अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते कदम
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 31, 2018 05:57 AM2018-08-31T05:57:46+5:302018-08-31T05:57:46+5:30
भारत 2022 में ‘मानव-मिशन’ के तहत ‘गगनयान’ के माध्यम से अंतरिक्ष में एक महिला समेत दो वैज्ञानिकों को भेजेगा।
प्रमोद भार्गव
वरिष्ठ पत्रकार
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रमा पर चंद्रयान-2 भेजने की तिथि का ऐलान कर दिया है। इसरो के अध्यक्ष के। शिवम और अंतरिक्ष एवं परमाणु ऊर्जा राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने मीडिया को बताया कि 3 जनवरी 2019 को चंद्रयान-2 चंद्रमा के लिए रवाना होगा, जो 16 फरवरी 2019 को चंद्रमा के दक्षिणी धुव्र की धरती पर उतरेगा। इस यान का 600 किलोग्राम वजन भी बढ़ाया गया है। दरअसल, प्रयोगों के दौरान ज्ञात हुआ कि उपग्रह से जब चंद्रमा पर उतरने वाला हिस्सा बाहर आएगा तो यह हिलने लगेगा। लिहाजा इसका भार बढ़ाने की जरूरत पड़ी। इसके अतिरिक्त भारत 2022 में ‘मानव-मिशन’ के तहत ‘गगनयान’ के माध्यम से अंतरिक्ष में एक महिला समेत दो वैज्ञानिकों को भेजेगा।
यदि भारत इस मिशन में कामयाबी हासिल कर लेता है तो ऐसा करने वाला वह दुनिया का चौथा देश हो जाएगा। अब तक अमेरिका, रूस और चीन ने ही अंतरिक्ष में अपने मानवयुक्तयान भेजने में सफलता पाई है। गगनयान अभियान में 10,000 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इस यान का भार 7 टन, ऊंचाई 7 मीटर और करीब 4 मीटर व्यास की गोलाई होगी। ‘गगनयान’ जीएसएलबी (एमके-3) रॉकेट से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के बाद 16 मिनट में अंतरिक्ष की कक्षा में पहुंच जाएगा। इसे धरती की सतह से 300-400 किमी की दूरी वाली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। सात दिन तक कक्षा में रहने के बाद गगनयान को अरब-सागर, बंगाल की खाड़ी अथवा जमीन पर उतारा जाएगा। इस संबंध में पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से भी मदद ली जाएगी। शर्मा ऐसे पहले भारतीय हैं, जो अप्रैल 1984 में सोयुज-टी 11 से अंतरिक्ष में गए थे। यह यान रूस ने छोड़ा था।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो पहली बार अपने यान को चंद्रमा के दक्षिणी धुव्र पर उतारने की कोशिश में है। याद रहे भारत द्वारा 2008 में भेजे गए चंद्रयान-1 ने ही दुनिया में पहली बार चंद्रमा पर पानी होने की खोज की है। चंद्रयान-2 इसी अभियान का विस्तार है। यह अभियान मानव को चांद पर उतारने जैसा ही चमत्कारिक होगा। इस अभियान की लागत करीब 800 करोड़ रुपए आएगी। चांद पर उतरने वाला यान अब तक चंद्रमा के अछूते हिस्से दक्षिणी धुव्र के रहस्यों को खंगालेगा। चंद्रयान-2 इसरो का पहला ऐसा यान है, जो किसी दूसरे ग्रह की जमीन पर अपना यान उतारेगा। दक्षिणी धुव्र पर यान को भेजने का उद्देश्य इसलिए अहम है, क्योंकि यह स्थल दुनिया के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए अब तक रहस्यमयी बना हुआ है। यहां की चट्टानें 10 लाख साल से भी ज्यादा पुरानी बताई गई हैं।
इधर भारत के चंद्रयान-1 और अमेरिकी नासा के लुनर रीकॉनाइसेंस ऑर्बिटर ने हाल ही में ऐसी जानकारियां भेजी हैं, जिनसे चंद्रमा पर चौतरफा पानी उपलब्ध होने के संकेत मिलते हैं। गोया, चंद्रमा की सतह पर पानी किसी एक भू-भाग में नहीं, बल्कि हर तरफ फैला हुआ है। इससे पहले की जानकारियों से सिर्फ यह ज्ञात हो रहा था कि चंद्रमा के ध्रुवीय अक्षांश पर अधिक मात्र में पानी है। इसके अतिरिक्त चंद्रमा पर दिनों के अनुसार भी पानी की मात्र बढ़ती व घटती रहती है।
दरअसल भारतीय चंद्रयान-1 में ऐसे विशिष्ट कैमरे एवं स्पैक्ट्रोमीटर लगे हैं, जो चंद्रमा के भू-भाग की भौगोलिक स्थिति, खनिज संसाधनों और रासायनिक संघटकों के चित्र तथा डाटा भेज रहे हैं। यह चंद्रयान अपने साथ दूसरे देशों के भी छह उपकरण ले गया है। नासा ने दो प्रोब भेजे हैं, जिनमें से एक चंद्रमा के गहरे ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फीले पानी के अनुसंधान से जुड़े चित्र भेज रहा है। बुल्गारिया ने भारत का सहयोग करते हुए यान में रेडिएशन डोस मॉनिटर (रेडॉम) भेजा है। यह यंत्र चंद्र की सतह पर विकिरण के स्तर की गणना से संबंधित आंकड़े निरंतर भेज रहा है। भविष्य की अंतरिक्ष यात्रओं का सफर बहुत लंबा होने के साथ संभावनाओं और आशंकाओं से भी जुड़ा है। गोया, जो अनंत ब्रह्माण्ड को खंगाल रहे हैं, वे ही ऐसे स्थलों पर पहुंच सकते हैं, जहां शंकालु और निराशावादी पहुंचने का विचार भी नहीं कर सकते हैं ? इस नाते चंद्रयान-2 और मानवयुक्त गगनयान अभियानों का स्वागत करने की जरूरत है।