पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: वर्ष 2019 में चुनौतियां भी कम नहीं होंगी

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Published: January 1, 2019 08:31 AM2019-01-01T08:31:44+5:302019-01-01T08:31:44+5:30

ध्यान दें तो बरस बीतते बीतते एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह की राजनीति और अर्थशास्त्न को उस सियासत के केंद्र में खड़ा कर गया जो सियासत आज सर्वोच्च ताकत रखती है.

punya Prasoon Vajpayee Blog: The Challenges Are Not Even The Year of 2019 | पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: वर्ष 2019 में चुनौतियां भी कम नहीं होंगी

पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग: वर्ष 2019 में चुनौतियां भी कम नहीं होंगी

 नए बरस का आगाज सवालों के साथ हो रहा है. ऐसे सवाल जो अतीत को खंगाल रहे हैं और भविष्य का ताना-बाना अतीत के साये में ही बुन रहे हैं. देश लूट या टूट के मझधार में आकर फंसा हुआ है. देश संसदीय राजनीतिक बिसात में मंडल-कमंडल की थ्योरी को पलटने के लिए तैयार बैठा है. देश के सामने आर्थिक चुनौतियां 1991 के आर्थिक सुधार को चुनौती देते हुए नई लकीर खींचने को तैयार हैं. देश प्रधानमंत्नी पद की गरिमा और ताकत को लेकर नई परिभाषा गढ़ने को तैयार है. और बदलाव के दौर से गुजरते हिंदुस्तान की रगों में पहली बार भविष्य को गढ़ने के लिए अतीत को ही स्वर्णिम मानना दौड़ रहा है.

ध्यान दें तो बरस बीतते बीतते एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह की राजनीति और अर्थशास्त्न को उस सियासत के केंद्र में खड़ा कर गया जो सियासत आज सर्वोच्च ताकत रखती है. सिलसिलेवार तरीके से 2019 में उलझते हालातों को समङों तो देश के सामने पहली सबसे बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार की लूट और सामाजिक तौर पर देश की टूट के बीच से किसी एक को चुनने की है.

कांग्रेसी सत्ता 2014 में इसलिए खत्म हुई क्योंकि घोटालों की फेहरिस्त देश के सामने इस संकट को उभार रही थी कि उसका भविष्य अंधकार में है. पर 2018 के बीतते बीतते देश के सामने भ्रष्टाचार की लूट से कहीं बड़ी लकीर सामाजिक तौर पर देश की टूट ही चुनौती बन खड़ी हो गई. संविधान से नागरिक होने के अधिकार वोटर की ताकत तले इस तरह दब गए कि देश के 17 करोड़ मुस्लिम नागरिक की जरूरत सत्ता को है ही नहीं इसका खुला एहसास लोकतंत्न के गीत गाकर सत्ता भी कराने से नहीं चूकी.

नागरिक के समान अधिकार भी वोटर की ताकत तले कैसे दब जाते हैं इसे 14 करोड़ दलित आबादी ने खुल कर महसूस किया. यानी संविधान के आधार पर खड़े लोकतांत्रिक देश में नागरिक शब्द गायब हो गया और वोटर शब्द हावी हो गया. 2019 में इसे कौन पाटेगा ये कोई नहीं जानता. 

2019 की दूसरी चुनौती 27 बरस पहले अपनाए गए आर्थिक सुधार के विकल्प के तौर पर राजनीतिक सत्ता पाने के लिए अर्थव्यवस्था के पूरे ढांचे को ही बदलने की है और ये चुनौती उस लोकतांत्रिक सत्ता से उभरी है जिसमें नागरिक, संविधान और लोकतंत्न भी सत्ता बगैर महत्वहीन है. यानी किसान का संकट, मजदूर की बेबसी, महिलाओं के अधिकार, बेरोजगारी और सामाजिक टूटन सरीखे हर मुद्दे सत्ता पाने या न गंवाने की बिसात पर इतने छोटे हो चुके हैं कि भविष्य का रास्ता सिर्फ सत्ता पाने से इसलिए जा जुड़ा है क्योंकि 2018 का पाठ अलोकतांत्रिक होकर खुद को लोकतांत्रिक बताने से जा जुड़ा.

Web Title: punya Prasoon Vajpayee Blog: The Challenges Are Not Even The Year of 2019

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे