प्रशांत किशोर के संन्यास के क्या हैं मायने, क्या अब रणनीतिकार की बनाई पहचान को राजनीति में निवेश करने की है तैयारी?

By विवेकानंद शांडिल | Published: May 11, 2021 02:33 PM2021-05-11T14:33:51+5:302021-05-11T14:37:48+5:30

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की प्रचंड जीत में अहम भूमिका प्रशांत किशोर की भी रही। उन्होंने बीजेपी को लेकर जो 100 सीट नहीं जीत सकने का दावा किया था, वो भी सही साबित हुआ। इस बड़ी सफलता के बावजूद प्रशांत किशोर ने चुनावी रणनीतिकार का काम क्यों छोड़ दिया है, ये देखना दिलचस्प होगा।

Prashant Kishor retirement as election campaigner what will he do next | प्रशांत किशोर के संन्यास के क्या हैं मायने, क्या अब रणनीतिकार की बनाई पहचान को राजनीति में निवेश करने की है तैयारी?

प्रशांत किशोर ने चुनावी रणनीतिकार के काम से लिया संन्यास (फाइल फोटो)

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजे आते ही चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का अपने चुनावी कैंपेन के करियर से अलविदा कहना हर किसी को हैरान कर गया। बंगाल चुनाव के नतीजे आने से पहले प्रशांत किशोर बार–बार ट्वीट कर ममता की जीत का हुंकार भरते रहे और 200 सीटें जीतने का दावा करने वाली बीजेपी को 100 का आंकड़ा पार करने की चुनौती देते रहे। 

प्रशांत किशोर ने काफी पहले ही ट्वीट में ममता की जीत का दावा करते हुए कहा था कि अगर बीजेपी 100 सीटें भी ले आई तो वो इस प्लेटफॉर्म को छोड़ देंगे हालांकि प्लेटफॉर्म की बात तब स्पष्ट नहीं थी कि वो ट्विटर छोड़ने की बात कर रहे या फिर चुनावी रणनीतिकार की भूमिका की। 2 मई को जब बंगाल विधानसभा के नतीजे आये तो हुआ ठीक वैसा ही जैसा प्रशांत किशोर ने दावा किया था। 

ममता अप्रत्याशित जीत के साथ तीसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनी तो वहीं 200 सीटें जीतने का दावा करने वाली बीजेपी को 77 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।

सवाल है कि सबकुछ प्रशांत किशोर के दावे के मुताबिक ही तो हुआ फिर प्रशांत किशोर ने अलविदा क्यों कहा? इस सवाल का जवाब शायद यही है कि प्रशांत किशोर ने अपने चुनावी रणनीतिकार के करियर से उसी प्रकार अलविदा कहा जैसे एक खिलाड़ी संन्यास के लिए बेहतर समय चुनता है। ताकि वो अपने फैंस के दिलों पर राज करता रहे।

प्रशांत किशोर अब भविष्य में क्या करेंगे? राजनीति!

प्रशांत किशोर पिछले 7 साल से बतौर चुनावी रणनीतिकार काम कर रहे हैं। फिलहाल के चुनाव से पहले उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के मेगा चुनावी अभियान के साथ बतौर रणनीतिकार अपने करियर की मजबूत नींव रखी। उस समय से लेकर उन्होंने  बिहार – यूपी में महागठबंधन, आंध्रपदेश में वाईएसएसआर और इस साल तमिलनाडु में डीएमके और बंगाल में टीएमसी के लिए चुनावी कैंपेन किया।

यूपी में जरूर महागठबंधन को सत्ता दिलाने में विफल रहे लेकिन बाकि जगहों पर वे कामयाब हुए। लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने कई पार्टियों के लिए चुनावी कैंपेन किया लेकिन इसमे वो ज्यादा कमाल नहीं कर सकें। बहरहाल, प्रशांत किशोर के अलविदा कहने के दो कारण समझ आते हैं

पहला कारण – आने वाले जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उसमें यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा जैसे राज्य हैं। याद रहे कि प्रशांत किशोर उसी पार्टी और नेता के लिए कैंपेन करते हैं जिसकी जीत की संभावना प्रबल होती है, ऐसा खुद प्रशांत किशोर कई बार अलग अलग मीडिया के मंचों से कह चुके हैं। प्रशांत किशोर की जिस तरह की तल्खी बीजेपी के साथ दिखती है इससे ये स्पष्ट है कि शायद ही कभी प्रशांत किशोर बीजेपी के लिए कभी चुनावी कैंपेन करें। 

रही बात इन राज्यों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अकाली दल की मौजूदगी की तो ये यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जब सपा – कांग्रेस साथ थे तो नतीजों के बाद प्रशांत किशोर ने साफ किया था कि कांग्रेसी नेताओं के बीच तालमेल बनाना असंभव है। 

कांग्रेसी नेताओं के इगो से प्रशांत किशोर परेशान थे ये यूपी चुनाव के दौरान भी देखा – सुना गया था। रही बात आम आदमी पार्टी की तो पंजाब को छोड़कर बाकि के राज्यों में बस इनकी मौजूदगी सी है। इस बार पंजाब में भी कुछ स्थिति स्पष्ट नहीं दिख रही जैसे पिछली बार के पंजाब विधानसभा चुनाव में एक साल पहले ही आम आदमी पार्टी के पक्ष में हवा चल रही थी।

दूसरा कारण – पिछले 7 साल में प्रशांत किशोर ने जिसके लिए भी चुनावी कैंपेन किया उसकी हर जीत के बाद वो उस पार्टी के प्रमुख नेता की तरह बोलते दिखे। बिहार में महागठबंधन की जीत हो, दिल्ली में केजरीवाल या फिर पश्चिम बंगाल में ममता की। इससे एक बात ये भी कुछ हद तक स्पष्ट होती है कि प्रशांत किशोर की राजनीतिक विचारधारा न लेफ्ट में न राइट में बल्कि सेंटर में मेल खाती है। 

उनके भीतर एक नेता बनने की लालसा भी दिखती है जिसके लिए वो प्रयासरत भी रहे हैं। वे जब जदयू में थे तो वो एक यूथ विंग का कैडर तैयार कर रहे थे। बतौर रणनीतिकार उन्होंने एक अपनी राष्ट्रीय पहचान बना ली है। खासकर युवा वर्गों में काफी हद उनकी लोकप्रियता है। 

कहा यही जाता है कि राजनीति में भाग्य आजमाने के लिए समय या तो काफी लंबा होता या काफी छोटा। ऐसे में अब प्रशांत किशोर जो उन्होंने बतौर चुनावी रणनीतिकार पहचान बनाई उसे अब अपनी राजनीतिक करियर में निवेश करेंगे।

Web Title: Prashant Kishor retirement as election campaigner what will he do next

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