प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: दगाबाजी को हमेशा से अपना हथियार बनाता रहा है 'ड्रैगन'
By प्रमोद भार्गव | Published: June 20, 2020 01:47 PM2020-06-20T13:47:51+5:302020-06-20T13:47:51+5:30
गलवान नदी घाटी क्षेत्र 1962 में हुई भारत-चीन की लड़ाई में भी प्रमुख युद्ध स्थल रहा था. गलवान घाटी श्योक नदी के इर्द-गिर्द है. नदी के दोनों किनारों पर ऊबड़-खाबड़ पथरीली जमीन है. नदी पहाड़ों को काटकर तेज धारा के रूप में बहती है. इस नदी घाटी की संरचना चंबल नदी और उसके बीहड़ों से मिलती-जुलती है.
लद्दाख में 14000 फुट की ऊंचाई पर स्थित दुर्गम गलवान नदी घाटी में चीनी सैनिकों की दगाबाजी के चलते 20 भारतीय वीर सपूतों को शहीद होना पड़ा है. 45 वर्ष बाद एक बार फिर भारत-चीन सीमा विवाद ने सैन्य संघर्ष का रूप धारण कर लिया है. सेना द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि गलवान घाटी में तनाव कम करने की बातचीत के दौरान हिंसक टकराव में कर्नल बी. संतोष बाबू समेत बीस सैनिक शहीद हुए हैं.
भारतीय सेना राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध है. दरअसल संतोष बाबू दो जवानों के साथ चीनी अधिकारियों के साथ गतिरोध से जुड़ी वार्ता कर रहे थे. वार्ता के दौरान ही चीनी सैनिक उग्र हो गए और उन्होंने निहत्थे जवानों पर कंटीले डंडों, लोहे की छड़ों और पत्थरों से हमला बोल दिया. धोखे से किए गए इस हमले को देखने के बाद भारतीय सैनिकों ने पलटवार किया, जिसमें बड़ी तादाद में चीनी सैनिक मारे गए. पीएलए के निकट चीनी हेलिकॉप्टर शवों व घायलों को ढोते देखे गए हैं. इसके पहले 20 अक्तूबर 1975 को अरुणाचल प्रदेश के तुलुंगला क्षेत्र में असम राइफल्स की पेट्रोलिंग पार्टी पर घात लगाकर चीनी सैनिकों ने हमला किया था. इसमें हमारे 4 सैनिक शहीद हुए थे.
गलवान नदी घाटी क्षेत्र 1962 में हुई भारत-चीन की लड़ाई में भी प्रमुख युद्ध स्थल रहा था. गलवान घाटी श्योक नदी के इर्द-गिर्द है. नदी के दोनों किनारों पर ऊबड़-खाबड़ पथरीली जमीन है. नदी पहाड़ों को काटकर तेज धारा के रूप में बहती है. इस नदी घाटी की संरचना चंबल नदी और उसके बीहड़ों से मिलती-जुलती है.
श्योक नदी का विवरण महाभारत और जम्मू-कश्मीर के प्राचीन इतिहास पर कल्हण द्वारा लिखे संस्कृत ग्रंथ राजतरंगिणी में उल्लेखित है. हालांकि ब्रिटिश काल में 1889 में श्योक नदी के स्रोत का पता करने के नजरिये से गुलाम रसूल गलवान के नेतृत्व में एक दल का गठन ब्रिटिश हुकूमत ने किया था. इस दल ने चांग छेन्मो घाटी के उत्तर में स्थित नदी के स्रोत की खोज की. तब से इस नदी को गलवान कहा जाने लगा. इस घाटी क्षेत्र में ही लेह से दौलत-बेग-ओल्डी तक 323 किमी लंबी पक्की सड़क का निर्माण भारतीय सीमा सड़क संगठन ने कर लिया है. इस मुख्य सड़क से अनेक छोटी सड़कें जुड़ी हुई हैं.
इन्हीं मार्गों से सेना अपने ठिकानों तक पहुंचती है. इस सीमा रेखा पर दस ऐसे स्थल हैं, जहां आए दिन झड़पें होती रहती हैं. वर्तमान टकराव की शुरुआत 5-6 मई से हुई थी, जब चीनी सैनिकों ने लद्दाख की सीमा में तंबू गाड़ लिए थे. इसी समय चीनी सैनिकों ने चीनी सीमा में सैन्य अभ्यास भी किया था. इस अभ्यास के बाद चीन और भारत ने सैन्य गतिविधियां बढ़ा दी थीं. हालांकि इस बार चीन दावा कर रहा है कि पूरी गलवान घाटी पर उसी का अधिकार है और भारत यहां सामरिक ठिकाने बनाकर नियंत्रण रेखा पर एकतरफा बदलाव लाने की कोशिश में लगा है. इसलिए चीन ने कहा था कि इस क्षेत्र को दूसरा डोकलाम नहीं बनने देंगे. लिहाजा सफाई देते हुए चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में कहा गया कि भारत ने इस इलाके में अवैध निर्माण किए हैं, इस वजह से चीन को सैन्य गतिविधियां बढ़ानी पड़ी हैं.
कुछ साल पहले भी चीनी सैनिकों ने भारतीय लद्दाख सीमा में घुसकर तंबू गाड़कर डेरा डाल लिया था. चीन विवादित नियंत्रण रेखा पार कर अरुणाचल प्रदेश के चागलागम क्षेत्र में घुसने की कोशिश में लगा रहता है. दरअसल चीन भारत के बरक्स बहुरूपिये का चोला ओढ़े हुए है. एक तरफ वह पड़ोसी होने के नाते दोस्त की भूमिका में पेश आता है, वहीं दूसरी तरफ ढाई हजार साल पुराने भारत-चीन के सांस्कृतिक संबंधों के बहाने हिंदी-चीनी भाई-भाई का राग अलाप कर भारत से अपने कारोबारी हित साधता रहता है. चीन का एक अन्य मुखौटा दुश्मनी का है, जिसके चलते वह पूरे अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम पर अपना दावा ठोंकता है. यही दावा अब वह लद्दाख पर जता रहा है.
छोटे से देश भूटान को हड़पने की भी उसकी मंशाएं प्रकट रूप में सामने आती रहती हैं. चीन की यह मंशा भी रही है कि उसकी तुलना में भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं होने पाए. इस दृष्टि से वह सीमा पर भारतीय क्षेत्र में अपनी नापाक मौजदूगी दर्ज कराकर भारत को परेशान करता है. इन बेजा हरकतों की प्रतिक्रि या में भारत द्वारा विनम्रता बरतने का लंबा इतिहास रहा है, इसी का परिणाम है कि चीन आक्रामकता दिखाने से बाज नहीं आता. लेकिन अब उसको जवाब देना ही होगा.