प्रभात झा का ब्लॉग: जनादेश में छिपे संदेशों को विपक्षी दल समझें
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 29, 2019 05:32 AM2019-05-29T05:32:43+5:302019-05-29T05:32:43+5:30
इस जनादेश में जो सबसे बड़ा संदेश है, वह यह है कि नेता को अपने अध्यक्ष यानी संगठन पर और संगठन को अपने नेता पर अटूट विश्वास होना चाहिए.
प्रभात झा
सन 2019 लोकसभा चुनाव के जनादेश का सभी राजनीतिक दलों को गहरा अध्ययन करना चाहिए. मुझे विश्वास है कि वे ऐसा कर भी रहे होंगे. अभी तक जो हमने विश्लेषण किया है, उसमें राजनीतिक दलों के लिए अनेक संदेश छिपे हैं, उसे क्रमश: रखने का प्रयास कर रहा हूं.
इस जनादेश ने इतिहास रचा है. इतिहास घटता है न कि घटाया जाता है. अवसर तो भारत में बहुत बड़े-बड़े नेताओं और राजनीतिक दलों को मिला, पर प्रधानमंत्नी के रूप में नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते अमित शाह ने सहमति और समन्वय का इतिहास रचा है. यह वर्तमान राजनीति में अद्वितीय घटना है.
इस संदेश के पीछे इस समन्वय की बहुत बड़ी भूमिका है. नेता जो सोचता है, संगठन उसे पूरा करने में लग जाए और संगठन जो सोचे उसे नेता पूरा करने में लग जाए, यह सामान्य बात नहीं है. भाजपा को छोड़कर देश में अभी ऐसा राजनीतिक दल कोई नहीं है.
राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने असंभव को संभव कर दिखाया है. इस जनादेश में जो सबसे बड़ा संदेश है, वह यह है कि नेता को अपने अध्यक्ष यानी संगठन पर और संगठन को अपने नेता पर अटूट विश्वास होना चाहिए. जबकि आज की राजनीति में होता यह है कि नेता सरकार को ही नहीं संगठन को भी चलाने लगता है और संगठन नेता को हटाने में लग जाता है.
आज भारतीय राजनीति के शीर्ष नेतृत्व में इस स्तर पर ऐसे ही सात्विक विश्वास की आवश्यकता लगती है. कमोबेश इस धुरी पर विपक्षी दल अपने को देखेंगे तो बहुत ही कमजोर पाएंगे. इस जनादेश में कुछ महत्वपूर्ण संदेश और भी हैं, जैसे भारत के जनविवेक को जातीय आधार पर देखना. जनतंत्न के 73 वर्ष हो गए. अब जनता परिपक्व हो गई है. उसके जनविवेक को जाति से जोड़कर अपना गुलाम या मजबूरी समझना हमारी नादानी हो सकती है, समझदारी नहीं. जातीय मिथक तोड़ने का यह प्रयास निरंतर जारी रहना चाहिए.
इस जनादेश में संदेश है कि दल से बड़ा देश है. इस विचार से हटकर अन्य राजनीतिक दलों की स्थिति यह है कि सबसे पहले स्वयं, फिर दल और उसके बाद देश. अधिकतर राजनीतिक दल तो सिर्फ परिवार चलाने के लिए पार्टी चलाते हैं. इस जनादेश ने साफ तौर पर संदेश दिया है कि अपवाद स्वरूप परिवारवाद या वंशवाद ठीक है, पर इसी भाव पर आधारित राजनीतिक दलों को जनता ने धराशायी कर दिया. इस चुनाव में ऐसा कई जगह देखने को मिला.
जनादेश 2019 में एक और बड़ा संदेश है कि यदि आप जनप्रतिनिधि हैं तो आप पर जनता का हक है. आपको न्यूज चैनलों की तरह चौबीस घंटे दिखना पड़ेगा. चैनलों को तो दिखना पड़ता है, पर अब राजनीतिक तौर पर निर्वाचित जनप्रतिनिधि को दिखने के साथ-साथ काम भी करते रहना होगा.
इस जनादेश में संदेश तो बहुत है, राजनीतिक दल ईमानदारी से समझने का प्रयत्न करें.