प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: चिकित्सा शिक्षा में बदलाव का नया उपाय
By प्रमोद भार्गव | Published: August 2, 2019 06:48 AM2019-08-02T06:48:51+5:302019-08-02T06:48:51+5:30
इस विधेयक को लाने का उद्देश्य इस पेशे को भ्रष्टाचारमुक्त बनाना और निजी चिकित्सा महाविद्यालयों के अनैतिक गठजोड़ को तोड़ना भी है.
भविष्य में चिकित्सा शिक्षा में व्यापक बदलाव का रास्ता राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग-2019 (नेशनल मेडिकल कमीशन) के गठन के जरिए खुल गया है. यह विधेयक लोकसभा में पारित हुआ है. इसके पहले राज्यसभा से पारित हो चुका है. इस विधेयक के अस्तित्व में आने के बाद 63 साल पुराने भारतीय चिकित्सा परिषद् (एमसीआई) की जगह एनएमसी ले लेगा. अब यही कानून चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा वृत्ति और चिकित्सा संस्थाओं के विकास और नियमन का आधार बन जाएगा.
पिछले साल सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी एमसीआई को निलंबित कर चिकित्सा शिक्षा पर नियंत्रण के लिए प्रशासनिक बोर्ड का गठन किया था. सरकार का दावा है कि इस कानून के बन जाने के बाद चिकित्सा क्षेत्र में इंस्पेक्टर राज समाप्त हो जाएगा. 16वीं लोकसभा में जब यह विधेयक लाया गया था, तब एमसीआई के तहत देशभर के चिकित्सकों ने हड़ताल कर कुछ मुद्दों पर आपत्ति जताते हुए उनमें बदलाव की मांग की थी. सरकार ने इस विधेयक के प्रारूप में ऐसे बदलाव किए हैं जिससे एलोपैथी चिकित्सा की गुणवत्ता प्रभावित न हो.
इस कानून को लाना इसलिए भी जरूरी था, क्योंकि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने अपनी 92वीं रिपोर्ट में एमसीआई की आलोचना करते हुए कहा था कि वह सक्षम चिकित्सक तैयार करने और गुणवत्ता बनाए रखने की अपनी जिम्मेवारी को ठीक से नहीं निभा रही थी. नतीजतन गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा अपने निम्न स्तर पर पहुंच गई है. यह शिक्षा वर्तमान व्यवस्था में सही ढंग से पेशेवर चिकित्सक तैयार करने में नाकाम लग रही है. देश की आधारभूत स्वास्थ्य जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही हैं, क्योंकि चिकित्सा शिक्षा और पाठ्यक्रम को हमारी स्वास्थ्य प्रणाली के मुताबिक तैयार नहीं किया गया है. इन कॉलेजों से पढ़कर निकलने वाले अनेक एमबीबीएस डॉक्टर गरीबों के लिए बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों में काम करना भी अपनी तौहीन मानते हैं. लिहाजा इस विधेयक का लाया जाना जरूरी था.
इस विधेयक को लाने का उद्देश्य इस पेशे को भ्रष्टाचारमुक्त बनाना और निजी चिकित्सा महाविद्यालयों के अनैतिक गठजोड़ को तोड़ना भी है. मौजूदा व्यवस्था के अनुसार कायदे से उन्हीं छात्रों को मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिलना चाहिए, जो सीटों की संख्या के अनुसार नीट परीक्षा से चयनित हुए होते हैं. फिलहाल तो आलम यह है कि जो छात्र दो लाख से भी ऊपर की रैंक में है, उसे भी धन के बूते प्रवेश मिल जाता है.