प्रधानमंत्री मोदी ने बदल दिया गोल-पोस्ट! हरीश गुप्ता का ब्लॉग

By हरीश गुप्ता | Published: December 3, 2020 12:38 PM2020-12-03T12:38:23+5:302020-12-03T12:39:44+5:30

पीएम मोदी ने अतीत में कई मौकों पर कहा था कि 2022 में जब भारत अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा, तब तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी और सभी के पास पक्के  मकान होंगे.

pm narendra modi 75 years bjp rss Handed over the reins of power changed the goal post! Harish Gupta's blog | प्रधानमंत्री मोदी ने बदल दिया गोल-पोस्ट! हरीश गुप्ता का ब्लॉग

मोदी ने हमेशा इस तरह के बड़े दावे करने से परहेज किया था. (file photo)

Highlightsसभी के लिए शिक्षा सहित और भी कई बड़े-बड़े वादे किए गए थे.भाजपा अगले 50 वर्षों तक भारत पर शासन करेगी.

अगर आपको लगता है कि पीएम मोदी 75 साल के हो जाने के बाद आराम करेंगे और सत्ता की बागडोर अपने उत्तराधिकारी को सौंप देंगे, तो आप कुछ आश्चर्य में पड़ सकते हैं.

कारण यह है कि मोदी ने आसानी के साथ अपने गोल-पोस्ट को 2022 से 2029 पर स्थानांतरित कर दिया है. लक्ष्य में इस बदलाव का संकेत पिछले सप्ताह एक वचरुअल समारोह में सामने आया था, जिस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया.

इसमें उन्होंने कहा कि पिछले साढ़े छह वर्षों के दौरान बहुत सारे काम किए गए हैं. लेकिन भारत के विकास के लिए अगले नौ साल बहुत महत्वपूर्ण हैं. मोदी ने अतीत में कई मौकों पर कहा था कि 2022 में जब भारत अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा, तब तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी और सभी के पास पक्के  मकान होंगे.

सभी के लिए शिक्षा सहित और भी कई बड़े-बड़े वादे किए गए थे. वास्तव में, जब वे 2014 में सत्ता में आए तो उन्होंने वादा किया था कि अगले पांच वर्षों के भीतर किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी. लेकिन बाद में उन्होंने इसे 2022 तक बढ़ा दिया. अब वे कह रहे हैं कि अगले नौ साल भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं.

उनके कथन से दो बातें स्पष्ट रूप से सामने आती हैं; एक, वे 2029 तक बने रहेंगे और दूसरा, वे 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. हालांकि अमित शाह जैसे उनके कई विश्वस्तों ने कहा है कि भाजपा अगले 50 वर्षों तक भारत पर शासन करेगी. लेकिन मोदी ने हमेशा इस तरह के बड़े दावे करने से परहेज किया था.

अब बंगले पर ध्यान!

अपनी मां रीना पासवान के लिए राज्यसभा सीट का जुगाड़ करने में नाकाम रहने के बाद लोजपा प्रमुख अब जनपथ के मंत्री बंगले को बरकरार रखने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं. रामविलास पासवान को 12 जनपथ रोड का बंगला तब आवंटित किया गया था जब वे वी.पी. सिंह सरकार में मंत्री बने थे और तब से यह बंगला उनके पास ही रहा.

उनके बेटे चिराग पासवान, जो दो कार्यकाल से लोकसभा सांसद हैं, इस उच्च श्रेणी के बंगले के अधिकारी नहीं हैं. पासवान की मृत्यु के बाद, बंगला ‘सामान्य श्रेणी’ के अंतर्गत आ गया. अगर आवास संबंधी कैबिनेट समिति उन्हें इस पर काबिज रहने की अनुमति नहीं देती है तो उन्हें बंगला खाली करना पड़ सकता है क्योंकि चिराग के लिए कैबिनेट में शामिल होने की कोई गुंजाइश नहीं है.

देखना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी के इस ‘हनुमान’ के साथ क्या होता है. उनकी उम्मीद भाजपा प्रमुख जे. पी. नड्डा पर टिकी हुई है जिन्होंने हाल ही में कहा था, ‘‘केंद्र में मामला अलग है. लेकिन बिहार में जो है सो  यही है.’’ नड्डा से पूछा गया था कि चिराग एनडीए का हिस्सा हैं या नहीं. उनके दिए गए अस्पष्ट जवाब ने चिराग के लिए उम्मीद जगाई है.

अहमद पटेल के साथ क्या गलत हुआ?

अहमद पटेल के आकस्मिक निधन ने कांग्रेस में उस समय एक शून्य पैदा कर दिया जब पार्टी को उनकी सबसे अधिक जरूरत थी. ऐसा नहीं है कि उन्होंने उतार-चढ़ाव नहीं देखे थे. उन्हें उस समय झटका लगा था जब अंबिका सोनी उनके स्थान पर सोनिया गांधी की राजनीतिक सचिव बनीं. यह अलग बात है कि वे जल्दी ही केंद्र में वापस आ गए.

जब राहुल ने पार्टी प्रमुख के रूप में पदभार संभाला, तब पटेल को फिर से दरकिनार कर दिया गया. हालांकि सोनिया गांधी काफी समझदार थीं और उन्हें उनकी मृत्यु तक मुख्य राजनीतिक सलाहकार के रूप में बनाए रखा. यह अलग बात है कि राहुल गांधी को भी बाद में उनके भीतर गुण दिखे और वे वापस आ गए.

लेकिन यह एक रहस्य बना हुआ है कि पहली बार कोविड पाजिटिव पाए जाने के बाद उन्होंने इलाज के लिए अक्तूबर में फरीदाबाद के मेट्रो अस्पताल में जाने का विकल्प क्यों चुना था. इसमें कोई शक नहीं कि जब भी वे बीमार पड़ते थे, मेट्रो में नियमित आते थे. बाद में वे अपोलो अस्पताल में स्थानांतरित हो गए और अंत में गुरुग्राम के मेदांता में लाया गया. दो महीने में तीन अस्पताल उनके लिए भाग्यशाली साबित     नहीं हुए.

डिमोशन के साथ प्रमोशन

यह अजीब बात है कि यशवर्धन कुमार सिन्हा का नए मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में पदोन्नत होते समय डिमोशन हुआ. वे सूचना आयुक्त के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष थे. लेकिन जिस क्षण उन्हें सीआईसी के रूप में पदोन्नत किया गया, वे कैबिनेट सचिव के समकक्ष पदावनत हो गए. उन्हें वेतन और पेंशन से हाथ धोना पड़ेगा. दिलचस्प बात यह है कि उनके चार पुराने सहयोगी सुप्रीम कोर्ट जज की रैंक पर ही रहेंगे जबकि तीन नए सहयोगी सचिव के पद पर होंगे. 2018 में आरटीआई अधिनियम में संशोधन से यह विरोधाभास पैदा हुआ है!

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