पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: क्यों महत्वपूर्ण हो चली है मोदी और ट्रंप की मुलाकात

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: August 24, 2019 08:07 AM2019-08-24T08:07:28+5:302019-08-24T08:07:28+5:30

चीन के साथ ट्रेड-वॉर के दौर में भारत की तरफ ट्रम्प काफी आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं तो ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या फ्रांस में जी-7 की बैठक के आखिरी दिन यानी 26 अगस्त को मोदी-ट्रम्प मुलाकात अमेरिका ने अपनी जरूरतों के मद्देनजर तय की है?

Punya Prasun Vajpayee's blog: Why Modi-Trump meeting is important | पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: क्यों महत्वपूर्ण हो चली है मोदी और ट्रंप की मुलाकात

पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: क्यों महत्वपूर्ण हो चली है मोदी और ट्रंप की मुलाकात

कश्मीर पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से प्रधानमंत्नी मोदी की बातचीत के मायने क्या हैं? जी-7 में कश्मीर के मुद्दे पर सात औद्योगिक देशों की चर्चा का मतलब क्या होगा? झटके में कश्मीर मुद्दा ट्रम्प को तालिबान खान (इमरान खान को अफगानिस्तान में यही कहा जाता है) के जरिए अफगानिस्तान के रास्ते को अपने अनुकूल बनाने का बेहतरीन मौका लग रहा है.

चीन के साथ ट्रेड-वॉर के दौर में भारत की तरफ ट्रम्प काफी आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं तो ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या फ्रांस में जी-7 की बैठक के आखिरी दिन यानी 26 अगस्त को मोदी-ट्रम्प मुलाकात अमेरिका ने अपनी जरूरतों के मद्देनजर तय की है. या फिर जिस आर्थिक मंदी से भारत गुजर रहा है और अब अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी मंदी की चपेट में है तो अमेरिका जी-7 के रास्ते अपनी स्थिति को भी टटोल रहा है.

क्योंकि जिन मुद्दों पर तीन दिनों तक (24 से 26 अगस्त) जी-7 में चर्चा होनी है उसमें सिर्फ ब्रेक्जिट ही ऐसा मुद्दा है जिससे यूरोप प्रभावित होगा या कहें जी-7 के बाकी देश प्रभावित होंगे अन्यथा कश्मीर, ईरान, सीरिया, हांगकांग और ट्रेड-वॉर का सीधा वास्ता अमेरिका का ही है. और माना जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को अब समझ में आने लगा है कि अगले बरस राष्ट्रपति के चुनाव से पहले उन्हें अमेरिकी अर्थव्यवस्था से लेकर अफगानिस्तान की सफलता भी अमेरिकियों के सामने रखनी है. तो प्रधानमंत्नी मोदी की ट्रम्प के साथ मुलाकात के अक्स तले इन परिस्थितियों को परख लें जो भारत को न सिर्फअमेरिका के करीब ले जा चुकी हैं बल्कि भारत को नाटो देश के तर्ज पर ट्रम्प मान  कर कश्मीर पर मध्यस्थता के कदम उठा रहे हैं.

भारत के इंकार के बावजूद ट्रम्प ने कश्मीर पर इमरान खान से आधे घंटे बात की और नरेंद्र मोदी से भी और बातचीत की जानकारी दुनिया को खुद ही दी. खुद ही कहा कि कश्मीर के हालात विस्फोटक हैं. खुद ही कहा फ्रांस में वह प्रधानमंत्नी मोदी से बात करेंगे. और इन हालात के बीच चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर का मुद्दा उठाया. यानी चाहे अनचाहे अमेरिका और चीन के संबंधों के बीच भारत की भूमिका किस दिशा में जाएगी, दुनिया की नजरें इसी पर हैं. चीन भी इस सच को करीब से देख रहा है और पाकिस्तान भी चीन को ये कहकर उकसा रहा है कि उसने पीओके में जितनी पूंजी इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए लगाई है वह भारत के निशाने पर है.

महत्वपूर्ण है कि पीओके में चीन के सिल्क रूट का भी हिस्सा है और तमाम पावर प्रोजेक्ट भी चीन ने पोओके में लगाए हैं. ध्यान दें तो रक्षा मंत्नी राजनाथ सिंह के तीन बयान अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान कश्मीर की दिशा में ले ही आए हैं और चीन को चिंतित भी किए हुए हैं. पहला, भारत परमाणु हथियारों का प्रयोग पहले कर सकता है. दूसरा, अब पाकिस्तान से पीओके पर बात होगी. तीसरा अक्साई चिन भी कश्मीर का हिस्सा है और भारत उसे भूल नहीं सकता है. जाहिर है ऐसे में अमेरिका का साथ भारत को चाहिए या फिर अमेरिका चीन के साथ जिस व्यापार युद्ध में जा पहुंचा है उसमें भारत की जरूरत अमेरिका को है और अमेरिकी भरोसे में ही भारत कश्मीर को ले इतना आगे निकल चुका है. 

लेकिन असल कूटनीति यहीं पर है कि अगर अमेरिका को भारत का साथ चीन को काउंटर करने के लिए चाहिए तो फिर अमेरिका ने भारत को जीएसपी (जनरलाइज्ड सिस्टम फॉर प्रिफरेंस) यानी प्राथमिक देशों की सूची से क्यों हटाया. फिर चीन और भारत को विश्व व्यापार संस्था से मिलने वाली सुविधाओं को बंद कराने के लिए एक साथ दोनों को विकासशील देशों की कैटेगरी से क्यों हटाया.

जबकि भारत की प्रति व्यक्ति आय चीन की तुलना में पांच गुना कम है. फिर अमेरिका से भारत सबसे ज्यादा हथियारों  (15 बिलियन डॉलर) की खरीद भी कर रहा है. 2008 की तुलना में अमेरिका के साथ व्यापार भी आज दोगुना हो चुका है. फिर भारत में विदेशी निवेश भी सबसे ज्यादा अमेरिका का ही है करीब 45 बिलियन डॉलर का. लेकिन इसके समानांतर चीन के साथ भारत का व्यापार 400 बिलियन डॉलर का है. 

तो अमेरिका हर हाल में चीन से चल रहे ट्रेड वॉर में भारत को अपने साथ खड़ा देखना चाहता है या कहें चीन से भारत की व्यापारिक दूरी बने, ये चाहता है. फिर हांगकांग में लोकतंत्न को लेकर प्रदर्शन और ताले में बंद कश्मीरियों को लेकर बीच का कौन सा रास्ता निकलेगा, इस पर भी हर किसी की नजर है. यहीं से आखिरी सवाल है कि ट्रम्प-मोदी की मुलाकात से क्या वाकई कश्मीर का रास्ता निकलेगा या अपने फायदे के लिए ट्रम्प भारत को मोहरा बनाएंगे. क्योंकि अमेरिकी चुनाव में जीत के दोनों मंत्न भारत को मोहरा बनाकर चीन को ट्रेड वॉर में मात देने और तालिबान खान (इमरान खान) से समझौता कर अफगानिस्तान से अमेरिका को बाहर निकालने पर टिका है. यानी भारत-अमेरिकी संबंध व्यापार के साथ-साथ सुरक्षा पर भी आ टिके हैं. 

Web Title: Punya Prasun Vajpayee's blog: Why Modi-Trump meeting is important

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