगी की लंबाई की नहीं है, असली मसला गुणवत्ता का है. मैंने बचपन में कबीरदास का एक दोहा पढ़ा था...

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर/ पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर.

इसका अर्थ है कि  खजूर का पेड़ ऊंचा होता है लेकिन वह आते-जाते राही को छाया नहीं दे सकता है और उसके फल तो इतने ऊपर लगते हैं कि आसानी से तोड़े भी नहीं जा सकते हैं, उसी प्रकार आप बड़े हो गए तो क्या हुआ? आपकी सफलता तभी है, जब समाज को उसका लाभ मिले. पता नहीं जिंदगी के किस मोड़ पर मैंने कबीर की इन पंक्तियों को अपना सूत्र वाक्य मान लिया.

संभव है कि यह बाबूजी की कर्मशीलता को देखकर मेरे भीतर उपजी हो. उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज को समर्पित किया. मेरी जिंदगी भी उसी राह पर है. निजी सफलता को भी मैंने हमेशा आध्यात्मिक तौर पर समाज के लिए ही माना. अपनी युवा पीढ़ी से इतना कहना चाहूंगा कि मेरी उम्र का पैमाना वक्त ने तय किया है, लेकिन मुझमें आज भी बचपन उतना ही महफूज है जितना बालपन में कुलांचे भरा करता था.

जब बचपन जिंदा रहेगा तो पवित्रता भी जिंदा रहेगी और सक्रियता भी बनी रहेगी. किसी बच्चे को कभी आपने चुपचाप बैठे देखा है? वह हमेशा सक्रिय और कुछ सीखने की जुगाड़ में रहता है. आप युवा तो तकनीक की ऐसी दुनिया में हैं, जहां सीखने की ललक खत्म होने का मतलब है, रास्ता बंद हो जाना. सफलता के लिए सीखने की ललक कायम रखनी होगी.

मुझे भगवद्गीता में वर्णित यह बात प्रेरणादायी लगती है कि जीवन का उद्देश्य किसी के कार्यों की सफलता या असफलता में नहीं बल्कि उद्देश्य और नि:स्वार्थता की भावना के साथ कर्तव्य के पालन में निहित है. भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को सलाह देते हैं कि वह व्यक्तिगत लाभ की इच्छा या हानि के डर से प्रभावित हुए बिना कार्य करें. मैंने अब तक के संपूर्ण जीवन में इसी धर्म का पालन किया है.

मेरे सहकर्मी कई बार कहते हैं कि मैं बड़े लक्ष्य निर्धारित करता हूं. इसका कारण है कि कुछ भी असंभव नहीं है. आप नहीं करेंगे तो दूसरा करेगा! तो हम क्यों नहीं? समर्पण और जिज्ञासा की यही भावना तो विज्ञान का भी आधार है! हां, खुद के भीतर इसके लिए कौशल भी लाना होगा अन्यथा सपना पूरा कैसे होगा?

बाबूजी ने लोकमत को वृहद आकार देने का सपना देखा और मैने व मेरे अनुज राजेंद्र ने उस सपने को साकार करने का संकल्प लिया तो प्रतिफल आज आपके सामने है. देवेंद्र, ऋषि और करण का संकल्प लोकमत परिवार को और बड़ा बनाएगा. पूर्वा अपने भाइयों की हमेशा शक्ति बनी रहेगी.

ध्यान रखिए कि माता-पिता के आशीर्वाद, भाई- बहन के अथाह प्रेम, पत्नी के समर्पण भाव और बच्चों के प्यार के बगैर आप सफलता की कामना नहीं कर सकते. परिवार से बड़ा कुछ भी नहीं है. हो सकता है कि मेरी बात आपको अटपटी लगे लेकिन अपनी पत्नी की कभी उपेक्षा मत कीजिए वरना आपका जीवन सही मायनों में जीवन नहीं रह जाएगा.

पत्नी के त्याग, समर्पण और प्रेम को हमेशा याद रखिए जिसने आपका परिवार रचा है और आपकी जिंदगी में खुशनुमा रंग भरे हैं. जिंदगी का शतक वही लगाते हैं जिनके पास प्रेम से परिपूर्ण परिवार होता है.अपनी युवा पीढ़ी से यह जरूर कहना चाहूंगा कि भविष्य डरने के लिए नहीं है बल्कि इस खूबसूरत संसार को और बेहतर बनाने के लिए है.

आप डरते हैं, तो अपने कौशल और सामर्थ्य को कमजोर करते हैं. क्रोधित होते हैं तो भ्रम उत्पन्न होता है. भ्रमित मनुष्य अपने मार्ग से भटक जाता है. इसलिए क्रोध पर नियंत्रण रखिए. अहंकार से दूर रहिए और खुद को पहचानिए. आपके भीतर प्रकृति ने एक पूरा संसार रचा है. ज्ञान से परिपूर्ण आपकी समर्पित कर्मशीलता आपका भाग्य बदल सकती है.

जीवन की सार्थकता उसकी लंबाई में नहीं बल्कि गुणवत्ता में है. आप सभी की शुभकामनाओं ने मुझे और गुणवत्तापूर्ण कर्मशीलता के लिए प्रेरित किया है. आप सभी का एक बार फिर से शुक्रिया. एक बात और कहना चाहता हूं कि अपने सीने पर तिरंगा लगाइए और कलाई में तिरंगा बैंड पहनिए. ये कहीं नहीं मिल रहा है और रोज पहनना चाहते हैं तो मुझे पत्र लिखिए.

जय हिंद!

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