प्रवीण दीक्षित का ब्लॉग: महिलाओं की सुरक्षा के प्रभावी उपाय जरूरी
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 6, 2020 02:17 PM2020-10-06T14:17:21+5:302020-10-06T14:17:21+5:30
महिलाओं के खिलाफ सबसे जघन्य अपराध बलात्कार है. पीड़ितों में पांच साल से कम उम्र की बच्चियों से लेकर साठ साल से अधिक उम्र की महिलाएं तक शामिल हैं. लेकिन अधिकतम पीड़ित बारह से तीस वर्ष आयु वर्ग में हैं.
हाथरस में कथित बलात्कार और पीड़िता की मौत की हालिया घटनाओं ने महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर एक बार फिर ध्यान खींचा है. किसी भी समाज में, पुरुषों की तुलना में महिलाओं के खिलाफ विभिन्न अपराध अधिक होते हैं. इसके कारणों में शामिल हैं पितृसत्तात्मक समाज, समाज में यह धारणा कि पुरुष महिलाओं की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं और महिलाएं कमजोर हैं, यह झूठी भावना कि महिलाओं के एक वर्ग द्वारा परिवार के सम्मान का उल्लंघन किया जा रहा है. विशेष रूप से जब वे मौजूदा मानदंडों के खिलाफ शादी करती हैं आदि. शारीरिक कारणों से, महिलाओं को उनके खिलाफ किए गए अपराध और उन उपदेशों को ङोलना पड़ता है जो उनको बाहरी गतिविधियों से रोकते हैं.
महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार और हत्या, अप्राकृतिक सहवास, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, गंभीर चोट पहुंचाना, एसिड हमले, छेड़छाड़, पति या रिश्तेदारों और दोस्तों द्वारा उत्पीड़न, बिना अनुमति के गर्भपात, पति और ससुराल वालों द्वारा दहेज की मांग के लिए उत्पीड़न, अपहरण, मानव तस्करी, कार्य स्थानों पर उत्पीड़न और साइबर अपराध शामिल हैं. यह केवल उदाहरण हैं और सूची अंतहीन है. सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाए हैं. इनमें सामान्य कानून के साथ-साथ विशेष कानून भी शामिल हैं, जैसे कि भारतीय दंड संहिता, दहेज निषेध अधिनियम, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण, लिंग निर्धारण के आधार पर गर्भधारण पर रोक. सभी उम्र की महिलाएं विभिन्न हमलों की चपेट में रहती हैं.
महिलाओं के खिलाफ सबसे जघन्य अपराध बलात्कार है. पीड़ितों में पांच साल से कम उम्र की बच्चियों से लेकर साठ साल से अधिक उम्र की महिलाएं तक शामिल हैं. लेकिन अधिकतम पीड़ित बारह से तीस वर्ष आयु वर्ग में हैं. जहां तक नाबालिग लड़कियों के खिलाफ बलात्कार की घटनाएं हैं, जो विशेष रूप से पांच साल से कम की हैं, तो ये पूरे समाज में तत्काल क्रोध की भावना पैदा करती हैं. अन्य देशों में, कानूनी रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए माता-पिता बाध्यकारी होते हैं कि पांच साल से कम उम्र के बच्चे किसी भी समय अकेले न रहें. अगर ऐसा नहीं होता है तो माता-पिता को कानून द्वारा दंडित किया जाता है. भारत में, यह एक स्पष्ट अंतर है, जिस पर कानून निर्माताओं द्वारा तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. ये बच्चियां बेहद कमजोर होती हैं और उन्हें माता-पिता के संरक्षण की जरूरत होती है तथा इसका उल्लंघन करने वालों को कानूनी प्रावधानों के माध्यम से कड़ाई से दंडित किए जाने सकी जरूरत है.
बलात्कार की घटना होने से पहले, किसी बहाने या किसी भी अन्य तरह से उत्पीड़न, ताने मारने या पीड़िता के पास आने के कई उदाहरण हो सकते हैं. आमतौर पर पीड़िता इन पर ध्यान नहीं देती हैं या कानून प्रवर्तन अधिकारियों या परिवार के सदस्यों को इनकी सूचना नहीं देती हैं. ऐसी संभावना है कि अपराधी द्वारा इन्हें प्रोत्साहन या सहमति के रूप में माना जा सकता है और उसे आगे बढ़ने के लिए हौसला मिलता है. कहा जाता है कि महिलाओं को पुरुषों के बारे में सहज ही समझ में आ जाता है कि वह कैसा व्यवहार कर रहा है और उसके उद्देश्य क्या हो सकते हैं.
ऐसी घटनाओं पर तत्काल कार्रवाई हो तो उन्हें आगे बढ़ने की जुर्रत करने से रोका जा सकता है. महाराष्ट्र में डीजीपी के रूप में काम करते हुए मैंने एक परिपत्र जारी किया था कि अगर छेड़छाड़ की घटनाओं में कड़ी कार्रवाई की जाती है, तो आगे बलात्कार की घटनाओं को होने से रोका जा सकता है. यह सुनिश्चित करने के लिए सभी पुलिस अधिकारियों को सख्त आदेश जारी किए गए थे कि छेड़छाड़ की घटनाओं में चौबीस घंटे के भीतर आरोपपत्र दायर किया जाए. इस प्रथा के परिणामस्वरूप अपराधियों की तत्काल पेशी हुई और सजा सुनाई गई. मुङो याद है कि कई घटनाओं में, मजिस्ट्रेटों ने अपराधी को घटना के दो महीने के भीतर तीन साल की जेल की सजा सुनाई थी. महिला सुरक्षा को मजबूत करने के लिए, भारत सरकार ने राष्ट्रीय आपातकालीन नंबर 112 लॉन्च किया है और यह अपराध, चिकित्सा और आग सहित सभी आपात स्थितियों के लिए है. इसी तरह साइबरस्पेस के खतरों और दुरुपयोग को रोकने के लिए, यहां तक कि अनाम शिकायतों को भी www.cybercrime.gov.in पर दर्ज किया जा सकता है और हेल्पलाइन नंबर 1555260 भी उपलब्ध है, जिस पर सुबह 9 से शाम 6 बजे तक संपर्क किया जा सकता है.
यह समय की जरूरत है कि धर्म, जाति या भाषा के नाम पर बिना किसी राजनीति का सहारा लिए, पुलिस अधिकारियों को इन अपराधों की जांच करने की अनुमति दी जाए. पोस्टमार्टम और फॉरेंसिक विशेषज्ञों की रिपोर्टो को बिना किसी हिचकिचाहट के सम्मान देने की आवश्यकता है. राजनीति साधने के लिए जनता की आंखों में धूल झोंकने का कोई भी प्रयास पीड़ितों के साथ-साथ दूसरों के साथ भी अन्याय होता है. जब मुकदमा चल रहा हो तो पीड़ित को दबाव का सामना करने के लिए मदद देने का हरसंभव प्रयास करना चाहिए, ताकि अपराधियों को सजा मिले और पीड़ित को न्याय मिले.