डोनाल्ड ट्रम्प की पराजय और हिंदू राष्ट्रवादियों का रवैया, अभय कुमार दुबे का ब्लॉग
By अभय कुमार दुबे | Published: January 12, 2021 12:13 PM2021-01-12T12:13:27+5:302021-01-12T12:15:01+5:30
अमेरिकी संसद कैपिटल हिल में ट्रंप समर्थकों की हिंसा के बाद पहली बार अमेरिका के उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की है.
अमेरिका में कैपिटल हिल पर जो हो रहा था, वैसे राजनीतिक प्रकरण कुछ हेरफेर के साथ भारत में भी घटित हो चुके हैं. याद रहे कि भाजपा के पूर्ववर्ती संगठन भारतीय जनसंघ ने सात नवंबर, 1966 को गौ-हत्या रोकने के नाम पर दिल्ली में साधुओं को जमा करके कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की थी.
उस समय साधुओं की भीड़ संसद भवन की तरफ दौड़ पड़ी थी, और उसे रोकने के लिए भारतीय गणतंत्र की पुलिस को बलप्रयोग करना पड़ा था, ठीक उसी तरह जैसे कैपिटल हिल को बर्बादी से रोकने के लिए अमेरिका में बल प्रयोग किया गया.
किसी भी चुनी हुई सरकार के खिलाफ गैरकानूनी आंदोलन नहीं होने चाहिए
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह प्रतिक्रिया दी कि किसी भी चुनी हुई सरकार के खिलाफ गैरकानूनी आंदोलन नहीं होने चाहिए, तो किसी ने उन्हें याद क्यों नहीं दिलाया कि भारतीय जनता पार्टी जिस घोड़े की सवारी करते हुए दो सीटों से पूर्ण बहुमत की सरकार के मुकाम तक पहुंची है, उसका नाम रामजन्मभूमि आंदोलन था जो इसी तरह के गैर-लोकतांत्रिक गैर-कानूनी आंदोलन का सबसे बड़ा उदाहरण समझा जाना चाहिए.
अयोध्या में 1992 की घटना से दो साल पहले उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की चुनी हुई सरकार के खिलाफ सारे देश से कारसेवकों को जमा करके जिस तरह का हमला बोला गया था, वह भला कौन भूल सकता है. फिर दो साल बाद छह दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में झूठा हलफनामा देकर और प्रतीकात्मक कारसेवा का झांसा देकर जो ‘धतकरम’ (प्रभाष जोशी की अभिव्यक्ति) किया गया, वह ट्रम्प की राजनीति के मॉडल में फिट बैठता है.
अमेरिकी और भारतीय प्रकरणों में कई तरह के अंतर हैं
अमेरिकी और भारतीय प्रकरणों में कई तरह के अंतर हैं, पर दोनों के मूल में सत्ता में आने के लिए या सत्ता से चिपके रहने के लिए लोकतांत्रिक मर्यादाओं का उल्लंघन करके ‘डायरेक्ट एक्शन’ की राजनीति का मॉडल है. मुझे ताज्जुब है कि कैपिटल हिल पर जो घटा उससे लोगों को अयोध्या की याद नहीं आई. भाजपा जब सत्ता से बाहर होती है तो इसी तरह के ‘डायरेक्ट एक्शन’ की योजना बनाती है. हिंदू-राष्ट्र की राजनीति में इस तरह के कई रुझान दिखते हैं जो ट्रम्प की राजनीति में हैं.
मसलन, चुनाव हारने के बाद वोटिंग या गिनती में बेइमानी के इल्जाम के आधार पर राजनीति करने की शुरुआत भी हमारे यहां जनसंघ और भाजपा ने की है. लोगों को याद होगा कि जब 1971 में इंदिरा गांधी की लोकप्रियता ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था, उस समय ‘जादुई स्याही’ के दम पर चुनाव जीतने की साजिश का इल्जाम जनसंघी दिमागों की ही उपज थी. नई सदी में अपनी पुरानी पार्टी की इसी परंपरा का अनुपालन करते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने 2009 में चुनाव हारने के बाद ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) में गड़बड़ी करने का आरोप लगाया था.
भाजपा के एक घरेलू सेफोलॉजिस्ट से इस विषय में किताब भी लिखवाई गई थी
भाजपा के एक घरेलू सेफोलॉजिस्ट से इस विषय में किताब भी लिखवाई गई थी. लोकतंत्र के समर्थक चाहें तो यह कल्पना कर सकते हैं कि जब भाजपा चुनाव हारेगी तो हिंदू राष्ट्रवादियों का व्यवहार कैसा होगा?
दरअसल, ट्रम्प की पराजय उनके अमेरिका स्थित समर्थकों के साथ-साथ भारत में भाजपा को भी बुरी तरह से आहत कर गई है. कौन भूल सकता है जब ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी ट्रम्प का हाथ पकड़ कर ‘अगला राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प’ का नारा लगा रहे थे.
ट्रम्प को लग रहा था कि अमेरिका के भारतवासियों के वोट मोदी की वजह से उन्हें मिल सकते हैं. पूरी भाजपा ट्रम्प के साथ खड़ी थी. जिस समय वोटों की गिनती चल रही थी, उस समय भारत के टीवी चैनलों पर भाजपा के समर्थक और प्रवक्ता यह मानने के लिए तैयार ही नहीं थे कि ट्रम्प पिछड़ भी सकते हैं. जब ट्रम्प बुरी तरह से पिछड़ने लगे और उनकी वापसी की संभावनाएं तिरोहित होने लगीं, तो भाजपा समर्थकों द्वारा ट्रम्प के इल्जामों के साथ सुर में सुर मिलाते हुए वोटिंग और गिनती की धांधली का आरोप लगाया जाने लगा.
कैपिटल हिल पर हुए हमले का समर्थन नहीं किया जा सकता था
चूंकि कैपिटल हिल पर हुए हमले का समर्थन नहीं किया जा सकता था, इसलिए जैसे ही ट्विटर ने ट्रम्प के एकाउंट को बंद करने का ऐलान किया, वैसे ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दलील के नाम पर भाजपाई पराजित राष्ट्रपति के समर्थन में गोलबंद होने लगे. वे ट्रम्प का समर्थन करने के लिए किसी मौके की तलाश में थे.
जाहिर है कि हार के बावजूद जनता का एक बड़ा हिस्सा उसी तरह भाजपा का समर्थक होगा जिस तरह आज अमेरिका में ट्रम्प का समर्थक है. कौन गारंटी दे सकता है कि इन समर्थकों के दम पर ‘डायरेक्ट एक्शन’ की राजनीति करने के लिए कई तरह के मुद्दों और आंदोलनों की डिजाइन तैयार नहीं की जाएगी?