प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: चीनी बौखलाहट का कारण जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन!
By Prakash Biyani | Published: July 2, 2020 10:27 AM2020-07-02T10:27:51+5:302020-07-02T10:27:51+5:30
चीन को डर है कि पाक अधिकृत कश्मीर भारत के कब्जे में चला गया तो उसका 3 हजार किमी लंबा 46 बिलियन डॉलर का सिल्क रोडवाला इकॉनोमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट फ्लॉप हो जाएगा।
चीन ने अरुणाचल को भूलकर इस बार लद्दाख में मोर्चा खोला है जिसकी कड़ी जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन से जुड़ी हुई है. मोदी सरकार ने कश्मीर को अनुच्छेद-370 से मुक्त किया तो हम भारतीयों के मन में उम्मीद जगी कि बहुत जल्दी पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का हिस्सा बन जाएगा. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के पुनर्गठन और भारत द्वारा वहां सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास ने पाकिस्तान के मन में भी यह आशंका पैदा की तो उसने अपने आका चीन से गुहार लगाई.
चीन को भी डर है कि पाक अधिकृत कश्मीर भारत के कब्जे में चला गया तो उसका 3 हजार किमी लंबा 46 बिलियन डॉलर का सिल्क रोडवाला इकॉनोमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट फ्लॉप हो जाएगा और अब तक निवेश की सारी पूंजी डूब जाएगी. चीन का यह अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है. इस गलियारे से चीन ग्वादर बंदरगाह से शिंजियांग तक कम लागत में तेल और गैस व अन्य सामान पहुंचाना चाहता है. यही नहीं, चीन बलूचिस्तान से निकले नेचुरल रिसोर्सेस भी इसी मार्ग से अपने देश लाना चाहता है.
लद्दाख में भारत की सैन्य ताकत बढ़ने से चीन को अक्साई चिन अपने कब्जे से निकल जाने का भी डर है. वह जानता है कि अक्साई चिन उस मूल कश्मीर का हिस्सा है जिसका कश्मीर के राजा हरि सिंह ने भारत में विलय स्वीकार किया था. चीन ने 1962 के युद्ध के बाद अक्साई चिन पर वैसे ही कब्जा कर रखा है जैसे पाकिस्तान का कश्मीर के एक हिस्से पर कब्जा है. भारत के गृह मंत्नी अमित शाह लोकसभा में कह चुके हैं कि राजा हरि सिंह से मिली संपूर्ण जम्मू-कश्मीर रियासत भारत का अभिन्न हिस्सा है.
दरअसल चीन की निगाहें लद्दाख के यूरेनियम, ग्रेनाइट, सोने और रेयर अर्थ जैसी बहुमूल्य धातुओं के नेचुरल रिसोर्सेस पर हैं. लद्दाख के जिस गलवान रीजन में भारत और चीन के बीच हाल ही में हाथापाई हुई, उसके ठीक नजदीक गोगरा पोस्ट के पास गोल्डेन माउंटेन है. भूगर्भ विज्ञानियों के मुताबिक यहां भू-गर्भ में सोने समेत कई बहुमूल्य धातुओं का भंडार है. हजारों वर्ष पुरानी लद्दाख की चट्टानों में उच्च गुणवत्ता वाला यूरेनियम भी है जिससे परमाणु बिजली और परमाणु बम बनाए जा सकते हैं.
अक्साई चिन पर कब्जे का चीन के लिए सामरिक महत्व भी है. अक्साई चिन शिंजियांग और तिब्बत को जोड़ता है. यह मध्य एशिया की सबसे ऊंची जगह है जहां से चीन भारत की सेना पर नजर रखता है. तिब्बत से अक्साई चिन होकर शिंजियांग पहुंचना आसान है. अगर भारत अक्साई चिन की तरफ बढ़ता है तो शिंजियांग पर से चीन का नियंत्नण घटता है, जहां उइगर मुस्लिम ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट चला रहे हैं जिसका मकसद चीन से अलग होना है. इस मूवमेंट को दबाने के लिए चीन ने उइगर मुस्लिमों पर कई प्रतिबंध लगा रखे हैं. चीन डरता है कि इस क्षेत्न में उसकी पकड़ कमजोर हुई तो उसके सब पाप उजागर होंगे और दुनिया में उसकी छवि और बिगड़ेगी जो कोरोना के बाद वैसे ही खराब है.